संसारी जीव की पहचान के चिन्ह को इन्द्रिय कहते हैं । शरीरधारी जीव को जानने के साधन रूप स्पर्शनादि पांच इन्द्रियां होती है ।वे हैं – स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण । प्रत्येक इन्द्रिय दो प्रकार की है – द्रव्येन्द्रिय व भावेन्द्रिय । मन को ईषत् इन्द्रिय स्वीकार किया गया है । ऊपर दिखाई देने वाली तो बाह्म इन्द्रियां है इन्हें द्रव्येन्द्रिय कहते हैं । इनमें भी चक्षुपटलादि तो उस उस इन्द्र्रिय के उपकरण होने के कारण उपकरण कहलाते है : और अन्दर में रहने वाली आँख की व आत्मप्रदेशों की रचना विशेष निवृत्ति इन्द्रिय कहलाती है । क्योंकि वास्तव में जानने कका काम इन्हीं इन्द्रियों से होेता है उपकरणों से नहीं । परन्तु इनके रहने वाले जीव के ज्ञान का क्षयोपशम व उपयोग भावेन्द्रिय है, जो साक्षात जानने का साधन । उपरोक्त छहों इन्द्रियों में चक्षुु और मन अपने विषय को स्पर्श किये ही जानती है , इसलिए अप्राप्यकारी है । शेष इन्द्रियां प्राप्यकारी हैं । संयम की अपेक्षा जिव्हा व उपस्थ ये दो इन्द्रियां अत्यन्त प्रबल हैं और इसलिए योगीजन इनका पूूर्णतया निरोध करते हैं ।