तर्ज-जो नर पीवे जिनधर्म…………
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।टेक.।।
मस्तक में अज्ञान भरा है, श्रुत का सार नहीं भाता।
प्रभु चरणों में शीश झुका लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।१।।
कर्णेन्द्रिय को अब जिनवाणी, सुनने का अभ्यास नहीं।
मन्दिर में आ प्रवचन सुन लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।२।।
रंग बिरंगे रूप निरखना, इन अँखियन को भाता है।
प्रभु मुद्रा का तेज निरख लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।३।।
इत्रफुलेल सुगंधित द्रव्यों, को घ्राणेन्द्रिय चाह रही।
प्रभु के गुण की सुरभी ले लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।४।।
रसना अरु स्पर्शन को, खाने पीने का शौक चढ़ा।
प्रभु भक्ती का अमृत चख लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।५।।
पञ्चेन्द्रिय विषयों को प्रभु ने, त्याग दिया क्षण भर में ही।
इसीलिए इनकी छाया पा, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।६।।
जन्मकुंडली में यदि ये ग्रह, अशुभ जगह पर रहते हैं।
दुःख मिले यदि प्रभु पद नम लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।७।।
प्रभु भक्ती से ही ये सब ग्रह, उच्च और शुभ बन जाते।
पूजन से इनको शुभ कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।८।।
जन्म जन्म में संचित अघ, प्रभु नाममात्र से कटते हैं।
अतः नाम जिनवर का जप लो, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।९।।
तन मन धन का कष्ट दूर हो, आश यही ‘‘चन्दना’’ मेरी।
सब मिल अर्घ्य चढ़ाओ प्रभु को, रोग सभी नश जाएँगे।।
नवग्रह की पूजन सब कर लो, रोग सभी नश जाएँगे।
श्रीजिनवर की अर्चन कर लो, पाप सभी कट जाएँगे।।१०।।
दोहा- नवग्रह का ग्रह शान्त हो, इच्छित फल हो प्राप्त।
मन की शुद्धी पूर्ण कर, बनूँ शीघ्र मैं आप्त।।११।।
ॐ ह्रीं नवग्रहारिष्टनिवारक श्रीनवतीर्थंकरचरणेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
शान्तये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
शेरछंद- जो भव्यजीव नवग्रहों की, शान्ति चाहते।
वे सुखसमृद्धि प्राप्त करें, इस विधान से।।
यह जिनवरों की अर्चना, सम्यक्त्व क्रिया है।
फल भुक्ति मुक्ति ‘‘चन्दनामति’’ सार्थ हुआ है।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।