
इण्डिया गेट से हुआ मंगल विहार- वह ऐतिहासिक दिवस बड़ा शुभ था जब प्रात:काल से ही अनेकों शुभ समाचार मिल रहे थे। विहार से पूर्व हुई विशेष सभा में अनेकों गणमान्य महानुभाव उपस्थित थे, जिनमें श्री निर्मल जी सेठी, श्री चव्रेश जैन, प्रो. रतन जैन, श्री सरोज जैन-तह. फतेहपुर, श्री वैलाशचंद जैन-लखनऊ रहे और सभी लोग इण्डिया गेट तक झण्डा लेकर अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक चले। कनॉट प्लेस से इण्डिया गेट तक पहुँची इस पदयात्रा में सभी के मुख पर प्रसन्नता थी कि भगवान महावीर की जन्मभूमि अब शीघ्र ही विश्व के मानस पटल पर छा जाएगी। पदविहार करने वाला प्रत्येक व्यक्ति भगवान महावीर एवं पूज्य माताजी के जयकारों से हर गली को अनुगुंजित कर रहा था। इण्डिया गेट पर पहुँचकर पूज्य माताजी ने देश के नाम अपना मंगल संदेश प्रसारित किया और फिर तो उस ऐतिहासिक स्थल से बढ़े माताजी के कदमों ने मानो कुण्डलपुर के इतिहास का प्रथम पृष्ठ ही लिख दिया।
सिद्धक्षेत्र चौरासी मथुरा में मंगल पदार्पण-११ मार्च को प्रात: ९.३० बजे अंतिम अनुबद्ध केवली श्री जम्बूस्वामी की निर्वाणभूमि चौरासी मथुरा तीर्थ पर पहुँचकर मंदिर दर्शन कर मन आल्हादित हो उठा। यहाँ आकर पता लगा कि आज से २०० वर्ष पूर्व यहाँ खुदाई में जिस स्थान पर जम्बूस्वामी के पाषाण चरण मिले हैं, तब से उसी स्थान पर तीर्थ बनाया गया है, उससे पूर्व यह तीर्थ नहीं था, हाँ! गाँव में अवश्य मंदिर रहे होंगे। यहाँ तीर्थ पर लगे शिलालेख में लिखा है कि जम्बूस्वामी ने ८४ वर्ष की आयु में ८४ लाख योनियों से छूटकर यहाँ से मोक्ष प्राप्त किया था, इसलिए इस क्षेत्र का ‘‘चौरासी मथुरा’’ नाम पड़ा। शाम ४ बजे पूज्य माताजी एवं हम सभी ने क्षेत्र परिसर का भ्रमण किया। १२ मार्च को मथुरा के जिनमंदिर में पूज्य माताजी ने जम्बूस्वामी के श्रीचरणों में केशलोंच किया। इस अवसर पर बल्लभगढ़, फरीदाबाद, पलवल, कामा, भरतपुर, कोसीकलां आदि स्थानों से बसों द्वारा काफी लोग इस केशलोंच समारोह को देखने हेतु पधारे। दिल्ली से संघपति लाला महावीर प्रसाद जी (सपत्नीक), प्रेमचंद जी, कमलचंद जी, अनिल जी, सत्येन्द्र जी, जिन्नो जी आदि कई लोग पधारे तथा समारोह के बाद जब कुण्डलपुर के शिलान्यास संबंधी मीटिंग हुई, तो कमलचंद जी-खारीबावली ने प्रसन्नमना होकर दिल्ली से पूरी एक रेलबोगी नि:शुल्क ले जाने एवं भोजन आदि संबंधी व्यवस्था अपनी ओर से करने की स्वीकृति प्रदान की। मथुरा के ६ दिवसीय प्रवास में जहाँ हमने जिनमंदिरों के दर्शन के साथ-साथ कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा संग्रहालय, कंकाली टीला आदि का अवलोकन किया, वहीं आचार्य श्री सुबलसागर महाराज की शिष्याओं-आर्यिका श्री अजितमती माताजी एवं सुमतिमती माताजी से मिलकर मन में बड़ी खुशी हुई। सरल स्वभावी माताद्वय पूज्य ज्ञानमती माताजी के दर्शन कर भावविभोर हो गर्इं और माताजी से दूर होते समय इनकी आँखों में अश्रु आ गए। वास्तव में साधु-साध्वियों का पारस्परिक मिलन भी बड़ा रोमांचक और वात्सल्यमयी रहता है।