जैन धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। जब आर्य भारत में नहीं आए थे तब भी द्रविड़ या व्रात्य के रूप में यहाँ जैनी रहते थे। मोहनजोदड़ों और सिंधु घाटी की सभ्यता की खुदाई में अनेकों प्रमाण जैन धर्म के मिले हैं। अनेक पुरातत्वविदों, शिक्षाशास्त्रियों और नेताओं ने भी इसकी प्राचीनता का उद्घोष किया है। कुछ उल्लेख देखिए-
जैन परंपरा के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक श्री ऋषभदेव थे जो कि शताब्दियों पहले हो गए हैं। इस बात के प्रमाण है कि ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी के पूर्व भी ऋषभदेव की पूजा होती थी इसमें संदेह नहीं कि जैन धर्म वर्धमान व पार्श्वनाथ से भी पहले प्रचलित था। – सर राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन-भाग-1, पृ. 287
बौद्धधर्म और जैनधर्म यकीनी तौर पर हिंदूधर्म नहीं है और न वैदिक धर्म हैं फिर भी इनकी उत्पत्ति हिंदुस्तान में ही हुई है और ये देशी संस्कृति के अंश हैं। – पंडित जवाहरलाल नेहरू, हिंदुस्तान की कहानी, पृ. 97-98
मथुरा से प्राप्त सामग्री लिखित जैन परंपरा के समर्थन में विस्तृत प्रकाश डालती है और जैन धर्म की प्राचीनता के विषय में अकाट्य प्रमाण उपस्थित करती है। -सर विसेंट अलेक्जेंडर स्मिथ, द जैन स्तूप एंड अदर एंटीक्वीज मथुरा, पृ. 6
जैन धर्म संसार का मूल अध्यात्म धर्म है। इस देश में वैदिक धर्म के आने से बहुत पहले से ही यहाँ जैनधर्म प्रचलित था। खूब संभव है कि प्राग्वैदिकों में शायद द्रविड़ों में यह धर्म था। -नीलकंठ शास्त्री, उड़ीसा में जैन धर्म, पृ. 243
जैनों के पहले तीर्थंकर सिंधु सभ्यता से ही थे। सिंधुजनों के देव नम्न होते थे। जैन लोगों ने उस सभ्यता, संस्कृति को बनाए रखा और नम्न तीर्थंकरों की पूजा की। -पी. आर. देशमुख सिविलाइजेशन ऋग्वेद एंड हिंदू कल्चर।
शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टि से यदि इस प्रश्न पर विचार करें तो यह मानना ही पड़ता है कि भारतीय सभ्यता के निर्माण में आदिकाल से ही जैनियों का हाथ था। मोहनजोदड़ों की मुद्राओं में जैनत्व बोधक चिह्नों का मिलना तथा वहाँ की योगमुद्रा ठीक जैन मूर्तियों के सदृश होना इस बात का प्रमाण है कि तब ज्ञान और ललित कला में जैनी किसी से पीछे नहीं थे। -विश्वंभर सहाय प्रेमी, हिमालय में भारतीय संस्कृति, पृ. 47
मोहनजोदड़ों की खुदाई में योग के प्रमाण मिलते हैं और जैनमार्ग के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव थे। जिनके साथ योग और वैराग्य की परंपरा उसी प्रकार लिपटी हुई है, जैसे वह कालांतर में शिव के साथ समन्वित हो गई। इस दृष्टि से जैन विद्वानों का यह मानना अयुकित युक्त नहीं दिखता कि ऋषभदेव वेदोल्लिखित होने पर भी वेद पूर्व हैं। -राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 62
जैन धर्म के प्रारंभ को जानना असंभव है। -डॉ. जे.सी. आर. फरलांग
जैन धर्म में मनुष्य की उन्नति के लिए सदाचार को अधिक महत्व प्रदान किया गया है। जैन धर्म अधिक मौलिक, स्वतंत्र तथा सुव्यवस्थित है। ब्राह्मण धर्म की अपेक्षा यह अधिक सरल संपन्न एवं विविधतापूर्ण है और यह बौद्ध धर्म के समान शून्यवादी नहीं है। -डॉ. ए. गिरनाट
जैन विचार निःसंशय प्राचीनकाल से है क्योंकि ‘अर्हन है दय से विश्वम्भम’ इत्यादि वेदवचनों में यह पाया जाता है। -विनोबा भावे
उड़ीसा प्रांत के खंडगिरि, उदयगिरि के हाथी गुफा वाले सम्राट खारवेल द्वारा लिखाए गए शिलालेख के आरंभ में ‘नमो अरहंतानं नमो सव सिधानं’ के रूप में णमोकार मंत्र लिखा है। इसकी भाषा प्राकृत तथा लिपि ब्राह्मी है। इसी शिलालेख की दसवीं पंक्ति में इस देश का नाम ‘भरधवस’ अर्थात भारतवर्ष लिखा है।
श्रवण बेलगोला, गिरनार, कुहाऊँ, शत्रुंजय, रणकपुर, देवगढ़ आदि के शिलालेख जैन धर्म की प्राचीनता का गान करते हैं।
सम्राट अशोक के लेखों में भी जैन मुनियों का उल्लेख हुआ है। एलोरा, गजपंथा, अंजनेरी तथा तमिलनाडु आदि की गुफाओं में जैन मूर्तियाँ बनी हैं।
भारतीय संविधान की मूलप्रति में भगवान महावीर का चित्र लगाया गया है। राष्ट्रगीत की अगली कड़ियों में जैन धर्म का उल्लेख हुआ है।
अग्नि पुराण (10/10), मार्कंडेय पुराण (50/39), नारदपुराण (पूर्वखंड-48) आदि में इस देश का भारत नाम प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के चक्रवर्ती पुत्र भरत के नाम पर पड़ा।
गौरीशंकर ओझा, रेवरेण्ड जे. स्टीवेनसन, डॉ. फुहरर, डॉ. जैकोबी, डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल, प्रो. विरूपाक्ष, श्रीकुमार स्वामी, डॉ. रामचंद्र चंदा आदि अनेक विद्वानों ने जैन धर्म की प्राचीनता को सिद्ध किया है।