प्रारंभ से ही दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर ने अपनी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों के माध्यम से भारत वर्ष की विशिष्ट संस्थाओं में एक विशेष स्थान पाया है।
इस संस्थान द्वारा निर्मित किया गया जम्बूद्वीप तीर्थ समाज द्वारा सदैव ‘‘धरती पर स्वर्ग’’ की उपमा से अलंकृत होता है। ऐसी संस्था, जिसके आदर्श अन्य तीर्थ एवं संस्थाओं के लिए वर्तमान समय में प्रासंगिक प्रतीत होते हैं।
अत: जिनधर्म की प्रभावना, जिनसंस्कृति का संरक्षण और तीर्थों की रमणीयता को विशेष प्रकाशमान करने हेतु इस अंक के माध्यम से स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के अनथक प्रयास से कुशलतापूर्वक संचालित हो रहे जम्बूद्वीप संस्थान/तीर्थ के कतिपय आदर्श गुण यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं-
(१) अध्यात्म और पर्यटन का अद्भुत संगम : जम्बूद्वीप तीर्थ
टेम्पल टूरिज्म का अद्भुत उदाहरण बनने वाले जम्बूद्वीप तीर्थ का सौंदर्य आने वाले प्रत्येक जैन-जैनेतर श्रद्धालुभक्त अथवा पर्यटकों को अपनी ओर विशेष आकर्षित करता है।
मंदिरों को हरे-भरे लॉन, बगीचे, आध्यात्मिक मनोरंजनों यथा नौका विहार, ऐरावत हाथी की सवारी, धार्मिक थिएटर, प्रदर्शनी, झाँकी, झूले आदि के माध्यम से कुछ इस तरह विकसित किया गया है, जिसके कारण वर्तमान की युवा पीढ़ी अध्यात्म की ओर विशेष आकर्षित होती है।
साथ ही बच्चों को भी मनोरंजन के साधनों के साथ तीर्थभूमि की यात्रा एवं भगवन्तों के दर्शन के संस्कार अनायास ही प्राप्त होते हैं। विगत ३७ वर्षों से इस तीर्थभूमि की वंदना हेतु भक्तजन सदा आते रहते हैं और सदा ही उनको जम्बूद्वीप तीर्थ का समागम मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।
(२) कलाकृति एवं ज्ञानार्जन का विशेष स्थल
इस तीर्थ पर सामान्य मंदिरों के साथ ही विशेष कलाकृतियों से समन्वित विभिन्न जिनमंदिरों का निर्माण भी किया गया है, जिनको देखते ही भक्तों एवं पर्यटकों का मन प्रफुल्लित हो उठता है।
विशेषरूप से जम्बूद्वीप रचना, कमल मंदिर, ध्यान मंदिर, तेरहद्वीप मंदिर, ॐ मंदिर, हीरक जयंती एक्सप्रेस आदि ऐसी अनूठी कृतियाँ निर्मित हैं, जिनकी कलाकृति देखकर भक्त मंत्रमुग्ध होते हैं और इसके साथ ही सभी को इन कृतियों से जैनधर्म का अनूठा ज्ञानार्जन भी होता है।
(३) जैन भूगोल विज्ञान का एकमात्र केन्द्र
जम्बूद्वीप तीर्थ पर केवल भगवान के दर्शन ही नहीं प्राप्त होते अपितु यहाँ जैनधर्म में निहित विज्ञान भी साक्षात् प्रगट होता है। जैनधर्म के अनुसार सृष्टि की भौगोलिक संरचना को जानने व समझने के लिए यह एक अद्भुत केन्द्र है।
यहाँ ‘जम्बूद्वीप रचना’ में मध्यलोक का प्रथम द्वीप जम्बूद्वीप, पुन: ‘तेरहद्वीप रचना’ में अकृत्रिम जिनालयों से समन्वित मध्यलोक के समस्त तेरहद्वीप तथा ‘तीनलोक रचना’ में मध्यलोक के साथ ही ऊध्र्वलोक में स्वर्गों की व्यवस्था तथा अधोलोक में नरक की व्यवस्था साक्षात् समझी जा सकती है।
(४) जम्बूद्वीप तीर्थ पर देश की महामहिम राष्ट्रपति जी का पदार्पण
भारतवर्ष के तीर्थों में जम्बूद्वीप तीर्थ की महिमा सदैव भक्तों द्वारा विशेषरूप से गाई गयी और पूज्य माताजी के आशीर्वाद से यहाँ बनी अनूठी कृतियों के अलावा यहाँ का आध्यात्मिक सौंदर्य ने देश और विदेश के सभी भक्तों व पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया।
इसी के साथ इस तीर्थ भूमि के महान प्रताप से यहाँ अनेकानेक अनूठे ऐतिहासिक आयोजन भी सम्पन्न हुए, जिनके कारण हस्तिनापुर की प्रसिद्धि में और भी चार-चाँद लगे। इसी शृँखला में वर्ष २००८ का दिसम्बर माह जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के लिए ‘गौरव दिवस’ के रूप में सिद्ध हो गया, जब पूज्य माताजी की प्रेरणा, आशीर्वाद व सान्निध्य में देश की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील ने २१ दिसम्बर २००८ को विश्वशांति अहिंसा सम्मेलन का उद्घाटन करके देश और विश्व के समक्ष अहिंसा का उद्घोष किया।
साथ ही महामहिम जी ने इस अवसर पर भगवान पाश्र्वनाथ एवं चन्द्रप्रभु का जन्मकल्याणक मनाते हुए पालना झुलाना व भगवान के सम्मुख रत्नवृष्टि करने का महान सौभाग्य भी प्राप्त किया। यह सम्पूर्ण जैन समाज के लिए विशेष गौरवपूर्ण उपलब्धि रही।
(५) श्रेष्ठ तीर्थ प्रबंधन
जम्बूद्वीप तीर्थ का एक मुख्य आदर्श है ‘सर्वोत्तम तीर्थ प्रबंधन’। इस तीर्थ पर आकर भक्तों को एवं समाज के अन्य कार्यकर्ताओं को इस बात की प्रेरणा प्राप्त होती है कि तीर्थ को किस प्रकार उचित प्रबंधन की दिशा प्रदान की जा सकती है।
यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को तीर्थ की चहुँ दिशाओं में साफ-सफाई, व्यवस्थित बागवानी, मंदिरों की उचित देख-रेख, तीर्थ के प्रत्येक दर्शनीय स्थल पर पर्याप्त स्टाफ की व्यवस्था, यात्रियों की सुविधा हेतु विशेष आवासीय व्यवस्था, जिसमें सामान्य कमरे से लेकर ए.सी. डीलक्स फ्लैट, कोठी, बंगले व हॉल की उपलब्धता सभी यात्रियों को विशेष आरामयुक्त प्रवास प्रदान करती है। तीर्थ पर विशाल भोजनशाला भी निर्मित है, जिसमें सभी यात्रियों को सात्विक एवं स्वादिष्ट भोजन प्राप्त होता है।
यात्रियों की उचित व्यवस्था हेतु तीर्थ पर दिन व रात्रि दोनों समय में अलग-अलग स्टाफ की व्यवस्था रहती है। आवश्यकतानुसार तीर्थ पर सतत विद्युत प्रदाय की व्यवस्था विशेष जनरेटर के माध्यम से उपलब्ध रहती है।
(६) तीर्थ पर प्रथम बार हैलीपैड और धार्मिक थिऐटर जैसा निर्माण
जम्बूद्वीप तीर्थ की अनूठी संरचना में यहाँ सर्वसुविधाओं के साथ विशेषरूप से हैलीपैड भी निर्मित किया गया है।
आने वाले विशेष अतिथियों, राजनेताओं का आगमन हैलीकाप्टर द्वारा जम्बूद्वीप स्थल पर सीधे तीर्थ परिसर में किया जा सकता है। इस हेतु यहाँ हैलीपैड का निर्माण किया गया है, जिसका उपयोग आये दिनों मुख्य अतिथियों के आगमन हेतु होता है तथा शासन-प्रशासन भी जम्बूद्वीप हैलीपैड के उपयोग से सदैव सुविधापूर्वक लाभान्वित होता है।
इस तीर्थ पर प्रथम बार धार्मिक थिऐटर का निर्माण भी किया गया है। पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के ७५वें जन्मोत्सव के अवसर पर निर्मित की गई हीरक जयंती एक्सप्रेस रेल की एक बोगी में सुन्दर थिएटर बनाया गया है, जिसमें यात्रियों को विभिन्न धार्मिक ज्ञान प्राप्ति हेतु फिल्म चलाई जाती है। इस थिएटर को देखकर भक्तजन विशेष आनंदित होते हैं और अनूठी कृति की प्रशंसा करते हैं।
(७) नित्य नूतन कृतियों का निर्माण
जम्बूद्वीप तीर्थ का इतिहास सदैव विकासशील रहा है। यहाँ जब भी यात्रियो का आगमन साल-डेढ़ साल में होता है, तब सदैव वे कोई न कोई नूतन कृति का दर्शन करके अपनी यात्रा को पुन:-पुन: सफल करते हैं।
सन् १९७४ से प्रारंभ हुए इस तीर्थ के विकास के बाद लगातार वर्तमान तक यहाँ मजदूरों एवं कारीगरों का विशेष जत्था नूतन कृतियों के निर्माण हेतु कार्यरत रहता है। यही कारण है कि मात्र दो एकड़ की भूमि पर इस तीर्थ योजना को प्रारंभ करने के उपरांत आज लगभग ४० एकड़ की भूमि में इस तीर्थ का विकास हो चुका है और नित्य ही नूतन कृतियाँ निर्मित करके समाज के श्रावकों, दर्शनार्थियों एवं पर्यटकों को संस्थान द्वारा विशेष ज्ञान लाभ का अवसर प्रदान किया जाता रहता है।
(८) हस्तिनापुर के इतिहास को प्रस्तुत करने के प्रयास
इस तीर्थ पर हस्तिनापुर के प्राचीन इतिहास को विभिन्न जिनमंदिरों के माध्यम से प्रदर्शित करने का प्रयास किया जा रहा है। हस्तिनापुर के इतिहास में विष्णु कुमार महामुनि द्वारा अकम्पनाचार्य आदि ७०० मुनियों की रक्षा करने का इतिहास इस तीर्थ पर नूतन जिनमंदिर के निर्माण स्वरूप में किया जा रहा है।
इसके अलावा हस्तिनापुर तीर्थभूमि पर युग की आदि में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को महाराजा श्रेयांस द्वारा आहारदान दिया गया था अत: इस स्मृति में यहाँ पर भगवान ऋषभदेव का आहार भवन विशेषरूप से निर्मित किया गया है।
चूँकि यह तीर्थ भूमि भगवान शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरहनाथ जैसे तीर्थंकर, चक्रवर्ती एवं कामदेव पद के धारी महामना भगवन्तों की जन्मभूमि रही है अत: यहाँ ग्रेनाइट पाषाण की अखण्ड शिला में ३१-३१ फुट उत्तुंग भगवान शांतिनाथ-कुंथुनाथ-अरहनाथ की विशाल खण्ड्गासन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठापित की गई हैं और वर्तमान में इन प्रतिमाओं से समन्वित अत्यन्त आकर्षक विशाल जिनमंदिर भी निर्मित किया जा रहा है।
तीर्थंकर जन्मभूमियों के इतिहास में किसी भी जन्मभूमि पर वहाँ जन्मे भगवान की इतनी विशाल तीन-तीन प्रतिमाएं दर्शन हेतु नहीं प्राप्त होती हैं अत: यह जम्बूद्वीप तीर्थ के लिए विशेष गौरव का विषय है।
(९) त्यागीव्रती ‘पीठाधीश’ के हाथ में संस्थान की कमान
आमतौर पर किसी भी धार्मिक संस्था को श्रावकों द्वारा संभालने की परम्परा देखने में आती है लेकिन जम्बूद्वीप तीर्थ एवं दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान का संचालन संस्थान के संवैधानिक नियमानुसार इस जम्बूद्वीप धर्मपीठ पर पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा ‘पीठाधीश’ पद की स्थापना सन् १९८७ में की गई, जिसके अनुसार सदैव इस संस्थान का संचालन किसी भी दसवीं या ग्यारहवीं प्रतिमा धारी आदि के द्वारा पीठाधीश पद के निर्वहन के साथ किया जायेगा।
इस पीठाधीश पद पर सर्वप्रथम पूज्य क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज को प्रतिष्ठापित किया गया, जिन्होंने अत्यन्त कुशलतापूर्वक संस्थान का सदैव कुशल संचालन करके कभी कोई विवाद की स्थिति नहीं आने दी, अपितु विकास ही विकास का चरम लक्ष्य रहा।
पुन: वर्तमान में इस पीठाधीश पद पर दशमी प्रतिमाधारी स्वस्तिश्री कर्मयोगी रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का मनोनयन किया गया, जो धर्म, समाज, तीर्थ एवं गुरु के प्रति सदैव समर्पित एवं नि:स्वार्थ सेवी व्यक्तित्व हैं। अत: इस जम्बूद्वीप संस्थान का यह आदर्श पुन: सभी के लिए अनुकरणीय है।
(१०) संस्थान के पदाधिकारियों का मर्यादित जीवन
जम्बूद्वीप तीर्थ एवं संस्थान का यह विशेष सौभाग्य रहा कि पूज्य माताजी की शरण में आने वाले इस संस्थान के प्रति समर्पित पदाधिकारी व सदस्यगणों का जीवन सदैव विशेष मर्यादित रहा।
सभी भक्तों की आस्था प्रथमाचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की परम्परा में रही और पूज्य माताजी की प्रेरणाओं को सभी ने सदा आदेश मानकर सहर्ष स्वीकार किया।
यह भी संस्थान की सफलता का एक राज कहा जा सकता है कि पूज्य माताजी से प्राप्त संस्कारों के कारण कमेटी के समस्त पदाधिकारी व सदस्यगणों ने एक माला में पिरोये गये मोतियों के समान एक जुट रहकर सदा संस्थान का हित सोचा और सभी का तन-मन-धन से दिया गया श्रम व सहयोग संस्थान के स्वर्णिम भविष्य व इतिहास के लिए अमृत सिद्ध हुआ।
(११) परम्परा भेद से परे परम्परा
जम्बूद्वीप तीर्थ की नीति सदैव सामंजस्य के पक्ष में रही है। इस तीर्थ पर पूज्य माताजी की प्रेरणा से सन् १९७५ में पारित प्रस्ताव के अनुसार विशेष शिलापट्ट लगाया गया है, जिसमें वर्तमान में चल रहे बीसपंथ और तेरहपंथ पर निर्विवाद रूप से दोनों दिगम्बर जैन मान्यताओं को बराबर सम्मान दिया गया है तथा दोनों ही परम्पराओं के मानने वाले श्रद्धालु भक्तों को अपनी-अपनी मान्यतानुरूप पूजा-पाठ-अभिषेक आदि करने का विशेष विधान प्रस्तुत किया गया है।
यह जम्बूद्वीप तीर्थ एवं संस्थान की स्पष्ट नीति का द्योतक है, जिसके माध्यम से कभी किसी श्रद्धालु भक्त के मन में मान्यता विशेष को लेकर कोई भेदभाव की स्थिति नहीं रहती है। अत: परम्परा भेद से परे परम्परा का यह आदर्श प्रत्येक तीर्थ के लिए उपयोगी है।