वासुपूज्य जिनराज की, करूँ थापना आज।
मंडल पर तिष्ठो प्रभो, पूरो मेरे काज।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
जल का स्वभाव है शीतलता, यह जगप्रसिद्ध अनुभव माना।
उस शीतलता की प्राप्ति हेतु, जल से धारा करने आना।।
श्रीवासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।१।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन इक है ऐसा पदार्थ, जिसमें भुजंग विष व्याप्त न हो।
उस चन्दन को ही लाया मैं, जिससे आत्मिक संताप न हो।।
श्रीवासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगल ग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।२।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षय पद प्राप्ती के प्रतीक में, अक्षत प्रस्तुत द्रव्य मेरा।
हे प्रभु! मुझको वह पद दे दो, जिससे हो प्रकट स्वभाव मेरा।।
श्री वासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।३।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
जो फूल सदा विकसित होकर, उपवन को करें सुशोभित हैं।
वे प्रभुचरणों में चढ़कर और, अधिक हो गये सुगंधित हैं।।
श्रीवासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।४।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
जिन सरस मधुर पकवानों से, हम तन की क्षुधा मिटाते हैं।
उनको प्रभु निकट चढ़ाने से, तन रोग स्वयं नश जाते हैं।।
श्री वासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।५।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
विद्युत के दीप धरातल का, अंधियारा दूर किया करते।
घृतदीपक से प्रभु आरति कर, हम मन का तिमिर दूर कर लें।।
श्रीवासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।६।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ले छैलछबीला अगर तगर, चंदन में कूट मिलाया है।
कर्मों के दहन हेतु मैंने, अग्नी में उसे जलाया है।।
श्री वासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।७।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
बादाम छुहारा लौंग आदि, उत्तम फल थाली में भरके।
जिनवर के सम्मुख भेंट करूँ, मनवाञ्छित सौख्य तभी मिलते।।
श्री वासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।८।।
ॐ ह्री मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल से फल तक ले अष्टद्रव्य, प्रभु वासुपूज्य अर्चना करूँ।
‘‘चन्दना’’ अनघ फल प्राप्ति हेतु, जिनवर पद शत वन्दना करूँ।।
श्री वासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।९।।
ॐ ह्री मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चरणों में धारा करने से, शाश्वत शांती मिल सकती है।
सांसारिक क्षणिक सुखों में नहिं, वैसी शांती मिल सकती है।।
श्री वासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।१०।।
शान्तये शांतिधारा।
जीवन बगिया में प्रभु भक्ती से, ही बहार आ सकती है।
पुष्पांजलि के द्वारा आत्मा में, सुरभि स्वयं आ सकती है।।
श्रीवासुपूज्य भगवान् मेरी, मंगलग्रह बाधा दूर करो।
तन मन का मंगल कर मुझमें, आध्यात्मिक शक्ती पूर्ण भरो।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
(अब मण्डल के ऊपर मंगलग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अर्घ्य चढ़ावें।)
तर्ज-आओ बच्चों………
आवो हम सब करें अर्चना, वासुपूज्य भगवान की।।
मंगलग्रह की बाधानाशक, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-४।।टेक.।।
काल अनादी से कर्मों का, ग्रह आत्मा के संग लगा।
आत्मनिधी को भी न ‘‘चन्दना’’, स्वयं जीव कर प्राप्त सका।।
इसीलिए अब पूजन कर लूँ, मिले राह निर्वाण की।
मंगलग्रह की बाधा नाशक, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्, वन्दे जिनवरम् ।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्य जिनेन्द्राय नमः।
हे वासुपूज्य देव! करूँ अर्चना तेरी।
हे वासुपूज्य देव! करूँ वन्दना तेरी।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।१।।
कुछ पुण्य के संयोग से, मानव जनम मिला।
लेकिन अशुभ के योग से, कुल जैन ना मिला।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।२।।
जैनत्व भी मिला तो न, उपयोग कर सका।
जिनवाणी को सुना न उसे, मन में धर सका।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।३।।
जब ज्ञान हुआ आपका, दरबार है सच्चा।
तब भक्तिभाव से शरण, लही करो रक्षा।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।४।।
चम्पापुरी के राजा, श्रीवसुपूज्य धन्य थे।
माता जयावती के घर, में बरसे रत्न थे।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।५।।
कल्याण करके अपना पुनः, जग को संवारा।
श्रीवासुपूज्य ने दिया, भव्यों को सहारा।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।६।।
अब आपकी छाया से मुझे, शांति मिली है।
मेरे हृदय में ‘‘चन्दना’’ इक, ज्योति जली है।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।७।।
इस अर्घ्य थाल को करूँ, अर्पित मैं चरण में।
रक्षा करो अब ले लो, अपनी ही शरण में।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।८।।
ॐ ह्रीं मंगलग्रहारिष्टनिवारकश्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
वासुपूज्य वसुपूज्य सुत, वन्दन करूँ त्रिकाल।
तभी पूज्य बन आत्मा, होगी मालामाल।।
इत्याशीर्वादः