ह्रीं – यह 24 तीर्थंकरों का वाचक बीज पद है। यह एक अक्षर वाला बीज मंत्र है। इसमें 24 तीर्थंकरों का अस्तित्व माना जाता है। इस मंत्र के ध्यान से मानसिक, शारीरकि शक्ति व ऊर्जा प्राप्त होने के साथ भावों में विशुद्धि होती है।
ॐ-यह परमेष्ठी का वाचक मंत्र और णमोकार मंत्र का संक्षिप्त रूप है।
卐 –यह अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी चिह्न है। इसका उपयोग मंगल कार्यों में किया जाता है। बोलचाल की भाषा में इसे स्वस्तिक, साथियाँ, सातियाँ, सातिया कहते हैं।
इसमें बनी खड़ी रेखा चेतन जीव या आत्मा की सूचक है। आड़ी रेखा अचेतन अजीव या पुदगल की सूचक है। इन दोनों का संयोग ही संसार है। इन दोनों रेखाओं के सिरे पर जो छोटी चार रेखाएँ हैं, वे चतुर्गति मनुष्य, तिर्थच, देव व नारकी की सूचक है। स्वास्तिक में छोटी चार बिन्दियाँ बनाई जाती है जिन्हें चार घातिया कर्मों की सूचक माना जाता है।
जैन ध्वज- जैन धर्म का प्रतीक झण्डा जैन मंदिरों तथा जैन मतावलम्बियों के घर दुकान आदि पर पावन प्रसंगों पर लगाया जाता है। यह पाँच रंग का होता है जिन्हें पंचपरमेष्ठी का प्रतीक माना जाता है।
1. लाल रंग- सिद्ध परमेष्ठी और पुरुषार्थ कल्याण का प्रतीक।
2. पीला रंग-आचार्य परमेष्ठी व धनादि का प्रतीक।
3. सफेद रंग-अरहंत परमेष्ठी व शांति प्रदर्शित करने का प्रतीक।
4. हरा रंग-उपाध्याय परमेष्ठी व भय निवारक का प्रतीक।
5. नीला-काला रंग-साधु परमेष्ठी तथा विजय का प्रतीक।
लोकाकाश- जैन आगम के अनुसार लोक की जो आकृति है, वही इस प्रतीक चिह्न में अंकित है। प्रतीक की बाहरी रेखाएँ लोक की सीमा की द्योतक है। नीचे अधोलोक है जिसमें हाथ का पंजा बना हुआ है, जो अहिंसा का प्रतीक हैं। पंजे में जो चक्र है, वह धर्मचक्र का प्रतीक है। इस चक्र में 24 आरे हैं जो 24 तीर्थंकरों के प्रतीक हैं ऊपरी हिस्से में स्वस्तिक है जो मंगलकारी, कल्याणकारी प्रतीक है। अर्द्ध चंद्र सिद्धालय का प्रतीक है तथा छोटी तीन बिन्दियाँ सम्यक्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की द्योतक है। प्रतीक चिह्न के नीचे ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ अंकित है। जिसका अर्थ है जीवों की परस्पर एक दूसरे की सहायता करना।