पूर्वादि चउ द्वार की, विधिवत् रक्षा हेतु।
कुमुद आदि सुर को जजूँ, निज पर मंगल हेतु।।
(तोरणों के पास आदि स्थानों में पुष्पांजलि क्षेपण करें।)
बहु धान्य अंकुरों से मंगल सुद्रव्य से।
मंगल कलश से शोभे वर स्वस्तिकादि से।।
जिनयज्ञ में सुवर्णदण्ड हाथ में धरें।
पूरब के कुमुद द्वारपाल विघ्न परिहरें।।२।।
ॐ ह्रीं कुमुदप्रतीहार! निजद्वारि तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: पुष्पांजलि:। इदं अर्घं पाद्यं गंधं अक्षतं पुष्पं चरुँ दीपं धूपं फलं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा।
(पूर्व दिशा में पुष्पांजलि क्षेपण कर अर्घ चढ़ायें।)
बहु धान्य अंकुरों से मंगल सुद्रव्य से।
मंगल कलश से शोभे वर स्वस्तिकादि से।।
जिनयज्ञ में सुवर्ण दंड हाथ में धरें।
दक्षिण दिशा में अंजनसुर विघ्न परिहरें।।३।।
ॐ ह्रीं अंजन प्रतीहार। निजद्वारि तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: पुष्पांजलि:। इदं अर्घं पाद्यं गंधं अक्षतं पुष्पं चरुँ दीपं धूपं फलं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा।
(पश्चिम दिशा में पुष्पांजलि क्षेपण कर अर्घ चढ़ावें।)
बहु धान्य अंकुरों से मंगल सुद्रव्य से।
मंगल कलश से शोभे वर स्वस्तिकादि से।।
जिनयज्ञ में सुवर्ण दंड हाथ में धरें।
पश्चिम दिशा में वामनसुर विघ्न परिहरें।।४।।
ॐ ह्रीं वामन प्रतीहार! निजद्वारि तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: पुष्पांजलि:। इदं अर्घं पाद्यं गंधं अक्षतं पुष्पं चरुँ दीपं धूपं फलं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा।
(उत्तर दिशा में पुष्पांजलि क्षेपण कर अर्घ चढ़ायें।)
बहुधान्य अंकुरों से मंगलसुद्रव्य से।
मंगल कलश से शोभे वर स्वस्तिकादि से।।
जिनयज्ञ में सुवर्णदंड हाथ में धरें।
उत्तर में पुष्पदंतदेव विघ्न परिहरें।।५।।
ॐ ह्रीं पुष्पदंतप्रतीहार। निजद्वारि तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: पुष्पांजलि:। इदं अर्घं पाद्यं गंधं अक्षतं पुष्पं चरुँ दीपं धूपं फलं बलिं स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां स्वाहा।
(उत्तरदिशा में पुष्पांजलि क्षेपण कर अर्घ्य चढ़ाएं।)
इति मंडपप्रतिष्ठा