स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी ने अपने सम्पूर्ण जीवन को धर्म के प्रति समर्पित करते हुए अथक प्रयास करके जिस प्रकार जैनधर्म की पताका को फहराया है, वह समाज के लिए अत्यन्त अद्भुत उदाहरण है। मैं उनके कार्य करने की शैली को विगत लगभग ३५ वर्षों से बराबर देख रहा हूँ और उनकी आश्चर्यजनक कार्य शक्ति को देखकर मुझे तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि जैसे किसी दिव्य शक्ति ने उनके शरीर में स्थान बना लिया है।
शारीरिक कष्टों की ओर ध्यान न देकर अपनी सभी जैन आम्नायों का पूर्णरूप से पालन करते हुए नये तीर्थक्षेत्रों का निर्माण ज्ञानमती माताजी के सान्निध्य में आपके द्वारा किया जा रहा है, यह एक ऐसी गाथा है कि जो जैन इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में जुड़ती चली जा रही है। एक कार्यक्रम समाप्त नहीं होता है और उसके पहले ही दूसरे कार्यक्रम का आदेश हो जाता है और उन सब आदेशों का पालन रवीन्द्रकीर्ति जी सहर्ष सदा करते आए हैं और आज भी कर रहे हैं।
यह समाज को उनकी अद्भुत प्रतिभा शक्ति का आदर्श उदाहरण मानना चाहिए। कई बार मैं माताजी को कहता हूँ कि इतने कठिन और महान कार्य करने वाले रवीन्द्र कुमार जी को आपने इतनी अधिक तपस्या क्यों दे रखी है ? लेकिन जैनधर्म संयम पर आधारित है इसलिए उन्हें अपनी चर्या का पालन करना भी होता है। तीर्थों के निर्माण व जैनधर्म की प्रभावना हेतु वे ट्रेन में १२-१८ घंटे भी सफर करते हैं और पानी तक नहीं लेते।
लेकिन उनके चेहरे पर उतनी ही मुस्कुराहट सदा बनी रहती है। हम लोगों के चेहरे पर अवश्य ही ऐसा सफर करने के बाद मलिनता आ जाती है, लेकिन रवीन्द्र कुमार जी का चेहरा कभी किसी थकान से मलिन हुआ महसूस नहीं हुआ।
और उनके इसी हंसमुख एवं चुम्बकीय स्वभाव के कारण हजारों-हजार व्यक्ति उनके पास खिंचे चले आते हैं। वर्तमान में उनकी ६१ वर्ष की आयु हो चुकी है और जब वे २९ वर्ष के रहे होंगे, तब से मैं उनके साथ जुड़ा हुआ हूँ और उनकी कार्यशक्ति को मैंने बहुत नजदीक से पहचाना है। वास्तविकता तो यह है कि इस मानव लोक में आपका अवतरण माँ ज्ञानमती जी के लिए ही हुआ है। पिछले २० नवम्बर को ब्रह्मचारी रवीन्द्र कुमार जी को पूज्य माताजी ने जम्बूद्वीप का पीठाधीश बनाया।
मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ। इस पदारोहण के उपलक्ष्य में मैं यही कहना चाहता हूँ कि हम रवीन्द्रकीर्ति जी को क्या बधाई दे सकते हैं, बधाई का पात्र तो आज यह पूरा समाज है, जिसने रवीन्द्र कुमार जी को पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति जी के रूप में प्राप्त किया है। स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी जैसे व्यक्तित्व को पाकर समाज गौरवान्वित हुआ है। क्योंकि उनको यह पद मिला, यह बात उनके लिए कुछ भी मायने नहीं रखती है। वे तो पूर्व में भी कर्मयोगी रहे हैं और आगे भी सदा कर्मयोगी रहेंगे।
पद की भावनाओं में कभी रवीन्द्र कुमार जी ने या ज्ञानमती माताजी के किन्हीं भी शिष्यों ने कभी कोई कार्य नहीं किये। माताजी के मुख से निकली प्रेरणाओं को उनके संघ में हर शिष्य ने चाहे मोतीसागर जी रहे, चंदनामती माताजी रहीं या भाई जी रहे, या कोई भी ब्रह्मचारिणी जी रहीं, सबने पूज्य माताजी का आदेश मानकर नि:स्वार्थ भावों के साथ सदा उसका पालन किया और यही कारण रहा कि देश में भाई रवीन्द्र कुमार जी जैसे शिष्यों के बल पर पूज्य माताजी की समस्त योजनाएं सफलता को प्राप्त हुई, जिसका लाभ केवल इस समाज को ही मिला है।
मैं २० नवम्बर को भाई रवीन्द्र कुमार जी के पीठाधीश पदारोहण समारोह में किसी जरूरी व्यस्तता के कारण नहीं आ सका, लेकिन मैं मन-वचन-काय से उनके उस समारोह में अप्रत्यक्ष रूप से उपस्थित ही था। पुन: उनके पीठाधीश पदारोहण के उपलक्ष्य में उनके अंतरंग व्यक्तित्व को प्रकाशित करने हेतु संस्थान की मासिक पत्रिका सम्यग्ज्ञान का विशेषांक प्रकाशित करने की सूचना मुझे मिली और आज मैं अपनी अभिव्यक्ति को इस संक्षिप्त मंगल कामना संदेश के साथ प्रेषित कर पाया हूँ, यह मेरे लिए गौरव की बात है।
मैं रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी के प्रति अपनी विनम्र वंदना प्रेषित करते हुए उनके दीर्घ, स्वस्थ एवं मंगलमयी जीवन की कामना करता हूँ। उनके अंदर दिन-दूनी रात चौगुनी कार्यशक्ति का संचार होवे और उनके निर्देशन में पूज्य माताजी की हर प्रेरणा इस समाज के मध्य साकार रूप लेती रहे, यही मंगल कामनाएँ मेरे हृदय की पुकार बनकर उनके प्रति समर्पित है।