भगवान महावीर के समवसरण में गणिनी आर्यिका चन्दना महासाध्वी हुई हैं। अत: यहाँ पर उनका जीवन चरित दे रहे हैं।
वैशाली नगरी के राजा चेटक की रानी सुभद्रा के दश पुत्र और सात पुत्रियाँ थीं। धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, िंसहभद्र, सुकुंभोज, अकंपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास ये पुत्रों के नाम थे और प्रियकारिणी (त्रिशला), मृगावती, सुप्रभा, प्रभावती, चेलनी, ज्येष्ठा और चन्दना ये कन्याओं के नाम थे। बड़ी पुत्री प्रियकारिणी विदेह देश के कुण्डलपुर१ नगर के राजा सिद्धार्थ की रानी हुईं। इन्होंने ही भगवान् महावीर को जन्म दिया था। अन्य कन्यायें भी राजपुत्रों से ब्याही गयी थीं।
चेलनी का विवाह राजगृही के राजा श्रेणिक के साथ हुआ था। ज्येष्ठा ने यशस्वती आर्यिका के पास दीक्षा ले ली थी। तब चन्दना ने उन्हीं यशस्वती आर्यिका से सम्यग्दर्शन और श्रावक के व्रत ले लिए थे। यह चन्दना युवावस्था को प्राप्त हुई। तभी एक दिन अपने बगीचे में क्रीड़ा कर रही थी। अकस्मात् विजयार्ध पर्वत का एक मनोवेग नाम का विद्याधर राजा अपनी रानी के साथ आकाशमार्ग से जाता हुआ उधर से निकला। उसने चन्दना को देखा तब वह अपनी रानी को घर भेजकर चंदना का अपहरण कर लिया। उसी समय मनोवेगा रानी ने राजा के मनोभाव को न जानकर उसका पीछा किया और तर्जना की। वह मनोवेग विद्याधर रानी से डरकर उस कन्या को पर्णलघ्वी विद्या के बल से विमान से नीचे गिरा दिया। कन्या चंदना भूतरमण वन में ऐरावती नदी के किनारे गिर गई।
पंच नमस्कार मंत्र का जाप करते हुए चंदना ने वन में रात्रि बड़े कष्ट से बिताई। प्रात:काल वहाँ एक कालक नाम का भील आया। चंदना ने उसे अपने बहुमूल्य आभूषण दे दिए और धर्मोपदेश भी दिया जिससे वह बहुत ही संतुष्ट हुआ। तब उस भील ने चंदना को ले जाकर अपने भीलों के राजा िंसह को दे दी। िंसह भील कन्या से काम सम्बन्धी वार्तालाप करने लगा। चंदना की दृढ़ता को देख उस भील की माता ने उसे समझाकर चंदना की रक्षा की।
अनन्तर भील ने चंदना को कौशाम्बी नगरी के एक मित्रवीर को सौंप दिया। इसने अपने स्वामी सेठ वृषभसेन के पास चंदना को ले जाकर दिया और बदले में बहुत सा धन ले आया। सेठ ने चन्दना को उत्तम कुलीन कन्या समझकर उसे अपनी पुत्री के समान रखा था। एक दिन चन्दना सेठ के लिए जल पिला रही थी। उस समय उसके केशों का कलाप छूट गया था और जल से भीगा हुआ पृथ्वी पर लटक रहा था। उसे वह यत्न से एक हाथ से सँभाल रही थी। सेठ की स्त्री भद्रा ने जब चंदना का वह रूप देखा तो शंका से भर गई। उसने मन में समझा कि मेरे पति का इसके साथ संपर्क है। ऐसा मानकर वह बहुत ही कुपित हुई।
उस दुष्टा ने चन्दना को सांकल से बाँध दिया तथा उसे खाने के लिए मिट्टी के शकोरे में काँजी से मिला हुआ कोदों का भात दिया करती थी। ताड़न, मारण आदि के द्वारा वह उसे निरन्तर कष्ट पहुँचाने लगी थी। परन्तु चन्दना निरन्तर आत्मिंनदा करती रहती थी। उसने यह सब समाचार वहीं कौशाम्बी की महारानी अपनी बड़ी बहन मृगावती को भी नहीं कहलाया।
किसी एक दिन तीर्थंकर महावीर स्वामी मुनि अवस्था में वहाँ आहार के लिए आ गए। उसी समय चन्दना भगवान के सामने जाने के लिए खड़ी हुई। तत्क्षण ही उसके सांकल के बंधन टूट गये। उसके मुँड़े हुए सिर पर बड़े—बड़े केश दिखने लगे और उसमें मालती पुष्प की मालायें लग गईं। उसके वस्त्र, आभूषण सुन्दर हो गये। उसके शील के माहात्म्य से मिट्टी का सकोरा सुवर्ण पात्र बन गया और कोदों का भात शाली चावलों का भात बन गया।१ उस समय बुद्धिमती चंदना ने बहुत ही भक्तिभाव से भगवान का पड़गाहन किया और नवधाभक्ति करके विधिवत् भगवान को खीर का आहार दिया। उसी समय देवगण आ गए, आकाश से पंचाश्चर्य वृष्टि होने लगी। जय जयकार की ध्वनि से सारा नगर गूँज उठा। वहाँ बेशुमार भीड़ इकट्ठी हो गई। रानी मृगावती अपने पुत्र उदयन के साथ वहाँ आ गई। अपनी बहन चंदना को पहचान कर उसे अपनी छाती से चिपका लिया पुन: स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेर कर सारा समाचार पूछा। चंदना ने भी अपहरण से लेकर आज तक का सब हाल सुना दिया। सुनकर मृगावती बहुत ही दु:खी हुई पुन: चंदना को अपने घर ले आई।
यह देख भद्रा सेठानी और वृषभसेन सेठ दोनों ही भय से घबराए और मृगावती की शरण में आ गए। दयालु रानी ने उन दोनों से चंदना के चरण कमलों में प्रणाम कराया और क्षमा याचना कराई। चंदना ने भी दोनों को क्षमा कर दिया। तब वे बहुत ही प्रसन्न हुए और अनेक प्रकार से चंदना की प्रशंसा करते हुए चले गए। वैशाली में यह समाचार पहुँचते ही उसके वियोग से दु:खी माता—पिता, भाई—भावज आदि सभी लोग वहाँ आ गये और चंदना से मिलकर बहुत ही संतुष्ट हुए।२
भगवान महावीर को वैशाख सुदी दशमी के दिन केवलज्ञान प्रगट हो गया। इन्द्र ने समवसरण की रचना कर दी, किन्तु गणधर के अभाव में भगवान की दिव्यध्वनि नहीं खिरी। श्रावण वदी एकम को ६६ दिन बाद इन्द्र गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति ब्राह्मण को वहाँ लाए। उन्होंने भगवान के दर्शन से प्रभावित हो जैनेश्वरी दीक्षा ले ली और भगवान् के प्रथम गणधर हो गए। चंदना ने भी तभी आकर भगवान के पास आर्यिव्ाâा दीक्षा ले ली और सर्व आर्यिकाओं में गणिनी हो गई।
भगवान के समवसरण में ११ गणधर, चौदह हजार मुनि, छत्तीस हजार आर्यिकायें, एक लाख श्रावक और तीन लाख श्राविकायें थीं। उस समय सभी आर्यिकाओं ने चंदना से ही दीक्षा ली थी। यहाँ तक कि उनकी बड़ी बहन चेलना ने भी उन्हीं चंदना से ही दीक्षा ली थी। आजकल जो चन्दनबाला के नाटक में सेनापति द्वारा पिता को मारना, माता को मारना और चंदना को कष्ट देना आदि लिखा है सो गलत है और जो चंदना के बारे में लिखा है कि वह सेठ के पैर धो रही थी, सेठजी उसके केशों को हाथ से उठा रहे थे, यह भी गलत है। चंदना का विद्याधर द्वारा अपहरण हुआ तब उसके माता—पिता आदि दु:खी हुए हैं एवं वह सेठ के यहाँ रहती हुई सेठ को जल पिला रही थी। उत्तरपुराण में यह बात स्पष्ट है अत: उत्तरपुराण का स्वाध्याय करके सही ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।