पुद्गल औ जीव ठहरते हैं, उनको जो होता सहकारी। वह द्रव्य अधर्म कहाता है, नहिं बल से ठहराता भारी।। जैसे चलते पथिकों को तरु, छाया नहिं रोके बलपूर्वक। रुकते को मात्र सहायक है, वैसे यह द्रव्य सहायक बस।।१८।।
ठहरते हुए पुद्गल और जीवों को ठहरने में जो सहायक है वह अधर्म द्रव्य है। जैसे-छाया पथिकों को ठहरने में सहकारी है किन्तु यह द्रव्य चलते हुए को रोकता नहीं है।