शीतल जिनेन्द्र जन्मस्थल को जजूँ मैं।
श्री भद्रिकापुरी पुण्यस्थल भजूं मैं।।
आह्वाननं कर यहाँ प्रभु को बुलाऊँ।
उन जन्मभूमि की पूजा भी रचाऊँ।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्र!
अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्र!
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्र!
अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
सुरगंगा के प्रासुक जल से, सोने का कलशा भर लाया।
पूजा में सहज चढ़ाने को, मेरे अन्तर्मन में आया।।
अध्यात्म सुधारस पीकर के, भव भव की तृषा बुझाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय जन्म-
जरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु वचनों सम शीतल चंदन, घिसकर कर्पूर मिला लाया।
तीरथ पद में चर्चन करने का, भाव सहज मन में आया।।
अपनी आत्मा में शीतलता का, भाव प्रगट करवाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय
संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु गुण सम धवल सुअक्षत के, पुंजों को मैं धोकर लाया।
पूजा में पुंज चढ़ाने को, मेरा अन्तर्मन हरषाया।।
निज शुद्ध अखंड प्राप्ति हेतु, अक्षत के पुंज चढ़ाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय अक्षय-
पदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
जिनवर कीर्ति सम पुष्पों से, पूजन का भाव हृदय आया।
अंजलि में भरकर पुष्प विविध, पुष्पांजलि मैंने बिखराया।।
हो नष्ट काम की व्यथा मेरी, आतमगुण को प्रगटाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय कामबाण-
विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
जिनवर भावामृत पिण्ड सदृश, नैवेद्य सरस बनवाया है।
पावन रज की पूजन हेतू, भक्ति से चरू चढ़ाया है।।
क्षुधरोग विनाशन हो मेरा, इस चिन्तन को प्रगटाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग
विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तीर्थंकर के कैवल्यसूर्य सम, जगमगता दीपक लाया।
मन से प्रभु जन्मस्थल जाकर, आरति करके अति हर्षाया।।
कर मोह नाश निज आत्मा में, केवल रवि को प्रगटाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय मोहांधकार
विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
जिनवर गुण सुरभि सदृश मैंने, चंदनयुत धूप बनाई है।
कर्मों के विध्वंसन हेतु, अग्नी में धूप जलाई है।।
सब कर्ममलों से रहित शुद्ध, क्षायिकगुण मुझको पाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्म-
दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
निज परमभाव सम सुखदायी, अमृतफल लेकर आया हूँ।
कर ध्यान प्रभू जन्मस्थल का, फल अर्पित करने आया हूँ।।
ज्ञानामृत फल आस्वादन कर, क्रम से शिवफल भी पाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय मोक्षफल-
प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल चंदन अक्षत पुष्प चरू, वर दीप धूप फल ले आया।
आठों द्रव्यों में रत्न मिला, ‘‘चंदनामती’’ मन हरषाया।।
प्रभु सम अनर्घ्य पद प्राप्ति हेतु, तीरथ को अर्घ्य चढ़ाना है।
शीतल जिनवर की जन्मभूमि, भद्रिकापुरी यश गाना है।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमिभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपद-
प्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भद्दिलपुर शुभ तीर्थ की, पूजा है सुखकार।
निज पर शांति के लिए, कर लूँ शांतीधार।।
शांतये शान्तिधारा
तीर्थंकर शीतलप्रभू, का उद्यान विशाल।
वही पुष्प अंजलि भरूँ, अर्पूं होउँ खुशाल।।
दिव्य पुष्पांजलिः
(इति मंडलस्योपरि सप्तमदले पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
जहाँ मात सुनन्दा ने महलों में, सोलह सपने देखे थे।
शुभ चैत्र कृष्ण अष्टमि तिथि थी, पति से उनके फल पूछे थे।।
उस गर्भकल्याणक से पावन, नगरी को नमन हमारा है।
अब गर्भवास दुख प्राप्त न हो, ऐसा अनुरोध हमारा है।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथगर्भकल्याणक पवित्रभद्रिकापुरी तीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
राजा दृढ़रथ के यहाँ माघ, कृष्णा द्वादशि को प्रभु जन्मे।
देवों के आसन कांप उठे, वे सब भद्रिकापुरी पहुँचे।।
उस जन्मकल्याणक से पावन, नगरी को नमन हमारा है।
अब पुनर्जन्म दुख प्राप्त न हो, ऐसा अनुरोध हमारा है।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मकल्याणक पवित्रभद्रिकापुरी तीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जहाँ ब्याह किया औ राज्य किया, शीतल प्रभु ने राजा बनकर।
फिर जन्मतिथी में ही दीक्षा, लेने चल दिये राज्य तजकर।।
उस तपकल्याणक से पावन, नगरी को नमन हमारा है।
प्रभु सम दीक्षा का योग मिले, ऐसा अनुरोध हमारा है।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथदीक्षाकल्याणक पवित्रभद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय
अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तिथि पौष वदी चौदश को जहाँ, शीतल को केवलज्ञान हुआ।
धनपति ने तत्क्षण नभ में अधर ही, समवसरण निर्माण किया।।
उस ज्ञानकल्याणक से पावन, नगरी को नमन हमारा है।
मन में सम्यक्त्व की ज्योति जले, ऐसा अनुरोध हमारा है।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथकेवलज्ञानकल्याणक पवित्रभद्रिका-पुरीतीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जहाँ पर शीतल तीर्थंकर के, हुए चार-चार कल्याणक हैं।
भद्रिकापुरी का कण-कण भी, पावन व पूज्य अद्यावधि है।।
चारों कल्याणक से पवित्र, नगरी को नमन हमारा है।
श्रद्धा भक्ति के साथ समर्पित, यह पूर्णार्घ्य हमारा है।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथगर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञानचतुःकल्याणक पवित्र
भद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं भद्रिकापुरीजन्मभूमिपवित्रीकृत श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय नमः।
तर्ज-बाबुल की दुआएं…….
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।
गुणमाल तीर्थ की सजाते चलो, आतम तीरथ सज जाएगा।।टेक.।।
धरती तो सब हैं एक सदृश, इस मध्यलोक के द्वीपों में।
हैं जीव व पुद्गल सभी जगह, तिर्यंच मनुज के रूपों में।।
प्रभु की गुणगाथा गाते चलो, आतम गुणमय बन जाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।१।।
उनमें ढाई द्वीपों के ही, अन्दर मनुष्य सब रहते हैं।
उससे आगे के किसी द्वीप में, मनुज नहीं जा सकते हैं।।
उनकी महिमा बतलाते चलो, आतम महान बन जाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।२।।
ढाई द्वीपों में प्रथम द्वीप, है जम्बूद्वीप कहा जाता।
उसमें दक्षिण दिश भरतक्षेत्र का, आर्यखंड है सुखदाता।।
उसकी नवगाथा गाते चलो, आतम नव कीरत पाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।३।।
उस आर्यखण्ड में त्रयकालों में, चौबिस तीर्थंकर होते।
उनमें ही वर्तमानकालिक, चौबिस जिन क्षेमंकर होते।।
उन जन्म की गाथा गाते चलो, आतम का बल बढ़ जाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।४।।
इन चौबिस जिन की जन्मभूमि, जिनशासन की कीरत मानीं।
इनमें भद्रिकापुरी नगरी, शीतलप्रभु की कीरत मानीं।।
उस तीर्थ को अर्घ्य चढ़ाते चलो, आतम अनर्घ्य पद पाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।५।।
इस जन्मभूमि की पूजन कर, निज जन्म को सार्थक करना है।
इस कर्मभूमि को वंदन कर, निज भव को वंदित करना है।।
अर्चन का भाव बढ़ाते चलो, आतम अर्चित बन जाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।६।।
शीतल प्रभु के कल्याण चार, भद्रिकापुरी इतिहास बने।
‘‘चन्दनामती’’ यह अर्घ्य थाल, हम सबके लिए वरदान बने।।
पूर्णार्घ्य की माल चढ़ाते चलो, आतम का मल धुल जाएगा।
जयमाल तीर्थ की गाते चलो, आतम तीरथ बन जाएगा।।७।।
जन्मभूमि की अर्चना , करे जन्म साकार ।
अर्घ्य समर्पण कर लहूँ, आत्म सौख्य भण्डार।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीशीतलनाथजन्मभूमि भद्रिकापुरीतीर्थक्षेत्राय जयमाला पूर्णार्घ्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
गीता छन्द-जो भव्यप्राणी जिनवरों की, जन्मभूमी को नमें।
तीर्थंकरों की चरणरज से, शीश उन पावन बनें।।
कर पुण्य का अर्जन कभी तो, जन्म ऐसा पाएंगे।
तीर्थंकरों की श्रँखला में ‘‘चन्दना’’ वे आएंगे।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।