कुछ लोग भक्ष्य-अभक्ष्य का ध्यान रखे बिना ही कहीं भी कुछ भी खा लेते हैं। अधिकांश ब्रेड, बिस्कुट टॉफी, चॉकलेट, डबलरोटी, टोस्ट, पिन्जा, केक आदि एकदम अभक्ष्य होते हैं, क्योंकि किन्हीं में अंडे का अंश पड़ता है, किसी में मछली का तेल तो किसी में कुछ, अमर्यादित बासी भोजन, 24 घंटे से अधिक समय के बड़ी, पापड़, बरा (बड़ा), मंगोड़ी, जलेबी, संदिग्ध फल, रात्रि में बनाए हुए पदार्थ, फूलगोभी एवं द्विदल यह सभी पदार्थ अभक्ष्य की श्रेणी में आते हैं। होटल के भोजन से भी बचें, किसी होटल के शाकाहारी भोजन में माँस एवं अभक्ष्य पदार्थ भी हो सकते हैं।
अब यहाँ कुछ और अभक्ष्य पदार्थों के संबंध में स्पष्ट करते हैं जिनमें माँस, अंडे और वर्क तक पड़ते हैं।
एडीटिव्हज (यौगिक)- दुनिया में ‘प्रिजर्वड फूड’ खाद्य पदार्थ अधिक समय तक ठीक रहें इसके लिए कई रसायन मिलाए जाते हैं जिन्हें एडीटिव्हज (यौगिक) कहा जाता है। इन पैकेटों पर ‘एमलसीफायर्स फेटीएलिडस-471’ रसायन छपा होता है। यह बकरी या गाय की चर्बी से बनता है। पश्चिमी देशों में ऐसे पदार्थों पर भी ‘वेजिटेरियन फूड’ का भ्रामक लेबल लगा रहता है।
एल्कोहल, बियर,शराब, वाइन्स, द्राक्ष, दारू आसव-इनको रिफाइन करने के लिए सूखे खून अथवा मछली में से निकाले गए आयल गिलास का उपयोग होता है। बाघ की हड्डियों से बनी शराब को टाइगर वाइन कहते हैं।
बिस्किट- विदेशों में कई ब्रांड (छाप) बिस्किट गाय की चर्बी मिलाकर बनाते हैं। वहीं ल्हेपाउडर से बने बिस्कुट कुरकुरे बन जाते हैं। व्हेपाउडर, चीज (पनीर) बनाते समय उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है। इसमें तुरंत जन्मे बछड़े या बकरे की आंतों का अर्क होता है।
चीज (पनीर)- सख्त पनीर ‘रेनेट’ बकरे या बछड़े की आँत से निकाले गए ‘एन्जाइम’ अर्क से बनता है। सुअर के पेट की चर्बी से भी बनता है जिसे पेप्सिन कहते हैं। विमानों में विदेश यात्राओं के दौरान यह दिया जाता है जो पूर्णतः मांसाहारी है।
च्युइंगम- कई प्रकार के च्युइंगमों में ‘ग्लिसरीन’ का उपयोग होता है, जो गाय-बैल की चर्बी से बनती है। रग्ले च्युइंगल इत्यादि भी इसी पदार्थ से बनती है।
क्रिस्प- नास्ते में अधिकांशतः व्यक्ति कुरकुरी वस्तुएँ खाना चाहते हैं तो क्रिस्प या इसी प्रकार के अन्य खाद्य रख लेते हैं। यह चावल के आटा या मैदा से कुंडलाकर बनती है। इसमें ‘व्हे’ मांसाहारी चीज भी है।
फिश आइल-कई बिस्किट, पेस्ट्री और मार्जरीन में मछली के सस्ते तेल का प्रयोग होता है। यह पदार्थ मूंगफली या वनस्पति तेल से ही बनते हैं किन्तु इन्हें मुलायम बनाने के लिए इनमें मछली का तेल भी मिलाते हैं। रतौंधी की गोलियों में भी मछली का तेल होता है।
जिलेटिन- इसका बहु भाग गाय की हड्डियों, सींगों और खुरों से बनता है। केरल में जिलेटिन का पाउडर बनता है। जहाँ प्रतिदिन हजारों टन हड्डियाँ पाउडर के रूप में पैक होती है। इसी जिलेटिन का उपयोग जैली, आइसक्रीम,
चीज (पनीर), स्वीट्स, मिंट जैसे दैनिक उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में होता है। कई आइसक्रीमों में जिलेटिन के अलावा प्राणिज चर्बी (ई-471 नामक मांसाहारी एडीटिह्नज) का भी उपयोग होता है।
ऑर्गेनिक उत्पाद- विदेशों में ऑर्गेनिक अथवा अनाज (शाकाहारी) को बड़े शहरों की सुपर स्टोरों में बेचने से पहले रसायन में धोया जाता है, जिसमें सूखे खून (ड्राइड ब्लड) हड्डी या जानवरों के खुरों से बने पदार्थ या मछली के भुक्के (बुरादे) का उपयोग होता है।
सूप और सॉस- रेस्तरां या विदेशी स्टोरों में वेजीटेरियन सूप या सॉस में कई बार मछली या अंडे का उपयोग होता है। कई होटलों में खाद पदार्थ मशीनों में बनते हैं। मशीन से पहले चिकन (माँस) और बाद में साग-भाजी या अन्य वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
स्वीट एंड कन्फेक्शनरी- मुंबई एवं अन्य बड़े महानगरों में एक्स्ट्रा स्ट्राँग पोलो या ‘ट्रैबोर’ ब्रांड की ‘पिपरमेंट’ स्वीट्स बेची जाती हैं इनमें जिलेटिन अथवा गाय की हड्डियों से बने भुक्के (बुरादे) का अंश होता है।
ट्रेकीला- अमेरिका के मैक्सिकन रेस्तरां की ‘ट्रेकीला’ (विशिष्ट शराब) की प्रत्येक बोतल के तल में एक खास जीव रखा होता है जो शराब को उत्तेजक बनाता है। उसका अर्क शराब पीने वाले के पेट में जाता है।
टूथपेस्ट- विदेशी क्रेस्ट इत्यादि ब्रांडों के टूथपेस्ट में जिलेटिन होती है जो गाय की हड्डियों, खुरों से बनती है। भारत के भी कुछ ब्रांड्स इसी प्रकार का टूथपेस्ट या पाउडर बनाते हैं।
विटामिन डी, बी-12 की टिकियों में या उनकी तरल दवाइयों में प्राणिज चीं या हड्डियों का अंश होता है।
कैल्शियम की टिकिया- इसमें हड्डी का बुरादा होता है।
कैप्सूल-अधिकांश कैप्सूल जिलेटिन से बनते हैं। अधिकांश होमियोपैथिक दवाइयाँ घोर हिंसा से तैयार की जाती हैं। उनमें विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं, कीड़ों-मकोड़ों तक को मार कर मिलाया जाता है।
योगर्ट- विदेश में गाय के दूध से बना दही (योगर्ट) सुंदर पैकेट में बेचा जाता है। इसमें जिलेटिन का उपयोग होता है।
विदेशों में अधिकांशतः गाय का ही दूध मिलता है उसका दही (योगर्ट) थोड़ा ढीला जमता है, इसलिये उसमें जिलेटिन मिलाते हैं।
सेंट, तेल, साबुन, शैम्पू, नेल पॉलिश, क्रीम, ग्लिसरीन– इन सभी के अलावा इत्यादि प्रसाधनों में ज्यादातर जीवों की हिंसा होती है, इसलिए शाकाहारी प्रसाधनों का ही प्रयोग करना उचित है। अन्यथा नहीं।
कोल्ड स्टोरेज-स्टोर की कुछ वस्तुएँ जो आर्द्र होती हैं वे अभक्ष्य हैं। काला नमक, साबूदाना, होटल की जलेबी और केक भी अभक्ष्य है।
आइसक्रीम- अधिकांशत: आइसक्रीमों में जिलेटिन (मांसाहारी) पड़ता है अतः देख परख कर ही आइसक्रीम खाना चाहिए। फ्रिज में से निकालने के बाद 45 मिनट के अंदर ही उसका प्रयोग कर लेना चाहिए। बाजारू पदार्थों में पड़ने वाले फ्लेवर व कलर प्रायः सिंथेटिक्स होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
वर्क- मिठाइयों में लगी चाँदी के वर्क का इस्तेमाल मांसाहार के समान है, चाँदी का वर्क बनाने के लिए गाय को मार कर उसके पेट से आँत को निकालकर चाँदी जैसा पदार्थ या चाँदी उस पर लपेटकर लकड़ी से पीटा जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखा जाए तो वर्क का इस्तेमाल बहुत हानिकारक है, इससे कैंसर होने की संभावना रहती है। चमड़े या आंत में लपेटे जाने से यह मांसाहार की श्रेणी में आता है।
1. बाजार के बिस्किट, चॉकलेट, आइसक्रीम, पिज्जा, बर्गर, चाइनीज, चीज, मैगी, GM Food जैसी वस्तुएँ अभक्ष्य हैं।
2. विद्यांजलि, वैद्यनाथ, पूर्णायु, पतंजलि व विश्वसनीय अहिंसक कंपनियों के उत्पाद ही प्रयोग करें जिससे भारी पापों से बच सकें।