वन्दन शत शत बार है,
षट्खण्डागम ग्रंथराज को, वन्दन शत शत बार है।
श्री सिद्धान्तसुचिन्तामणि टीका जिसमें साकार है।।
वीर प्रभू के शासन का, सबसे पहला यह ग्रंथ है।
लिखने वाले पुष्पदंत अरु, भूतबली निर्ग्रन्थ हैं।
श्री धरसेनाचार्य से जिनको, मिला ज्ञान भण्डार है।
षट्खण्डागम ग्रंथराज को, वंदन बारम्बार है।।१।।
वीरसेन सूरी ने इस पर, धवला टीका रच डाली।
प्राकृत संस्कृत के वचनों में, मोतीमाल बना डाली।।
गूढ़ रहस्यों सहित ग्रंथ वह, विद्वत्मणि सरताज है।
षट्खण्डागम ग्रंथराज को, वन्दन बारम्बार है।।२।।
गणिनी माता ज्ञानमती ने, नव इतिहास बनाया है।
संस्कृत टीका सरल रची, सिद्धान्तसार समझाया है।।
चिन्तामणि सम चिन्तित फल, देने में जो साकार है।
षट्खण्डागम ग्रंथराज को, वन्दन बारम्बार है।।३।।
श्री धरसेन व पुष्पदंत, आचार्य भूतबलि को वंदन।
वीरसेन गुरु को वंदूँ और, गणिनी ज्ञानमती को नमन।।
इनसे ही ‘‘चन्दनामती’’ यह मिला जिनागम सार है।
षट्खण्डागम ग्रंथराज को, वन्दन बारम्बार है।।४।।