जय जय तीर्थंकर तीर्थनाथ, तुम धर्मतीर्थ के कर्ता हो।
जय जय चौबीस जिनेश्वर तुम, त्रिभुवन गुणमणि के भर्ता हो।।
जय ऋषभदेव से वीर प्रभू तक, सबकी महिमा न्यारी है।
इन पंचकल्याणक सहित प्रभू को, नितप्रति धोक हमारी है।।१।।
चौबीसों जिन की जन्मभूमि का, अतिशय ग्रंथों में आया।
जहाँ पन्द्रह-पन्द्रह मास रतन-वृष्टि सुरेन्द्र ने करवाया।।
वह तीर्थ अयोध्या प्रथम तथा, कुण्डलपुर जन्मभूमि अन्तिम।
जहाँ तीर्थंकर माताओं ने, देखे सोलह सपने स्वर्णिम।।२।।
यूँ तो सब तीर्थंकर की शाश्वत जन्मभूमि है अवधपुरी।
लेकिन हुण्डावसर्पिणी में हो गईं पृथक् ये जन्मथली।।
इस कारण तीजे काल में ही, हुई कर्मभूमि प्रारंभ यहाँ।
तब नगरि अयोध्या धन्य हुई, हुआ प्रथम प्रभू का जन्म जहाँ।।३।।
उस शाश्वत तीर्थ अयोध्या में, इस युग के पाँच प्रभू जन्मे।
ऋषभेश अजित अभिनंदन एवं, सुमति अनंत उन्हें प्रणमें।।
गणधर मुनि एवं इन्द्र आदि से, वंद्य अयोध्या नगरी है।
वृषभेश्वर की ऊँची प्रतिमा, जहाँ तीर्थ की महिमा कहती हैैै।।४।।
जहाँ पाँच जिनेश्वर की टोंकों के, साथ बड़े दो मंदिर हैं।
जहाँ रायगंज के परिसर में, सम्पूर्ण व्यवस्था सुंदर हैं।।
आचार्य देशभूषण जी एवं, गणिनी माता ज्ञानमती।
इन उभय प्रेरणाओं से हुई, शुभ तीर्थ अयोध्या की प्रगती।।५।।
है बारम्बार नमन मेरा, उस तीर्थराज की धरती को।
युग-युग तक अमर रहे तीर्थंकर, की शाश्वत जन्मस्थलि वो।।
तीर्थंकर के पितु-मात तथा, वह महल भी मंगलकारी है।
प्रभु के पदरज से पावन तीरथ, का कण-कण सुखकारी हैै।।६।।
इन जन्मभूमियों की श्रेणी में, श्रावस्ती संभव प्रभु की।
कौशाम्बी पद्मप्रभ की वाराणसि सुपार्श्व पारस प्रभु की।।
चन्द्रप्रभ जन्में चन्द्रपुरी में, पुष्पदन्त काकन्दी में।
भद्रिकापुरी में शीतल जिन, जन्मे श्रेयाँस सिंहपुरि में।।७।।
इनको वन्दन कर जन्मभूमि का, जीर्णोद्धार विकास करो।
तीनों लोक में पूज्य तीर्थ भूमी से स्वयं प्रकाश भरो।।
जिससे यह आत्मा भी इक दिन, तीरथ स्वरूप को प्राप्त करे।
सांसारिक जन्ममरण आदिक, सब दुःखों का संताप हरे।।८।।
चम्पापुर नगरी वासुपूज्य की, जन्मभूमि से पावन है।
पाँचों कल्याणक से केवल, चम्पापुर ही मनभावन है।।
कम्पिलापुरी में विमलनाथ, है धर्मनाथ की रत्नपुरी।
श्रीशांति कुंथु अरनाथ तीन की, जन्मभूमि हस्तिनापुरी।।९।।
मिथिलानगरी में मल्लिनाथ, नमिनाथ जिनेश्वर जन्मे हैं।
मुनिसुव्रत जिनवर राजगृही, नेमी प्रभु शौरीपुर में हैं।।
कुण्डलपुर में महावीर प्रभू का, नंद्यावर्त महल सुन्दर।
प्राचीन छवी के ही प्रतीक में, ऊँचा बना सात मंजिल।।१०।।
महावीर प्रभू का छब्बिस सौवाँ, जन्मकल्याणक जब आया।
तब ज्ञानमती माताजी ने, कुण्डलपुर विकसित करवाया।।
महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर, का यश फैले जग भर में।
सब तीर्थंकर की जन्मभूमियों, का प्रचार हो घर-घर में।।११।।
ये सोलह तीर्थ सभी तीर्थंकर, के जन्मों से पावन हैं।
ये गर्भ जन्म तप ज्ञान चार, कल्याणक से भी पावन हैं।।
इनके वन्दन से निज घर में, लक्ष्मी का वास हुआ करता।
इनके वन्दन से आतम में, सुख शांती लाभ हुआ करता।।१२।।
भगवान न जब तक बन सकते, इन तीर्थोंं की यात्रा कर लो।
तीरथ यात्रा के माध्यम से, संसार महोदधि को तर लो।।
पूर्णार्घ्य महार्घ्य समर्पण कर, सब तीर्थ भाव से नमन करो।
पूजन का फल पाने हेतू, सब राग द्वेष को शमन करो।।१३।।
ज्यों राजहंस से मानसरोवर, की पहचान कही जाती।
त्यों ही जिनवर जन्मों से धरती, पावन पूज्य कही जाती।।
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थों का, यह विधान मंगलकारी।
करने व कराने वालों को, फल मिलता इससे सुखकारी।।१४।।
सम्यग्दर्शन में दृढ़ता हो, प्रभु भक्ति ही बस लक्ष्य रहे।
रत्नत्रय की हो प्राप्ति प्रभु, गुणगान में रसना दक्ष रहे।।
दुःखों का क्षय कर्मों का क्षय, ‘‘चन्दनामती’’ कर पाऊँ मैं।
सुगति में होवे गमन पुनः, क्रमशः शिवपद पा जाऊँ मैं।।१५।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकराणां जन्मभूमिअयोध्याप्रभृतिकुण्डलपुरपर्यन्त-
समस्तषोडशतीर्थक्षेत्रेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शान्तये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
गीता छन्द
जो भव्य प्राणी जिनवरों की, जन्मभूमि को नमें।
तीर्थंकरों की चरणरज से, शीश उन पावन बनें।।
कर पुण्य का अर्जन कभी तो, जन्म ऐसा पाएंगे।
तीर्थंकरों की शृँखला में, चन्दना वे आएंगे।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।