यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो ‘छहढाला’ की इन दो पंक्तियों में कवि ने सारा शिक्षाशास्त्र भर दिया है। इस विषय के अंतर्गत मुख्यत: तीन ही विषय विचारणीय होते हैं— १. शिक्षा, २. शिक्षक,३. शिक्षार्थी । कविवर पं. दौलतरामजी ने ‘छहढाला’ की उक्त दो पंक्तियों में शिक्षा शास्त्र के उक्त तीनों विषयों का सारग्राही स्वरूप प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त की है। यथा—
१. शिक्षा — शिक्षा के विषय में कविवर का कहना है कि शिक्षा वही है जो शिक्षार्थी के सर्व दु:खों को दूर कर दे और उसे सुख शांति प्रदान करे। नियम से ‘दु:खकारी सुखकारी’ होनी चाहिए।
२. शिक्षक — शिक्षक के विषय में कविवर का कहना है कि वह ‘करुणाधारी’ होना चाहिए अर्थात् उनके हृदय में छात्र के हित की गहरी भावना होनी चाहिए। ‘करुणा’ शिक्षक का एक ऐसा मुख्य या केन्द्रिय गुण है जिसके बिना अन्य सारे गुण व्यर्थ हैं।
३. शिक्षार्थी — शिक्षार्थी के सम्बन्ध में कविवर का कहना है कि उसे भव्य (पात्र) होना चाहिए और उसे एकाग्र मन से सुनने वाला होना चाहिए। बस, इन्हीं दो बातों में शिक्षार्थी के समस्त गुण समाहित हो जाते हैं। अभव्य (अपात्र) को शिक्षा दी नहीं जा सकती और मन से न सुनने वाला शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकता।