ॐ आद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे मेरोर्दक्षिणभागे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे ….. प्रदेशे ….. देशे ….. ग्रामे ….. जिनचैत्ययालये वीरनिर्वाण संवत् ….. तमे ….. ईस्वी सन् ….. तमे ….. मासोत्तममासे ….. पक्षे ….. तिथौ ….. वासरे ….. विधानावसरे ….. यजमानस्य हस्ताभ्यां मंगलवुँभं स्थापयामि मंगलं भवतु इति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं आद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे मेरोर्दक्षिण भागे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे ….. प्रदेशे ….. देशे ….. ग्रामे ….. वीरनिर्वाण संवत् ….. तमे ….. वर्षे ….. मासे ….. पक्षे ….. तिथौ ….. वासरे ….. श्रीजिनचैत्यालये ….. विधानावसरे ….. अस्य ….. यजमानस्य हस्तेन अखण्डदीपस्य ज्योति: प्रज्वालयमि इदं मोहान्धकारमपहाय मम हृदये ज्ञानज्योति: स्फुरायमानं करोतु इति स्वाहा।
किसी भी मंगलकार्य के अवसर पर विधानाचार्य यजमान के ललाट में तिलक करते समय निम्न श्लोक बोलें—
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुंदकुंदाद्यो जैनधर्मोस्तु मंगलम्।।
अथवा—
स्ववंशतिलको भूया:, तिलको भारतस्य च:।
जिनपादप्रसादात्त्वं, त्रैलोक्यतिलको भव:।।
(चंदन या रोली से तिलक लगाकर उसमें अक्षत लगाकर मस्तक पर तीन बार अक्षत क्षेपण करें।)