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श्री पंचपरमेष्ठीसमुच्चय पूजा
August 3, 2024
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jambudweep
पूजा नं0-1
श्री पंचपरमेष्ठीसमुच्चय पूजा
-अडिल्ल छन्द-
अर्हत्सिद्धाचार्य, उपाध्याय साधु हैं।
कहे पंचपरमेष्ठी, गुणमणि साधु हैं।।
भक्ति भाव से करूँ, यहाँ पर थापना।
पूजूँ श्रद्धा धार, करूँ हित आपना।।1।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुसमूह! अत्र मम सन्निहतो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथाष्टकं (चाल-नन्दीश्वर श्री जिनधाम—–)
सुर सरिता का जल स्वच्छ, कंचन भृंग भरूँ।
भव तृषा बुझावन हेतु, तुम पद धार करूँ।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।1।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं—–।
मलयज चंदन कर्पूर, गंध सुगंध करूँ।
भव दाह करो सब दूर, चरणन चर्च करूँ।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।2।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो संसारतापविनाशनाय चंदनं—–।
पयसागर फेन समान, अक्षत धोय लिया।
अक्षय गुण पाने हेतु, पुंज चढ़ाय दिया।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।3।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं——-।
मचकुंद कमल वकुलादि, सुरभित पुष्प लिया।
मदनारिजयी पदकंज, पूजत सौख्य लिया।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।4।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं—-।
घेवर फेनी रस पूर्ण, मोदक शुद्ध लिया।
मम क्षुधा रोग कर चूर्ण, तुम पदपूज किया।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।5।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो क्षुधारोग निवारणाय नैवेद्यं—-।
दीपक की ज्योति प्रकाश, दशदिश ध्वांत हरे।
तुम पूजत मन को मोह, हर विज्ञान भरे।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।6।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं—-।
दशगंध सुगंधित धूप, खेवत कर्म जरें।
सब कर्म कलंक विदूर, आतम शुद्ध करें।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।7।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं—-।
अंगूर अनार खजूर, फल के थाल भरे।
तुम पद अर्चज भव दूर, शिवफल प्राप्त करे।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।8।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं—-।
जल चंदन अक्षत पुष्प, नेवज दीप लिया।
वर धूप फलों से पूर्ण, तुम पद अर्घ्य किया।।
श्री पंचपरमगुरुदेव, पंचमगति दाता।
भव भ्रमण पंच हर लेव, पूजूँ पद त्रता।।9।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं—-।
-दोहा-
पंचपरमगुरु के चरण, जल की धारा देत।
निज मन शीतल हेतु अर, तिहुं जग शांति हेत।।10।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल मल्लिका सित कमल, पुष्प सुगंधित लाय।
पुष्पांजलि कर जिन चरण, पूजूँ मन हरषाय।।11।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य-
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यो नमः
(108 सुगंधित पुष्प या लवंग से जाप्य करना।)
जयमाला
-सोरठा-
भवजलनिधी जिहाज, पंचपरम गुरु जगत में।
तिनकी गुणमणिमाल, गाऊँ भक्ति वश सही।।1।।
(चाल-हे दीनबन्धु—-।)
जैवंत अरिहंत देव, सिद्ध अनंता।
जैवंत सूरि उपाध्याय साधु महंता।।
जैवंत तीन लोक में ये पंचगुरु हैं।
जैवंत तीन काल के भी पंचगुरु हैं।।1।।
अर्हंत देव के हैं छियालीस गुण कहे।
जिन नाम मात्र से ही पाप शेष ना रहे।।
दशजन्म के अतिशय हैं चमत्कार से भरे।
कैवल्यज्ञान होत ही अतिशय जु दश धरें।।2।।
चौदह कहे अतिशय हैं देव रचित बताये।
तीर्थंकरों के ये सभी चौंतीस हैं गाये।।
हैं आठ प्रातिहार्य जो वैभव विशेष हैं।
आनंत चतुष्टय सुचार सर्व श्रेष्ठ हैं।।3।।
जो जन्म मरण आदि दोष आठदश कहे।
अर्हंत में न हों अतः निर्दोष वे रहें।।
सर्वज्ञ वीतराग हित के शास्ता हैं जो।
है बार बार वंदना अरिहंत देव को।।4।।
सिद्धों के आठ गुण प्रधान रूप से गाये।
जो आठ कर्म के विनाश से हैं बताये।।
यों तो अनंत गुण समुद्र सर्व सिद्ध हैं।
उनको है वंदना जो सिद्धि में निमित्त हैं।।5।।
आचार्य देव के प्रमुख छत्तीस गुण कहे।
दीक्षादि दे चउसंघ के नायक गुरु रहें।।
पच्चीस गुणों से युक्त उपाध्याय गुरु हैं।
जो मात्र पठन पाठनादि में ही निरत हैं।।6।।
जो आत्मा की साधना में लीन रहे हैं।
वे मूलगुण अट्ठाइसों से साधु कहे हैं।।
आराधना सुचार की आराधना करें।
हम इन त्रिभेद साधु की उपासना करें।।7।।
अरिहंत सिद्ध दो सदा आराध्य गुरु कहे।
त्रयविधि मुनी आराधकों की कोटि में रहें।।
अर्हंत सिद्ध देव हैं शुद्धातमा कहे।
शुद्धात्म आराधक हैं सूरि स्वात्मा लहें।।8।।
गुरुदेव उपाध्याय प्रतिपादकों में हैं।
शुद्धातमा के साधकों को साधु कहे हैं।।
पांचों ये परम पद में सदा तिष्ठ रहे हैं।
इस हेतु से परमेष्ठी ये नाम लहे हैं।।9।।
इन पाँच के हैं इक सौ तितालीस गुण कहे।
इन मूलगुणों से भी संख्यातीत गुण रहें।।
उत्तर गुणों से युक्त पाँच सुगुरु हमारे।
जिनका सुनाम मंत्र भवोदधि से उबारे।।10।।
हे नाथ! इसी हेतु से तुम पास में आया।
सम्यक्त्व निधी पाय के तुम कीर्ति को गाया।।
बस एक विनती पे मेरी ध्यान दीजिये।
कैवल्य ‘ज्ञानमती’ का ही दान दीजिए।।11।।
-दोहा-
त्रिभुवन के चूड़ामणि, अर्हंत सिद्ध महान।
सूरी पाठक साधु को, नमूँ नमूँ गुणखान।।12।।
अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। परिपुष्पांजलिः।
-दोहा-
पंचपरमगुरु की शरण जो लेते भविजीव।
रत्नत्रय निधि पाय के भोगें सौख्य सदीव।।13।।
।। इत्याशीर्वादः ।।
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