श्री गौतम स्वामी ने धर्म को पाँच प्रकार से कहा है। यथा—
चैत्यभक्ति में—
वस्तु स्वभाव धर्म है, उत्तम क्षमादि दश प्रकार के भाव धर्म हैं, चारित्र धर्म है और जीवों की रक्षा करना—दया करना यह धर्म है।
श्री समंतभद्र स्वामी ने कहा है—
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र धर्म है ऐसा धर्म के स्वामी—
जिनेन्द्र देव ने कहा है। इनसे विपरीत मिथ्यादर्शन, ज्ञान और चारित्र संसार के कारण हैं।
श्री गौतमस्वामी ने इन तीनों के लिये प्रतिक्रमण में कहा है—
मिच्छणाण-मिच्छदंसण-मिच्छचारित्तं च पडिविरदोमि, सम्मणाण-सम्मदंसण—सम्मचारित्तं च रोचेमि।’’
मिथ्याज्ञान, मिथ्यादर्शन और मिथ्याचारित्र से विरक्त होता हूँ, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र में रुचि रखता हूँ।