स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी को भाई रवीन्द्र जी के नाम से सारा भारत ही नहीं सारा विश्व जानता है। उनका परिचय देना आवश्यक नहीं है, वह खुद ही परिचित हैं। माताजी जो सपना देखती हैं, उसको साकार करने में भाई जी अपने तन-मन से सहयोग करते हैं। उनकी गुरु भक्ति का परिचय देखने को उनके जीवन में हमेशा मिला, उन्होंने कभी माताजी के किसी भी काम को इंकार नहीं किया ।
उन्होंने गुरु आज्ञा मानकर पीठाधीश के पद को भी शिरोधार्य किया। उनकी कर्मठता को देख कर अखिल भारतवर्षीय शास्त्री परिषद ने उन्हें १९९२ में ‘कर्मयोगी’ की उपाधि दी। १९९६ में वीर सेवा दल महाराष्ट्र द्वारा ‘धर्मसंरक्षणाचार्य’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। आप कुशल कार्यकर्ता हैं।
हम जहाँ भी जाते हैं आपके गुणों को सुनकर हम अपने आप को गौरवान्वित समझते हैं कि हम आपसे जुड़े हुए हैं। गिरनार जी की यात्रा में आचार्य श्री १०८ निर्मल सागर जी महाराज के मुख से आपके प्रति जो उद्गार थे कि आप एक साहसी एवं कुशल कार्यकर्ता हैं। जिन्होंने इतना सुन्दर हस्तिनापुर, अयोध्या, काकंदी, कुण्डलपुर, प्रयाग, राजगृही आदि तीर्थों का काम समय में ही पूरा कर दिया, तो हमारा सिर गर्व से ऊँचा उठ गया।
किसी कवि ने ठीक कहा है-‘‘आदमी साधनों से नहीं, साधना से महान होता है, अधर्मी सम्पदा से नहीं संस्कारों से महान होता है।’’ अंत में भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि स्वामी जी इसी तरह धर्म के कार्य करते रहें, हमें भी अपने साथ धार्मिक कार्यों में जोड़ते रहें।