(तर्ज-गोमटेश जय गोमटेश मम हृदय विराजो……..)
पार्श्वनाथ जय पार्श्वनाथ, मम हृदय विराजो-२
हम यही भावना भाते हैं, प्रतिक्षण ऐसी रुचि बनी रहे।
हो रसना में प्रभु नाममंत्र, पूजा में प्रीती घनी रहे।।हम०।।
हे पार्श्वनाथ आवो आवो, आह्वान आपका करते हैं।
हम भक्ति आपकी कर करके, सब दुख संकट को हरते हैं।।
प्रभु ऐसी शक्ती दे दीजे, गुण कीर्तन में मति बनी रहे।।हम०।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरगंगा का उज्ज्वल जल ले, प्रभु चरणों त्रयधार करूँ।
पुनर्जन्म का त्रास दूर हो, इसीलिए प्रभु ध्यान धरूँ।।
भव भव तृषा मिटाने वाली, पूजा जिन भगवान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं……….।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मलयागिरि का शीतल चंदन, केशर संग घिसाया है।
प्रभु के चरण कमल में चर्चत, भव संताप मिटाया है।।
तन मन को शीतल कर देती, अर्चा जिन भगवान् की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरं०।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं…..।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
चिन्मय परमानंद आतमा, नहीं मिला इन्द्रिय सुख में।
प्रभु को अक्षत पुंज चढ़ाते, सौख्य अखंडित हो क्षण में।।
इन्द्र सभी मिल करें वंदना, प्रभु के अक्षयज्ञान की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरं०।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं…….।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
रतिपति विजयी पार्श्वनाथ को, पुष्प चढ़ाऊँ भक्ती से।
निज आत्मा की सुरभि प्राप्त हो, निजगुण प्रगटे युक्ती से।।
ब्रह्मर्षीसुर स्तुति करते, चिच्चैतन्य महान् की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं…..।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
मालपुआ रसगुल्ला बरफी, जिनवर निकट चढ़ाते ही।
नाना उदर व्याधि विघटित हो, समरस तृप्ती प्रगटे ही।।
गणधर मुनिवर भी गुण गाते, महिमा जिन भगवान् की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं…..।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
केवलज्ञान सूर्य हो भगवन् ! मुझ अज्ञान हटा दीजे।
दीपक से मैं करूँ आरती, ज्ञान ज्योति प्रगटित कीजे।।
चक्रवर्ति भी करें वंदना, अतिशय ज्योतिर्मान की।।
।।जिनकी.।।वंदे जिनवरम्-४।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं….।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
सुरभित धूप धूपघट में मैं, खेऊँ सुरभि गगन फैले।
कर्म भस्म हो जाएं शीघ्र ही, जो हैं अशुभ अशुचि मैले।।
सम्यग्दर्शन क्षायिक होवे, मिले राह उत्थान की।।
।।जिनकी.।।वंंदे जिनवरम्-४।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं……।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
अनंनास मोसम्मी नींबू, सेव संतरा फल ताजे।
प्रभु के सन्मुख अर्पण करते, मिले मोक्षफल भव भाजें।।
जिनवंदन से निजगुण प्रगटे, मिले युक्ति शिवधाम की।।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योति आतम ज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं…..।
आवो हम सब करें अर्चना, पार्श्वनाथ भगवान् की।
जिनकी भक्ती से प्रगटित हो, ज्योती आतमज्ञान की।।
।।वंदे जिनवरम्-४।।
जल गंधादिक अर्घ्य सजाकर, जिनवर चरण चढ़ा करके।
रत्नत्रय अनमोल प्राप्त कर, बसूं मोक्ष में जा करके।।
इसी हेतु त्रिभुवन जनता भी, भक्ति करे भगवान् की।।
।।जिनकी०।।वंदे जिनवरम्-४।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं……।
कनक भृंग में मिष्ट जल, सुरगंगा सम श्वेत।
जिनपद धारा करत ही, भव जल को जल देत।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल कमल चंपा सुरभि, पुष्पांजलि विकिरंत।
मिले निजातम संपदा, होवे भव दुःख अंत।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
अथ पंचकल्याणक अर्घ्य
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका गर्भ कल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ०।।टेक०।।
अश्वसेन पितु वामा माता, तुमको पाकर धन्य हुए।
तिथि वैशाख वदी द्वितीया व, गर्भ बसे जगवंद्य हुए।।
प्रभु का गर्भकल्याणक पूजत, मिले निजातम सार है।।
पार्श्वनाथ०।।१।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णाद्वितीयायां श्रीपार्श्वनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं……।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ०।।
पौष कृष्ण ग्यारस तिथि उत्तम, वाराणसि में जन्म हुआ।
श्री सुमेरु की पांडुशिला पर, इन्द्रों ने जिन न्हवन किया।।
जो ऐसे जिनवर को जजते, हो जाते भव पार हैं।।
पार्श्वनाथ०।।२।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपार्श्वनाथजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं……।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका तपकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ०।।
पौषवदी ग्यारस जाति स्मृति, से बारह भावन भाया।
विमलाभा पालकि में प्रभु को, बिठा अश्ववन पहुँचाया।।
स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी, जजत मिले भव पार है।।
पार्श्वनाथ०।।३।।
ॐ ह्रीं पौषकृष्णाएकादश्यां श्रीपार्श्वनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं……।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका ज्ञानकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ०।।
चैत्रवदी सुचतुर्थी१ प्रातः, देवदारु तरु के नीचे।
कमठ किया उपसर्ग घोर तब, फणपति पद्मावति पहुँचे।।
जित उपसर्ग केवली प्रभु का, समवसरण हितकार है।।
पार्श्वनाथ०।।४।।
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाचतुर्थ्यां श्रीपार्श्वनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं…..।
वंदन शत शत बार है,
पार्श्वनाथ के चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका मोक्षकल्याणक जजते, मिले सौख्य भंडार है।।
पार्श्वनाथ०।।
श्रावण शुक्ल सप्तमी पारस, सम्मेदाचल पर तिष्ठे।
मृत्युजीत शिवकांता पायी, लोकशिखर पर जा तिष्ठे।।
सौ इन्द्रों ने पूजा करके, लिया आत्म सुखसार है।।
पार्श्वनाथ०।।५।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लासप्तम्यां श्रीपार्श्वनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं……।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
चिन्मूरत चिंतामणि, पार्श्वनाथ भगवान्।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, करूँ आप गुणगान।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंगानन्तचतुष्टय-बहिरंगाष्टमहाप्रातिहार्यलक्ष्मीसमन्विताय
‘श्रीमान्‘ इति नाम विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरङ्ग-बहिरंगपरिग्रहविरहितदिगम्बरमुद्रांकितमुनिगणस्वामिने
‘निर्ग्रन्थराट्’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वज्ञानादिगुणस्वरूपधनयुक्ताय ‘स्वामी’ इति गुणविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं द्वादशसभारूपगणाधिपतये ‘गणेश’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजगत्स्वामिने ‘विश्वनायक’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंस्वपुरुषार्थेन अर्हत्पदप्राप्ताय ‘स्वयंभू’ नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं वृषनामधर्मेण शोभिताय ‘वृषभ’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं हितोपदेशेन समस्तजीवपोषणाय अनन्तगुणधारकाय ‘भर्ता’
इति गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं समस्तपदार्थस्वस्मिन् प्रतिबिंबीकरणाय ‘विश्वात्मा’ इति
नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं पुनर्जन्मरहिताय ‘अपुनर्भव’ गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वपदार्थावलोकिने ‘सर्वदर्शी’ इति गुणविभूषिताय श्रीपार्श्व-
नाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रिभुवनस्वामिने ‘जगन्नाथ’ गुणविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं अर्हं धर्मस्वरूपात्मने ‘धर्मात्मा’ इति नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनहितकारिणे ‘धर्मबान्धव’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं अर्हं धर्मप्राणस्वरूपाय ‘धर्ममूर्ति’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वोत्कृष्टधर्मकारकाय ‘महाधर्मकर्ता’ इति नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्रायअर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं अर्हं परमधर्मदात्रे ‘धर्मप्रद’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं अर्हं विशिष्टैश्वर्यसहिताय ‘विभु’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्पर्शरसगंधवर्ण स्वरूपमूर्तगुणविरहिताय ‘अमूर्त’ नामविभूझ्र
षिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं अर्हं परमोत्कृष्टपुण्यस्वरूपाय ‘अत्यन्त पुण्यात्मा’ इति नाम-
समन्विताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तविरहिताय ‘अनन्त’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तवीर्यसहिताय ‘अनन्तशक्तिमान्’ इति नामधेयाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ हीं अर्हं भव्यजनशरणदानकुशलाय ‘शरण्य’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं अर्हं अखिललोकहितंकरस्व्ाामिने ‘विश्वलोकेश’ नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं अर्हं परमकारुणिकगुणान्विताय ‘दयामूर्ति’ गुणविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं अर्हं महत्पदप्रदानसमर्थमहाव्रतसहिताय ‘महाव्रती’ इति गुण-
विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वश्रेष्ठप्रशस्तवचनसहिताय ‘वाग्मी’ इति नामधारकाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं अर्हं समवसरणसभायां चतुर्दिग्मुखप्रदर्शिताय ‘चतुर्मुख’ नामप्रसिद्धाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वकीयगुणवृद्धिंकराय ‘ब्रह्मा’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्व-
नाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वकर्मविप्रमुक्ताय ‘निष्कर्मा’ इति नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वप्रकारेण पञ्चेंद्रियमनोविजयिने ‘निर्जितेन्द्रिय’ गुण-
समन्विताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं अर्हं कामदेवमल्लविजयिने ‘मारजित्’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तसंसारमूलकारणमिथ्यात्वविजयिने ‘जितमिथ्यात्व’
नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं अर्हं घातिकर्मविघातकाय ‘कर्मघ्न’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
ॐ ह्रीं अर्हं मृत्युमहामल्लस्यान्तकरणकुशलाय ‘यमान्तक’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३५।।
ॐ ह्रीं अर्हं दिग्वस्त्रधारकनिर्विकारनग्नमुद्रांकिताय ‘दिगम्बर’ नामविभू-
षिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३६।।
ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानेन त्रिभुवनज्ञायकगुणान्विताय ‘जगद्व्यापी’ इति
नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३७।।
ॐ ह्रीं अर्हं अखिलभव्यजनहितकारिणे ‘भव्यबंधु’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३८।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रैलोक्यगौरवपदप्राप्ताय ‘जगद्गुरु’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३९।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनमनोरथपूर्णकरणनिपुणाय ‘कामद’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४०।।
ॐ ह्रीं अर्हं जगज्जयिमदनरिपुमर्दकाय ‘कामहंता’ इति गुणविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४१।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रिभुवनजनातिप्रियसौंदर्यप्राप्ताय ‘सुन्दर’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४२।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनताल्हादनकराय ‘आनन्ददायक’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४३।।
ॐ ह्रीं अर्हं कर्मशत्रुविजयिनामपि वर्याय ‘जिनेंद्र’ नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४४।।
ॐ ह्रीं अर्हं अनन्तानुबंध्यादिकर्मविजयिस्वामिने ‘जिनराट्’ नामधारकाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४५।।
ॐ ह्रीं अर्हं संपूर्णकेवलज्ञानापेक्षया सर्वत्र विश्वव्यापकाय ‘विष्णु’ नामधारकाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४६।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रैलोक्यपूज्यपरमपदे स्थिताय ‘परमेष्ठी’ इति नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४७।।
ॐ ह्रीं अर्हं अनादिकालाद् ज्ञानस्वभावाय ‘पुरातन’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४८।।
ॐ ह्रीं अर्हं ज्ञानैकज्योतिर्मयाय ‘ज्ञानज्योतिः’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४९।।
ॐ ह्रीं अर्हं परमपावनस्वभावाय ‘पूतात्मा’ इति नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५०।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजगत्प्रसिद्धहरिहरादिष्वपि श्रेष्ठाय ‘महान्’ इति नामविशिष्टाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५१।।
ॐ ह्रीं अर्हं संसारिजन-इन्द्रियैरग्राह्याय ‘सूक्ष्म’ गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५२।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रिजगत्स्वामिने ‘जगत्पति’ नाम विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५३।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वोदयीपरम-अहिंसामयी धर्मचक्रप्रवर्तकाय ‘धर्मचक्रि’
गुणविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५४।।
ॐ ह्रीं अर्हं अत्यन्तशान्तस्वभावपरिणताय ‘प्रशान्तात्मा’ इति गुण-
समन्विताय श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५५।।
ॐ ह्रीं अर्हं कर्माञ्जनलेपविरहिताय ‘निर्लेप’ गुणसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५६।।
ॐ ह्रीं अर्हं द्रव्यस्वभावापेक्षया कल-शरीरविरहिताय ‘निष्कल’ नाम-
समन्विताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५७।।
ॐ ह्रीं अर्हं मृत्युमहामल्लविजयिने ‘अमर’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५८।।
ॐ ह्रीं अर्हं शुद्धबुद्धस्वभाव-स्वात्मोपलब्धिस्वरूपाय ‘सिद्ध’ नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५९।।
ॐ ह्रीं अर्हं परिपूर्णकेवलज्ञानयुक्ताय ‘बुद्ध’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६०।।
ॐ ह्रीं अर्हं जगत्ख्यातिप्राप्तात्मने ‘प्रसिद्धात्मा’ इति गुणविशिष्टाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंग-बहिरंगविभूतिधारकत्रिजगत्पूज्याय ‘श्रीपति’ नाम-
समन्विताय श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६२।।
ॐ ह्रीं अर्हं प्रसिद्धपुरुषाणामपि श्रेष्ठपदप्राप्ताय ‘पुरुषोत्तम’ नामसमन्विताय
श्रीपाश्व्र्रनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६३।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वभाषामयीदिव्यध्वनिस्वामिने ‘दिव्यभाषापति’ नाम-
विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६४।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वयंप्रकाशपुञ्जसुंदराय ‘दिव्य’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६५।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वकीयशुद्धबुद्धनित्यनिरंजनस्वभावात् च्यवनविरहिताय
‘अच्युत’ नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६६।।
ॐ ह्रीं अर्हं दिव्यैश्वर्यसमन्वितशतेन्द्रनम्रीभूतकरणसमर्थ-परमैश्वर्यविभूषिताय
‘परमेश्वर’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६७।।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंगबहिरंगतपश्चरणबलेन तपनशीलात्मस्वभावाय ‘महातपा’
इति नामसहिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६८।।
ॐ ह्रीं अर्हं कोटिसूर्यचन्द्रातिशायिप्रकाशसहिताय ‘महातेजा’ इति
नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६९।।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तिमशुक्लध्यानपरिणतस्वभावाय ‘महाध्यानी’ इति गुणसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७०।।
ॐ ह्रीं अर्हं द्रव्यकर्मभावकर्मनोकर्मरूपाञ्जनविरहिताय ‘निरञ्जन’ नामधार-
काय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अहिंसामयीपरमधर्माम्नायकर्त्रे ‘तीर्थकर्ता’ इति नामविशिष्टाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७२।।
ॐ ह्रीं अर्हं हेयोपादेयविचारविज्ञाय ‘विचारज्ञ’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७३।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वपरभेदविज्ञानबलेन सर्वोत्तमज्ञानप्राप्ताय ‘विवेकी’ इति
नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७४।।
ॐ ह्रीं अर्हं अष्टादशसहस्रशीलगुणभूषिताय ‘शीलभूषण’ -नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७५।।
ॐ ह्रीं अर्हं अपरिमितमाहात्म्यसमन्विताय ‘अनन्तमहिमा’ इति नामविभू-
षिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७६।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वभव्यजीवहितकरणसमर्थाय ‘दक्ष’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७७।।
ॐ ह्रीं अर्हं शरीरालंकरणकारणनानाभूषणविरहिताय ‘निर्भूष’ नामविभू-
षिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७८।।
ॐ ह्रीं अर्हं शत्रुनिवारणहेतुनानाविधायुध-शस्त्रविरहिताय ‘विगतायुध’
नामधारकाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७९।।
ॐ ह्रीं अर्हं लोकालोकज्ञायकाय ‘सर्वज्ञ’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८०।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वचराचरजगदवलोकनकराय ‘सर्वदृक्’ नामधारकाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं…….।।८१।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वजनहितैषिणे ‘सार्व’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८२।।
ॐ ह्रीं अर्हं अत्यन्तसौम्यस्वभावाय ‘सुसौम्यात्मा’ इति नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८३।।
ॐ ह्रीं अर्हं कर्मशत्रुविजयिजिनानां मुख्याय ‘जिनाग्रणी’ इति नाम-
विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८४।।
ॐ ह्रीं अर्हं अपराजितादिचतुरशीतिलक्षमंत्रस्वरूपाय ‘मंत्रमूर्ति’ नामधार-
काय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८५।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वदेवेषु श्रेष्ठमहापूजाप्राप्ताय ‘महादेव’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८६।।
ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्णिकायदेवानामुपरि श्रेष्ठपरमोत्तमदेवपदप्राप्ताय ‘देवदेव’
नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८७।।
ॐ ह्रीं अर्हं अत्यन्तस्वच्छपवित्रहृदयाय ‘अतिनिर्मल’ नामप्राप्ताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८८।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वकार्यपूर्णीकृताय ‘कृतकृत्य’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८९।।
ॐ ह्रीं अर्हं अष्टादशमहादोषविरहिताय ‘अतिनिर्दोष’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९०।।
ॐ ह्रीं अर्हं जगत्पालकस्वरूपाय ‘परंब्रह्मा’ इति नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्रायअर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अतिशयगुणधारकाय ‘महागुणी’ इति नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९२।।
ॐ ह्रीं अर्हं दिव्य-परमौदारिकदेहसमन्विताय ‘दिव्यदेह’ विभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९३।।
ॐ ह्रीं अर्हं अतिशयसौंदर्यगुणसमन्विताय ‘महारूप’ नामधारकाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९४।।
ॐ ह्रीं अर्हं स्वभावदृष्ट्या विनाशविरहिताय ‘नित्य’ नामसमन्विताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९५।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वशक्तिमद्मृत्युमल्लविजयिने ‘मृत्युंजय’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९६।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वकार्यकरणसमर्थाय ‘कृती’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९७।।
ॐ ह्रीं अर्हं मोक्षपदप्रापणकारणसर्वयम-नियमसमन्विताय ‘यमी’ इति
नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रेण्यारोहणसमर्थयतीनामीश्वराय ‘यतीश्वर’ नामविशिष्टाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९९।।
ॐ ह्रीं अर्हं षट्कर्मरूपजगत्सृष्टि-उपदेशकाय ‘स्रष्टा’ इति नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१००।।
ॐ ह्रीं अर्हं त्रिभुवनभव्यजनस्तुतियोग्याय ‘स्तुत्य’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०१।।
ॐ ह्रीं अर्हं अन्तरंगकर्ममलबहिरंगशरीरादिमलविरहित्पवित्राय ‘पूत’
नामविशिष्टाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०२।।
ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्विधदेवगणशतेन्द्रपूजिताय ‘अमरार्चित’ नामविभूषिताय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०३।।
ॐ ह्रीं अर्हं समस्तविद्यानां स्वामिने ‘विद्येश’ नामसमन्विताय श्रीपार्श्वनाथ-
जिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०४।।
ॐ ह्रीं अर्हं मनोवचनकाययोगनिमित्तात्मप्रदेश-परिष्पंदनक्रियाविरहिताय
‘निष्क्रिय’ नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०५।।
ॐ ह्रीं अर्हं दशलक्षण-रत्नत्रय-दयामय-वस्तुस्वभावरूपधर्मसमन्विताय
‘धर्मी’ इति नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०६।।
ॐ ह्रीं अर्हं सद्योजातबालकवन्निर्विकाररूपधारकाय ‘जातरूप’ नाम-
विभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०७।।
ॐ ह्रीं अर्हं मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलज्ञानिनां सयोग्ययोगिकेवलिनामपि
श्रेष्ठतमाय भव्यभाक्तिकजनानां ईप्सितकेवलज्ञानलक्ष्मीप्रदानकुशलाय ‘विदांवर’
नामविभूषिताय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०८।।
हे पार्श्वनाथ भगवन्! तुमको, जो एक मंत्र से भी यजते।
वे भविजन त्रिभुवन की लक्ष्मी, पाने में भी समरथ बनते।।
फिर जो जन एक सौ आठ-मंत्र से, अर्घ्य समर्पण करते हैं।
वे स्वात्मसिद्धि के इच्छुक जन, परमानंदामृत लभते हैं।।१०९।।
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वरोगशोकदुःख-दारिद्र्योपद्रवनाशनसमर्थाय श्रीमदा-
दिविदांवरपर्यंताष्टोत्तरशतनाममंत्रसमन्विताय संपूर्णऋद्धिसिद्धिसुखसंपत्तिप्रदायकाय
श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय पूर्णार्घ्यं….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं धरणेन्द्रपद्मावतीसेवित-चरणकमलाय श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय नमः।
(सुगंधित पुष्प, लवंग या पीले चावलों से १०८ बार मंत्र जाप्य करें।)
(शंभु छंद-तर्ज-चंदन सा वदन……….)
जय पार्श्व प्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।
जय जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।टेक०।।
नाना महिपाल तपस्वी बन, पंचाग्नी तप कर रहा जभी।
प्रभु पार्श्वनाथ को देख क्रोध वश लकड़ी फरसे से काटी।।
तब सर्प युगल उपदेश सुना, मर कर सुर पद को पाये हैं।।
जय०।।१।।
यह सर्प सर्पिणी धरणीपति, पद्मावति यक्षी हुए अहो।
नाना मर शंबर ज्योतिष सुर, समकित बिन ऐसी गती अहो।।
नहिं ब्याह किया प्रभु दीक्षा ली, सुर नर पशु भी हर्षाये हैं।
जय०।।२।।
प्रभु अश्वबाग में ध्यान लीन, कमठासुर शंबर आ पहुँचा।
क्रोधित हो सात दिनों तक बहु, उपसर्ग किया पत्थर वर्षा।।
प्रभु स्वात्म ध्यान में अविचल थे, आसन कंपते सुर आये हैं।।
जय०।।३।।
धरणेंद्र व पद्मावति ने फण पर, लेकर प्रभु की भक्ती की।
रवि केवलज्ञान उगा तत्क्षण सुर समवसरण की रचना की।।
अहिच्छत्र नाम से तीर्थ बना, अगणित सुरगण हर्षाये हैं।।
जय०।।४।।
यह देख कमठचर शत्रू भी, सम्यक्त्वी बन प्रभु भक्त बने।
मुनिनाथ स्वयंभू आदिक दश, गणधर थे ऋद्धीवंत घने।।
सोलह हजार मुनिराज प्रभू के, चरणों में शिर नाये हैं।।
जय०।।५।।
गणिनी सुलोचना प्रमुख आर्यिका, छत्तिस सहस धर्मरत थीं।
श्रावक इक लाख श्राविकायें, त्रय लाख वहाँ जिन भाक्तिक थीं।।
प्रभु सर्प चिन्ह तनु हरित वर्ण, लखकर रवि शशि शर्माये हैं।।
जय०।।६।।
नव हाथ तुंग सौ वर्ष आयु, प्रभु उग्र वंश के भास्कर हो।
उपसर्ग जयी संकट मोचन, भक्तों के हित करुणाकर हो।।
प्रभु महा सहिष्णू क्षमासिंधु, हम भक्ती करने आये हैं।।
जय०।।७।।
चौंतिस अतिशय के स्वामी हो, वर प्रातिहार्य हैं आठ कहे।
आनन्त्य चतुष्टय गुण छ्यालिस, फिर भी सब गुण आनन्त्य कहे।।
बस केवल ‘‘ज्ञानमती’’ हेतू, प्रभु तुम गुण गाने आये हैं।।
जय पार्श्व प्रभो! करुणासिंधो! हम शरण तुम्हारी आये हैं।।८।।
जो पूजें नित भक्ति से, पार्श्वनाथ पदपद्म।
शक्ति मिले सर्वंसहा, होवे परमानंद।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेंद्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं…….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः।
जो भव्य पार्श्वनाथ का विधान ये करें।
वे आधि व्याधि संकटादि कष्ट परिहरें।।
अतिशायि पुण्यबंध से ईप्सित सफल करें।
‘‘सज्ज्ञानमती’’ से अनन्त संपदा वरें।।१।।
इत्याशीर्वादः। पुष्पांजलिः।।