जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन द्रव्यों को अवकाश देने में योग्य आकाश द्रव्य है, ऐसा तुम जानो। जिनेन्द्रदेव द्वारा कथित इस आकाश द्रव्य के लोकाकाश और अलोकाकाश ऐसे दो भेद होते हैं।
धर्म, अधर्म, काल, जीव और पुद्गल ये पाँचों द्रव्य जितने आकाश में रहते हैं, वह लोकाकाश है और उससे परे चारों तरफ अलोकाकाश है फिर भी यह आकाश चैतन्य शून्य अचेतन ही है।