स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वमाी जी दिगम्बर जैन समाज के एक ऐसे रत्न हैं, जिन्होंने अपना सारा जीवन समाज, गुरु एवं धर्म सेवा में समर्पित करके एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। स्वामी जी ने परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के शिष्य बनने का गौरव प्राप्त किया है। आपने सदैव पूज्य माताजी की सम्पूर्ण योजनाओं को साकाररूप देने में जो दिनरात परिश्रम किया, वह अनुकरणीय है।
चाहे जम्बूद्वीप निर्माण योजना हो या ज्ञानज्योति प्रवर्तन हो या भगवान महावीर जन्मभूमि के विकास का कार्य आपके द्वारा पूज्य माताजी की प्रेरणा से जहाँ प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की दीक्षा एवं केवलज्ञान भूमि प्रयाग में विशाल तीर्थ का निर्माण किया गया। जहाँ भगवान ऋषभदेव की निर्वाण स्थल कैलाश पर्वत का एवं तपोवन वटवृक्ष के नीचे भगवान ऋषभदेव की ध्यानस्थ प्रतिमा बनवाई एवं केवलज्ञान प्रतीक समवसरण का निर्माण कराकर ‘‘तपस्थली तीर्थ प्रयाग’’ नाम से तीर्थ बनाकर समाज को भूली हुई प्राचीन संस्कृति को पुन: तीर्थरूप में प्रदान किया।
आपकी अध्यक्षता में विश्व इतिहास भगवान वृषभदेव की १०८ फुट उत्तुंग विशाल प्रतिमा का निर्माण महाराष्ट्र की पावन तीर्थभूमि सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी में चल रहा है। आपके द्वारा कुण्डलपुर के अलावा पावापुर, गुणावां, राजगीर, सम्मेदशिखर जी, सनावद आदि अनेक स्थलों पर बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ पूज्य माताजी की प्रेरणा से विराजमान कराई गई है, जिसमें आपने अथक परिश्रम किया।
आपने भारत की राजधानी दिल्ली में चौबीस कल्पद्रुम महामण्डल विधान का एवं भगवान महावीर २६००वें जन्मकल्याणक के पावन अवसर पर २६ मण्डल मंडवाकर विश्व शांति महावीर विधानों का आयोजन सम्पन्न कराकर स्वर्णिम इतिहास बनाया है। आपके कार्यों की जितनी अनुशंसा की जाये, उतनी कम है। आप स्वस्थ रहकर इसी प्रकार धर्म की ध्वजा को आकाश की ऊँचाईयों तक ले जायें, ऐसी मेरी मंगलकामना एवं आपके चरणों मे वंदना है।