शयनकक्ष में पलंग की जो रचना की जाती है। उसमें बॉक्स नहीं बनाना चाहिए। बॉक्स के लाभ— सामान रखने की जगह बन जाती है । बॉक्स बनाने के नुकसान— पलंग के नीचे झाडू नहीं लगती, सफाई नहीं होती। जीवों की उत्पत्ति होती है एवं जीवों का मरण होते रहता है। पलंग के बॉक्स के अंदर से जीवों को निकालने के लिए जीवों को मारने वाली दवा का इस्तेमाल किया जाता है। बॉक्स अनचाहे जीवों की कब्र बन जाता है एवं उसमें नकारात्मक ऊर्जा की उत्पत्ति होती है। शयनकक्ष के वातावरण की मधुरता कटुता में बदल जाती है। अनचाहे या अनजाने में नकारात्मक ऊर्जाओं की उत्पत्ति होने लगती है। बॉक्स हटाना संभव न हो तो उसकी साफ—सफाई पर विशेष रूप से ध्यान देवें बॉक्स के नीचे एवं अंदर फिनाइल की गोलियाँ अवश्य डाल देवें। शयनकक्ष के ऊपर या नीचे किचन नहीं होना चाहिए। किसी कारणवश कोई समाधान न निकलता हो तो जहाँ चूल्हा जलता है उस जगह से हटकर पलंग लगाना चाहिए।
२. दरवाजे
मुख्य द्वार प्राचीन पद्धति अनुसार दो पल्ले का बनाने चाहिए। अगर फ्लैट, मकान, कोठी में हर दरवाजा २ पल्ले का बनाना संभव हो तो उसे प्राथमिकता देनी चाहिए । दरवाजे में कब्जे लगाते समय इस चीज का ध्यान रखें । दरवाजे खोलने एवं बन्द करने में किसी प्रकार की ध्वनि न पैदा हो। ध्वनि का पैदा होना भी एक दोष का स्थान ग्रहण करता है। कब्जे की रगड़ की आवाज नकारात्मक उर्जा पैदा करने में सहायक है। कब्जे को ठीक कराने में एवं उसमें तेल और ग्रीसींग करके आवाज की उत्पत्ति न होने देना ऐसा प्रयास करना चाहिए । दरवाजे निर्विघ्न बगैर अवरोध के बगैर ध्वनि के खुलना श्रेष्ठ माना गया है।
३. तिजोरी या अलमारी
तजोरी और अलमारी रखने का स्थान उत्तर के मध्य में कुबेर स्थान पर शास्त्रों में वर्णित किया गया है। मेरे अपने भ्रमण काल में मेरा निजी अनुभव साउथ वेस्ट का कोना नैऋत्य स्थान पर उत्तरमुखी विराजमान करना चाहिए। अगर संभव न हो तो उत्तरमुखी विराजमान करना चाहिए। अगर संभव न हो तो पूर्वमुखी भी विराजमान कर सकते हैं। धातु (लोहे) की तिजोरी या अलमारी रखने के पहले उसकी चारों पायों के नीचे लकड़ी के गुटके या लकड़ी के स्टैण्ड पर ही रखना चाहिए। बगैर स्टैण्ड लगाये हुए रखने से भूमि के स्पर्श से ऊर्जाओं का क्षय होता है। पलंग वाली सफाई की बात यहाँ पर लागू हो जाती है। नैऋत्य कोण में विराजमान तिजोरी पर आईना नहीं होना चाहिए। अलमारी के अंदर में सेंट, इत्र, परफ्यूम नहीं होना चाहिए। सुई, वैंची, सरौता, चाकू नहीं होना चाहिए। कॉस्मेटिक, चमड़े से निर्मित मनीबैग, हैंडबैग, लेडिज हैंडबैग, बेल्ट इत्यादि हिंसक तरीके से बनायी गयी अशुद्ध वस्तुओं का रखना शास्त्र सम्मत नहीं है। रखना निषेध है। कहने का मुख्य उद्देश्य है अशुद्ध चीजें नकारात्मक ऊर्जाओं की उत्पत्ति करती है। लक्ष्मी स्वच्छ एवं शुद्ध जगह पर ही निवास एवं विचरण करती है। नीतिकारों का ये वचन है।
४. पानी की टंकी
पानी की टंकी का यहाँ तात्पर्य छत पर रखने वाली पानी की टंकी का है। आजकल ज्यादातर विद्वान यही कहते हैं कि पानी का औवरहेड टैंक साउथ वेस्ट में स्थापित होना चाहिए। उनका कहने का उद्देश्य नैऋत्य को भारी करना है। मेरे कुछ अनुभव प्रत्यक्ष परिणाम इससे कुछ भिन्न हैं। कोठी, बंगले, फ्लैट में मास्टर बेडरुम देने की जगह शास्त्र अनुकूल साउथ वेस्ट है तो क्या मालिक के कमरे के ऊपर पानी की टंकी लगाना उचित है। क्या पानी की टंकी रहने से वहाँ पानी की टंकी लीक नहीं करेंगी ? पानी की टंकी के नीचे सोना बीमारियों को दावत देना स्वास्थ्य खराब रखना है। नैऋत्य में पानी रीसना लक्ष्मी का क्षय है। कभी—भी नैऋत्य कोण में पानी की टंकी को स्थान न देवें। पश्चिम एवं दक्षिण के मध्य में जहाँ सीढ़ियाँ या बाथरूम बनी हो उसके उपर ही रखें । किसी भी शयनकक्ष के ऊपर नहीं। साथ—साथ इसका भी ध्यान रखें छत पर नैऋत्य कोण पानी की टंकी से नीचा न हो। उसका भी समाधान रखना चाहिए। पक्का कंस्ट्रक्शन नहीं होने पर वहाँ टेम्परेरी वंâस्ट्रक्शन करके समाधान कर लेना चाहिए।
५. फटे कपड़े
फटे कपड़ों के लिए नीतिकारों ने अलग—अलग जगह व्याख्याएँ की है। मूलरूप से सबका यही मानना है फटे कपड़ों का संग्रह एवं फटे कपड़े का व्यवहार दोनों ही दरिद्रता आने के संकेत हैं। फटे कपड़े पहनने से मनुष्य भावनात्मक दृष्टि से अपने आप को मानसिक रूप से कमजोर महसूस करता है। उसकी कार्य पद्धति संकीर्ण हो जाती है। अगर संभव न हो २—३ ही ड्रेस बनायें साफ—सुथरा पहने मानसिकता में बदलाव होगा। भावनाओं में परिवर्तन होगा आपको आगे बढ़ने का मार्ग अग्रसर होगा।
६. चित्र—(फोटो पेंटिंग)
प्राचीन समय से घर की सुन्दरता बढ़ाने के लिए चित्रों को लगाने की परम्परा चली आ रही है। फ्लैट, कोठी, बंगले के कमरों में वैâसे चित्र होने चाहिए। उन चित्रों से मानव जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है। क्या चित्र हमारा अहित कर सकते हैं । ये एक विचार करने वाला विषय है। किसी चित्र में जो चरित्र छिपा होता है जाने—अनजाने में उसके भाव हमें मिलते रहते हैं। भारतवर्ष में विश्व में किसी भी खाली चित्र की पूजा नहीं की जाती है जो स्मरणीय, वंदनीय है। उदाहरण के तौर पर महाभारत का चित्र जिसमें नारायण सारथी बने हुये हैं अर्जुन अपनी गांडीव पर तीर रखे हुए हैं चित्र को देखकर युद्ध की कुशलता तथा युद्ध में किए गये छल इत्यादि कई चीजों का अपने आप मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है। उसके विपरीत नेमी कुंवर (तीर्थंकर १००८ नेमीनाथ) का बारात से वैराग्य की ओर प्रस्थान हमें जाने — अनजाने में ये कह जाता है मूक जीवों का वध इस बारात के लिए हो रहा था। उनको जीवनदान देकर संसार का त्याग करके वीतरागता का मार्ग अपना लिया। इसी तरह जब भी किसी बेडरूम, स्टडीरूम, ड्राइंगरूम में कोई भी चित्र लगायें चित्र के पीछे छिपे हुए चारित्र का भी ध्यान रखें। चरित्रवान महापुरुषों के चित्र हमें जीवन अच्छे मार्ग पर जाने के लिये प्रेरित करता है। चित्र हमारे जीवन में परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से एक असर छोड़ जाता है । चित्र लगाने के पहले अपने मस्तिष्क का पूरा उपयोग करके चित्रों का चयन करें।
७. मांगलिक चिन्ह
मांगलिक चिन्ह का शाब्दिक अर्थ मांगलिक कार्यों में जिनका प्रयोग किया जाता है। ऐसे चिन्हों को अपने घर के मुख्य द्वारों पर लगाना श्रेष्ठकर है। ओम, श्री, स्वास्तिक ये चिन्ह जैन आम्नाय, अग्रवाल समाज, माहेश्वरी समाज एवं समस्त हिन्दू समाज के मान्य चिन्ह हैं। क्रिश्चियन क्रॉस चिन्ह से सम्मान करते हैं। सिख अपने धार्मिक चिन्ह को प्रधानता देते हैं। मुस्लिम ७८६ और ९२ नंबर को प्रधानता देते हैं। ७८६ और ९२ शब्द के शाब्दिक अर्थ हैं ७८६ मतलब बिसमिल्ला एरहमानों एरहिम और ९२ मतलब यामोहम्मद ।
८. फर्नीचर
आज आधुनिक युग में फर्नीचर का बहुत चलन हो गया है। फर्नीचर बनाने के लिए एक इंटीरियर डिजाईनर नियुक्त किया जाता है। वह आपके बजट के हिसाब से डिजाईन देने का प्रयास करता है। आपकी रुचि को प्रधानता देते हुए उसका प्रारुप तैयार करता है। मैंने अपने भ्रमणकाल में ये पाया है। आज फर्नीचर की डिजाईनें, सिलींग में पीओपी से बनी डिजाईनें रंगों का चयन, टेक्सचर इत्यादि काफी अर्थ खर्च करके बनाया जाता है। उनके दुष्प्रभाव देखने को मिले हैं। ज्यादातर डिजाईनें शास्त्र के विपरीत, स्वास्थ्य के विपरीत होती हैं। फर्नीचर बनाते समय निश्चित रूप से ध्यान रखें । रूम में नकली फूल (आर्टिफिशियल फूल) का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कुछ विशेष परिस्थिति में लगाना हो तो लगाकर उठा देना चाहिए।
९. इलेक्ट्रिक स्वीच
फ्लैट, बंगले, कोठी के हर कमरे में इलेक्ट्रीक स्वीच लगाते समय विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। उस कमरे के अग्नि कोण को प्रथम स्थान देना चाहिए। परिस्थिति की अनुकूलता न होने पर नॉर्थ वेस्ट (वायव्य कोण) में लगाना चाहिए। लिखने का मुख्य उद्देश्य यह है सर्वप्रथम भूखण्ड का वास्तु देखा जाता है। द्वितीय चरण में फ्लैट, बंगले, कोठी का देखा जाता है। तृतीय चरण में हर कमरे का अलग से वास्तु देखा जाता है।उस कमरे में रहने वाले सद्गृहस्थ पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है। उसका परिवर्तन करके लाभान्वित किया जा सकता है। अग्नि देव को उनका इच्छित स्थान देना श्रेष्ठकर है। सभी पाठकों को उपरोक्त सुझाव देने का मेरा एक ही उद्देश्य है अगर हम घर परिवर्तन नहीं कर सकते घर में संशोधन नहीं कर सकते, हमारी परिस्थिति उसके अनुकूल नहीं होती मगर जहाँ—जहाँ से नकारात्मक ऊर्जा आने की संभावनाएँ आती हैं उनको रोकना संभव है। हम सकारात्मक ऊर्जाओं का आने का रास्ता नहीं खोल पाते मगर नकरात्मक ऊर्जाओं को आने का रास्ता तो बन्द कर सकते हैं। मैंने भ्रमणकाल में जो अनुभव से पाया है वो आपके हाथ में अपने सुझावों के द्वारा लाभान्वित करने का प्रयास कर रहा हूँ । मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है उपरोक्त प्रयोग आपकी जिन्दगी में खुशहाली लाने में सहयोगी रहेगा। विद्वत्जन किसी प्रकार की त्रुटि हो उसे संशोधन कर हमारा ज्ञानवद्र्धन करें।