श्रीमज्जिनेन्द्र का ये जगत् ईशिता का ध्वज।
मकरध्वजादि शत्रु जीत का ये विजयध्वज।।
जिन धर्म का प्रतीक ये उत्तुंग महाध्वज।
विधिवत् यहाँ चढ़ाऊँ आज ये है जैन ध्वज।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्षीं भू: स्वाहा। विधियज्ञप्रतिज्ञापनाय पुष्पांजलि:।
जिनधाम के सन्मुख ध्वजा के यक्ष को यहाँ।
पुष्पांजलि कर मंत्र से बुलाऊँ मैं यहाँ।।
स्थापनादि कर यहाँ प्रसन्न मैं करूँ।
दिक्पाल दिक्कुमारियों का भी यजन करूँ।।२।।
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहिता: सर्वध्वजदेवता: आगच्छत आगच्छत संवौषट्।
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहिता: सर्वध्वजदेवता: तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ:।
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहिता: सर्वध्वजदेवता: भवत भवत वषट्।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्र:नामोह्रते भगवते श्रीमत्पद्ममहापद्म-तिगिंच्छकेसरि-पुंडरीक-महापुंडरीक-गंगासिंधुरोहिद्रोहितास्या-हरिद्हरिकांता-सीतासीतोदा-नारीनरकांता-सुवर्णकूलारूप्यकूला-रक्तारक्तोदाक्षीरांभोनिधिजलं स्वर्णघट- प्रक्षिप्तसर्वगंधपुष्पाढ्यं आमोदकं पवित्रं कुरु कुरु झ्रौं झ्रौं वं मं हं सं तं पं स्वाहा। जलाभिमंत्रणं।
ॐ ह्री स्वस्तये कलशस्थापनं करोमि स्वाहा।(नव कलश स्थापन करना)
ॐ ह्रीं नेत्राय संवौषट् कलशार्चनं करोमि स्वाहा।(कलश के पास अर्घ्य चढ़ावें)
(दर्पण में बिंबित सर्वाण्ह यक्ष आदि ध्वज देवताओं का इन्हीं नव कलशों से अभिषेक, १गंध लेपन, नेत्रोन्मीलन आदि करके अर्घ्य चढ़ावें)
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षसहित-सर्वध्वजदेवते इदं स्नानं गृहाण गृहाण स्वाहा।
ॐ सर्व राष्ट्रक्षुद्रोपद्रवं हर हर ॐ स्वस्ति भद्रं भवतु स्वाहा। (संप्रोक्षणं)
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नम: अरहंताणं। सर्वाण्हयक्षाय धर्मचक्रविराजिताय चतुर्भुजाय । सुवर्णवर्णाय गजारूढाय सर्वजननयनाल्हादकाय सुगंधानुलेपनं करोमि स्वाहा।
(सुगंधानुलेपनं)
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नम: सर्वाण्हयक्षस्य मुखवस्त्रं प्रक्षिपामि स्वाहा।
१(मुख वस्त्र प्रदानं)
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं नम: णमो अरिहंताणं सर्वाण्हयक्षाय श्यामवर्णाय यथोक्तलक्षणलक्षिताय सर्वजननयनाल्हादकराय नयनोन्मीलनं करोमि स्वाहा।
(नियनोन्मीलनविधानं)
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षाय इंद अर्घ्यं इत्यादि।
ॐ ह्रीं इंद्रादिदशदिक्पालकेभ्य: इदं अर्घ्यं।
ॐ ह्रीं अष्टदिक्कन्यकाभ्य: इदं अर्घ्यं।
(अनंतर ध्वज को उत्सव से नगर में घुमावें। पुन: ध्वजदंड की शुद्धि, मालावेष्टन, पंचामृताभिषेक, अर्घ्य आदि करें।)
ॐ ह्रीं श्रीं क्षीं नमोऽर्हते श्रीमत्पवित्रजलेन ध्वजदंडशुद्धिं करोमि स्वाहा।
(संप्रोक्षणं)
ॐ ह्रीं दर्पमथनाय नम: स्वाहा। (दर्भमालावेष्टनं)
ॐ णमो अरिहंताणं …. चत्तारिमंगलं …. ॐ ह्रीं शांतिं कुरु कुरु स्वाहा।
(इससे ध्वजदंड के अग्रभाग का पंचामृत अभिषेक करें)
पुन: ॐ नीरजसे नम: आदि से अर्चन करें।
पुन: गड्ढे में दूब दही मिश्रित धान्य स्थापित करें।
ॐ नीरजसे नम: इत्यादि से गड्ढे की भूमि की पूजा करें।
पुन: सुवर्णयुक्त परमान्न स्थापन करें। अनंतर ध्वजदंड स्थापित करें।
(पुन: दिक्पाल आदि के क्षुद्र ध्वजदंड स्थापित करें)
ॐ णमो अरिहंताणं स्वाहा। १०८ जाप्य।
(अनादि सिद्ध मंत्र से पंचामृत अभिषेक)
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्ष! इदं जलादिकं गृहाण-गृहाण स्वस्ति भद्रं भवतु स्वाहा। अर्घ्यं।
तीर्थेश व नवदेवता बहुविध जयादि सुर।
योगीन्द्र व त्रेसठ पुरुष व तत्वज्ञानि धुर।।
राजा अमात्य सर्व प्राणि राष्ट्र आदि की।
पीड़ादि हरें नित्य परमानंद करें भी।।३।।
सब्रह्मवृद्धिर्भूयात्, सद्धर्मवृद्धिर्भूयात्।
इह सकल-चैत्यालया अकृत्रिम-चैत्यालया इव स्वर्णमया रत्नमया ज्योतिर्मया भूयासुरश्रान्तं।
ॐ नित्योत्सवमासोत्सवपक्षोत्सववर्षोत्सवप्रमुखोत्सवानां समृद्धयोऽर्हतां मंदिरेषु भूयासुरश्रान्तम्।
भगवज्जिनेश्वर…..१विधानमहोत्सवप्रारंभे विधीयमानध्वजारोहणमुहूर्त: सुमुहूर्तो भूयात्।
त्रैलोक्यमयी ज्ञान जो शैवल्य रूप है।
इस ध्वज में करूँ कल्पना ये सर्व पूज्य है।।
रत्नत्रयी स्वरूप इसी ध्वजा दंड में।
मंगलसुवाद्य घोष सहित ध्वज चढ़ाऊँ मैं।।४।।
ॐ णमो अरिहंताणं स्वस्ति भद्रं भवतु, सर्वलोकशांतिर्भवतु स्वाहा। ध्वजारोहण मंत्र:।
ॐ ह्रीं अर्हं जिनशासनपताके सदोच्छ्रिता तिष्ठ-तिष्ठ भव-भव वषट् स्वाहा:।
जैनेन्द्र महायज्ञ की आदी में मान्य है।
जिन उत्सव दर्शकों का करता आह्वान है।।
संपूर्ण दु:ख हरे वे सुख समृद्धि भी करे।
इस जैनमहाध्वज को विधि से अर्घ हम धरें।।५।।
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्ष! इदं अर्घ्यं गृहाण गृहाण स्वस्ति भद्रं च भवतु स्वाहा। (अर्घ्योद्धारणं इति ध्वजारोहण विधानं।)