१ इंंद्रक का अर्थ अंतर्भूमि है । उड्ड आदिक विमान इन्द्रक कहलाते हैं ।
२ जो अपने पटल के सब बिलों में हो वह इन्द्रक बिल कहलाता है । देवों के विमानों में कल्पवासी देवोंं के विमानों के तीन भेद हैें –इंद्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक । जो मध्य में है वह इन्द्रक कहलाता है । सौधर्म स्वर्ग से लेकर अनुत्तर तक ३ इन्द्रक विमान हैं । ऋतु, विमल, चन्द्र आदि इन इन्द्रकों के क्रम से अच्छे – अच्छे नाम हैं सभी इन्द्रक विमान संख्यात योजन विस्तार वाले हैं ।
उत्तरकुरू मेंं स्थित मनुष्यों के एक बाल हीन चार सौ पचीस धनुष और एक लाख इकसङ्ग योजनों से रहित सात राजू प्रमाण आकाश में ऊपर -२ स्वर्ग पटल स्थित हैंं । मेरू की चूलिका के ऊपर उत्तरकुरू क्षेत्रवर्ती मनुष्यके एक बालमात्र के अंतर से प्रथम इन्द्रक स्थित है । लोक शिखर के नीचे ४२५ धनुष और २१ योजन मात्र जाकर अन्तिम इन्द्रक स्थित है । शेष इकसङ्ग इन दोनों इन्द्रकों के बीच में हैं । ये सब रत्नमय इन्द्रक विमान अनादिनिधन हैं ।