णमो उवज्झायाणं ” ७ अक्षर।
उत्तर: सब से संक्षिप्त मंत्र है ॐ, न्हां, न्हीं, न्हूँ, न्हौं, न्हः ये बीजाक्षर परमेष्ठि के ही हैं। न्हां (अरहंत) न्हीं (सिद्ध) न्हूँ(आचार्य) न्हौं (उपाध्याय) और न्ह: साधुपद के बीजाक्षर है।
प्र. ५० प्रथम पद णमो अरहंताणं के पाठान्तर नाम बतलाओ, उनमें अर्थ भेद हैं क्या ?
प्र. ६१: एक ही मंत्र के पुनःपुनः जाप्य करने से क्या लाभ होगा?
प्र. १२६ : णमोकार मंत्र में से श्रुतज्ञान की संख्या कैसे निकलती है?
उत्तर: णमोकार मंत्र के स्मरण से जो भावनाएँ उत्पन्न होती है, उनसे कषायों की मन्दता होती है तथा वे परिणाम समस्त कषायों को मिटाने में साधन बनते हैं। ये ही परिणाम आगे शुद्ध परिणामों की उत्पत्ति में भी साधना का कार्य करते हैं। अतएव भावरहित णमोकार मंत्र के स्मरण से उत्पन्न परिणामों द्वारा जब अपने स्वभाव घातक घातियाँ कर्म क्षीण हो जाते हैं तव सहज में वीतरागता प्रकट होने लगती है।
उत्तर : आध्यात्मिक अनुभव से उत्पन्न आनंद अलौकिक कहलाता है। इस प्रकार के अनुभव की उत्पत्त सत्संगति, तीर्थाटन, समीचीन ग्रन्थों का स्वाध्याय, प्रार्थना एवं मंगल वाक्यों के स्मरण, मनन और पठन से होती है। यही अनुभव आत्मा की अनंत शक्तियों की विकास भूमि है और इस पर चलने से आकुलता दूर होती है।
(११) किसी वस्तु की महिमा उसके गुणों के द्वारा व्यक्त होती है। इस महामंत्र के गुण अचिन्त्य है। इसमें इस प्रकार की विद्युत शक्ति विद्यमान है जिससे उच्चारण मात्र से पाप और अशुभ का समूल विध्वंस हो जाता है तथा परम विभूति व कल्याण की प्राप्ति होती है।
प्र. १९५ : जीवन में मूल प्रवृत्तियों का दमन या नियंत्रण के लिये णमोकार मंत्र आवश्यक हैं, कैसे?
उत्तर : यह मंत्र हृदय में आदर्श के प्रति और दृढ़ विश्वास उत्पन्न करता है जिससे मूल प्रवृत्तियों का दमन करने में बड़ी सहायता मिलती है। णमोकार मंत्र के उच्चारण, स्मरण, चिंतन, मनन और ध्यान द्वारा मन पर इस प्रकार के पहते हैं जिससे जीवन में श्रद्धा और विवेक उत्पन होना स्वाभाविक है। क्योंकि इसके बिना वहमीरवित नहीं रह सकता है। अता जीवन की मूल प्रवृतियों का दमन या नियंत्रण करने के लिये महामंगल वाक्य णमोकार मंत्र स्मरण परमावश्यक है।
उत्तर : सतत जाप्य करने से बुद्धि शुद्ध होती है, पाप नष्ट होते हैं। बुद्धि साफ व सरल होती है। नित्य आप से विचारों में विवेक आता है तथा शांति प्राप्त होती है।
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