प्रथमानुयोग में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चार पुरुषार्थों, पुराण पुरुषों (त्रेसठ शलाका पुरुषों) का चरित, बोधि (सम्यग्ज्ञान) और समाधि का निधान हे और पुण्य रूप है, ऐसे समीचीन ज्ञान का आगम बोध कराता है।
करणानुयोग लोक और आलोक के विभाग को युग के परिवर्तन को, चार गतियों के परिभ्रमण का ज्ञान दर्पण के समान कराता है।
सम्यग्ज्ञान गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा रूप चरणानुयोग के सिद्धान्त को जानता है।
द्रव्यानुयोग रूपी दीपक से जीव और अजीव से दो तत्व, पुण्य तथा पाप, बन्ध और मोक्ष के विषय में सम्यग्ज्ञान रूपी प्रकाश का विस्तार करता है।
इस प्रकार सरस्वती के रूप में जिनवाणी की कल्पना कर हमारे आचार्यों ने प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात समझायी है। इन प्रतीकों में अर्थ गाम्भीर्य है। हमारे यहाँ प्रतीक पूजा का पुराना रिवाज है। आयागपट्ट प्रतीक पूजा के उदाहरण हैं।