षट् आवश्यक
द्वारा -आर्यिका सुदृष्टिमति माताजी
प्र. ३४४ : किसी कार्य को सम्पादित करने के पूर्व कौन-कौनसी बातें विचारणीय हैं?
उत्तर : किसी भी कार्य के सम्पादित करने के पूर्व कुछ विषय आवश्यक विचारणीय होते हैं, जैसे प्रथम यह सोचे कि अमुक कार्य करना है तो क्यों? पुना इसे किस प्रकार करना चाहिये? इसका परिणाम भविष्य में क्या होगा? वर्तमान फल क्या है? पाँचवें यह व्यावहारिक जीवन का साधक है या आध्यात्मिक जीवन का? व्यावहारिक सिद्धि करने के साथ यह आध्यात्मिक जीवन का साधक हो न हो पर घातक तो नहीं होगा? इत्यादि प्रश्नों के साथ लोक विरुद्ध तो नहीं होगा, यह भी ध्यान रखना चाहिये। इस प्रकार विचार-विमर्श पूर्वक किया गया कार्य पूर्ण सफल होता है।
प्र. ३४५: पद कितने प्रकार का है?
उत्तर: अर्थपद, प्रमाणपद और मध्यमपद इस प्रकार पद तीन प्रकार का है।
प्र. ३४६: अर्थपद किसे कहते हैं?
उत्तर: उनमें से जितनों के द्वारा अर्थ का ज्ञान होता है वह अर्थपद है। यह स्थित अनवस्थित है क्योंकि अनियत अक्षरों के द्वारा अर्थ का ज्ञान होता हुआ देखा जाता है और यह बात असिद्ध भी नहीं है क्योंकि अ का अर्थ विष्णु हैं। इ का अर्थ काम है और क का अर्थ ब्रह्मा है। इस प्रकार इत्यादि स्थलों पर एक-एकअक्षरों से ही अर्थ की उपलब्धि होती है।
प्र.३४७ : प्रमाण पद किसे कहते हैं?
उत्तर: आठ अक्षरों से निष्पन्न हुआ प्रमाण पद है। वह व्यवस्थित है क्योंकि इसकी आठ संख्या नियत है।
प्र. ३४८ : मध्यम पद किसे कहते हैं?
उत्तर : अक्षरों को ग्रहण कर एक मध्यम पद होता है। यह भी संयोगी की संख्या की अपेक्षा अवस्थित है क्योंकि उसमें उक्त प्रमाण से अक्षरों की अपेक्षा वृद्धि और हानि नहीं होती। सूक्ष्म निगोद, लब्धपर्याप्त का जो जघन्य ज्ञान होता है उसका मान लब्ध्यक्षर है।
प्र. ३४९ : सामायिक के दो भेदों का स्वरूप बतलाओ।
उत्तर : स्वाध्यायादिक को नियत सामायिक कहते हैं तथा ईर्यापथादिक पालन करने को अनियत का सामायिक कहते हैं।
प्र. ३५० : आहार किसे कहते हैं?
उत्तर : औदारिक, वैक्रियिक और आहारक नामकर्म में से किसी एक के उदय से उस शरीर, वचन औ द्रव्यमान के योग्य नोकर्म वर्गणाओं के ग्रहण को आहार कहते हैं।
प्र. ३५१ : आहारक किसे कहते हैं?
उत्तर : औदारिकादि तीन शरीरों में से उदय में आये किसी शरीर के योग्य आहार वर्गणा, भाषा वर और मनोवर्गणा को नियत जीव समास में और नियत काल में नियत रूप से सदा ग्रहण करता है, आहारक कहते हैं।
प्र. ३५२ : कौन जीव अनाहारक होते हैं?
उत्तर: विग्रह गति में आये चारों गतियों के जीव, प्रतर और लोक पूरण समुद्घात करने वाले स जिन और सिद्ध जीव अनाहारक, शेष सब जीव आहारक हैं।
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