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अयोध्या
02. श्री नेमिनाथ पूजा
August 28, 2024
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jambudweep
श्री नेमिनाथ पूजा
-अथ स्थापना-
(तर्ज-करो कल्याण आतम का……)
नमन श्री नेमि जिनवर को, जिन्होंने स्वात्मनिधि पायी।
तजी राजीमती कांता, तपो लक्ष्मी हृदय भायी।।
करूँ आह्वान हे भगवन्! पधारो मुझ मनोम्बुज में।
करूँ मैं अर्चना रुचि से, अहो उत्तम घड़ी आई।।१।। नमन श्री…।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक-
(तर्ज-ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान् की सूरत क्या होगी…..)
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
भव भव में नीर पिया, नहिं प्यास बुझा पाये।
तुम पद धारा देने, पद्माकर जल लाये।।
निज का अघमल धोने के लिए, जलधारा करने आये हैं।।
भगवान्.।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
चंदन चंदा किरणें, नहिं शीतल कर सकते।
तुम पद अर्चा करने, केशर चंदन घिसके।।
तनु ताप शांत हेतू चंदन, चरणों में चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आये हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
निज सुख के खंड हुए, नहिं अक्षय पद पाये।
सित अक्षत ले करके, तुम पास प्रभो! आये।।
अविनश्वर सुख पाने के लिए, सित पुंज चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्.।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आए हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
हे नाथ! कामरिपु ने, त्रिभुवन को वश्य किया।
इससे बचने हेतू, बहु सुरभित पुष्प लिया।।
निज आत्म गुणों की सुरभि हेतु, ये पुष्प चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्.।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आए हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
बहुविध पकवान चखे, नहिं भूख मिटा पाये।
इस हेतू चरु लेकर, तुम निकट प्रभो! आये।।
निज आत्मा की तृप्ती के लिए, नैवेद्य चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्.।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आए हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
निज मन में अंधेरा है, अज्ञान तिमिर छाया।
इस हेतू दीपक ले, प्रभु पास अभी आया।।
निज ज्ञान ज्योति पाने के लिए, हम आरति करने आये हैं।।
भगवान्.।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आए हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
कर्मों ने दु:ख दिया, तुम कर्मरहित स्वामी।
अतएव धूप लेके, हम आये जगनामी।।
सब अशुभकर्म के भस्महेतु, हम धूप जलाने आये हैं।।
भगवान्.।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आए हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
बहुविध के फल खाये, नहिं रसना तृप्त हुई।
ताजे फल ले करके, प्रभु पूजूँ बुद्धि हुई।।
इच्छाओं की पूर्ती के लिए, फल अर्पण करने आये हैं।।
भगवान्.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नेमिनाथ! तुम भक्ती से, निज शक्ति बढ़ाने आए हैं।
भगवान् -२ तुम्हारे चरणों की, हम पूजा करने आये हैं।।
प्रभु तुम गुण की अर्चा, भवतारन हारी है।
भवदधि में डूबे को, अवलंबनकारी है।।
निज रत्नत्रय प्राप्ती के लिए, हम अर्घ्य चढ़ाने आये हैं।।
भगवान्.।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शेर छंद- यमुना नदी का नीर स्वर्णभृंग में भरूँ।
श्रीनेमिनाथ के चरण में धार मैं करूँ।।
चउसंघ में सब लोक में भि शांति कीजिए।
बस ये ही एक याचना प्रभु पूर्ण कीजिए।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
हे नेमि! नीलकमल आप चिन्ह शोभता।
ये सुरभि पुष्प भी तो घ्राण नयन मोहता।।
प्रभु पाद कमल में अभी पुष्पांजलि करूँ।
सब रोग शोक दूर हों निज संपदा भरूँ।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।।
अथ पंचकल्याणक अर्घ्य
आवो हम सब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-४।।
श्रीसमुद्रविजय शौरीपुरि, नृप पितु मात शिवादेवी।
गर्भ बसे शुभ स्वप्न दिखाकर, तिथि कार्तिक शुक्ला षष्ठी।।
गर्भकल्याणक पूजा करते, मिले राह कल्याण की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।१।।
ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लाषष्ठ्यां श्रीनेमिनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-४।।
श्रावण शुक्ला छठ में मति श्रुत, अवधिज्ञान प्रभु जन्मे थे।
मेरू पर जन्माभिषेक में, देव देवियाँ हर्षे थे।।
जन्मकल्याणक पूजा करते, मिले राह उत्थान की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।२।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठ्यां श्रीनेमिनाथजिनजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-४।।
चले ब्याहने राजुल को, पशु बंधे देख वैराग्य हुआ।
श्रावण सुदि छठ सहस्राम्र वन, में प्रभु दीक्षा स्वयं लिया।
दीक्षा तिथि जजते मिल जावे, बुद्धि आत्मकल्याण की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।३।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लाषष्ठ्यां श्रीनेमिनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-४।।
आश्विन सुदि एकम पूर्वाण्हे, ऊर्जयंत गिरि पर तिष्ठे।
केवलज्ञान सूर्य प्रगटा तब, प्रभु को वांसवृक्ष नीचे।।
समवसरण में किया सभी ने, पूजा केवलज्ञान की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।४।।
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लाप्रतिपदायां श्रीनेमिनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
आवो हम सब करें अर्चना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्दे जिनवरम्-४।।
प्रभु गिरनार शैल से मुक्ती, रमा वरी शिवधाम गये।
सुदि आषाढ़ सप्तमी सुरगण, वंद्य नेमि जगपूज्य हुए।।
जो निर्वाण कल्याणक पूजें, मिले राह निर्वाण की।।
इन्द्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।।५।।
ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लासप्तम्यां श्रीनेमिनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
( 108 अर्घ्य )
दोहा-
गुण अनंत के तुम धनी, कतिपय गुण से नाथ।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, नमूँ नमाकर माथ।।१।।
अथ मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।
ॐ ह्रीं इन्द्र-धरणेन्द्र-नरेन्द्रादिकृतानन्यसंभाविनी पूजायोग्याय
यज्ञार्हगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं भग-ज्ञानपरिपूर्णैश्वर्य-तप:श्रीवैराग्यमोक्षप्राप्ताय भगवद्गुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२।।
ॐ ह्रीं चतुर्ज्ञानधारिगणधरादिकृतानन्यसाधारणीवंदनाप्राप्ताय अर्हद्गुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।३।।
ॐ ह्रीं त्रैलोक्यप्रतिष्ठितजनमहतीप्रशंसाप्राप्ताय महार्हगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४।।
ॐ ह्रीं इन्द्रादिपूजितपदप्राप्ताय मघवार्चितनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५।।
ॐ ह्रीं सत्यार्थयज्ञयोग्यपदप्रदानसमर्थाय भूतार्थयज्ञपुरुषगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।६।।
ॐ ह्रीं सत्यार्थयज्ञयोग्यपदधारकाय भूतार्थक्रतुपुरुषगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।७।।
ॐ ह्रीं जगत्पूज्यपदप्राप्ताय पूज्यगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।८।।
ॐ ह्रीं स्याद्वादपरीक्षार्थपण्डितजनप्रेरणाप्रदायकाय भट्टारकगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।९।।
ॐ ह्रीं पूज्यानामपि पूज्यपदधारकाय तत्रभवान्ननामसार्थकगुणयुक्ताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१०।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनपूज्यपदप्राप्ताय अत्रभवान्गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।११।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनमस्तकस्थितसर्वजनश्रेष्ठपदप्राप्ताय महान्नामसार्थक-
गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१२।।
ॐ ह्रीं महतीपूजायोग्याय महामहार्हगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१३।।
ॐ ह्रीं त्रैलोक्यशाश्वतायुर्धारकाय तत्रायुर्गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१४।।
ॐ ह्रीं अनन्तानन्तकालावधिस्थितपुनरागमनविरहिताय दीर्घायुगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१५।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनजनपूज्यदिव्यध्वनिरूपवचनप्राप्ताय अर्घ्यवाक्गुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१६।।
ॐ ह्रीं सर्वजनाराधनायोग्यपदप्राप्ताय आराध्यगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१७।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनजनसाधारणपूजायोग्याय परमाराध्यगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१८।।
ॐ ह्रीं गर्भावतार-जन्माभिषेक-निष्क्रमण-ज्ञान-निर्वाणनाम-पंचकल्याणक
पूजाप्राप्ताय
पंचकल्याणपूजितगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१९।।
ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनविशुद्धियुक्तद्वादशगणप्रमुखाय दृग्विशुद्धिगणोदग्रगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२०।।
ॐ ह्रीं रत्नसुवर्णादिधनवृष्टिभिर्मातृभवनांगणपूजिताय वसुधारार्चितास्पदगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२१।।
ॐ ह्रीं गर्भावतारपूर्वजननीषोडशस्वप्नप्रदर्शकाय सुस्वप्नदर्शिगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२२।।
ॐ ह्रीं मनुष्येषु असाधारणतेजबलधारकाय दिव्यौजस्गुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२३।।
ॐ ह्रीं स्वजननीपादकमलशचीपूजितकराय शचीसेवितमातृकगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२४।।
ॐ ह्रीं गर्भावतारसमये पञ्चदशमासरत्नवृष्टिसहितपदप्राप्ताय
रत्नगर्भगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं……।।२५।।
ॐ ह्रीं श्री-ह्री-धृतिकीर्तिबुद्धिलक्ष्मीशान्तिपुष्टिदेवीभि:पवित्रितगर्भवासाय
श्रीपूतगर्भगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………।।२६।।
ॐ ह्रीं सुरेन्द्रादिकृतगर्भकल्याणोत्सवसमुन्नताय गर्भोत्सवोच्छ्रितगुण-
समन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२७।।
ॐ ह्रीं दिव्यदेवोपनीतपूजया पुष्टिप्राप्ताय दिव्योपचारोपचितगुण
समन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।२८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरपुण्यप्रभावेन मातृगर्भाशयकमलकर्णिकासिंहासनोपरि
गर्भावासकरणाय
पद्मभूसार्थकगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं….।।२९।।
ॐ ह्रीं कालकलाव्यतीताय निष्कलगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३०।।
ॐ ह्रीं स्वात्मनोत्पद्यमानजन्मधारकाय स्वजगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३१।।
ॐ ह्रीं सर्वजनहितकरजन्मधारकाय सर्वीयजन्मगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३२।।
ॐ ह्रीं पुण्योपार्जनहेतुभूतशरीरधारकाय पुण्यांगगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३३।।
ॐ ह्रीं कोटिचन्द्रसूर्याधिकतेजोधारकाय भास्वद्गुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३४।।
ॐ ह्रीं सर्वोत्कृष्टपुण्यधारकाय उद्भूतदैवतगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३५।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनजनज्ञापितजन्मधारकाय विश्वविज्ञातसंभूतिगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३६।।
ॐ ह्रीं भवनवासि-वानव्यंतर-ज्योतिष्क-कल्पवासिदेवागमनेन
विश्वस्मिन्नाश्चर्यकराय विश्वदेवागमाद्भुतगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३७।।
ॐ ह्रीं शचीकृतमायामयबालकस्वरूपदर्शकाय शचीसृष्टप्रतिच्छन्द-
गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।३८।।
ॐ ह्रीं इन्द्रलोचनानंदकारकाय सहस्राक्षदृगुत्सवगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।३९।।
ॐ ह्रीं जन्माभिषेकार्थगमनकाले नृत्यदैरावतहस्तिनउपरि उपविष्टाय
नृत्यदैरावतासीननामधारकाय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं…….।।४०।।
ॐ ह्रीं शतेन्द्रवंद्यपदप्राप्ताय सर्वशक्रनमस्कृतगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४१।।
ॐ ह्रीं आनन्दोत्सुक-परधर्मानुरागसहितामरविद्याधरगणवंदिताय
हर्षाकुलामरखगनामप्राप्ताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४२।।
ॐ ह्रीं चारणर्द्धिसमन्वितमुनिगणाभीष्टजन्माभिषेक-कल्याणप्राप्ताय
चारणर्षिमतोत्सवनामधारकाय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं……..।।४३।।
ॐ ह्रीं प्राणिवर्गस्य विशेषरक्षाकारिणे व्योमनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४४।।
ॐ ह्रीं विष्णुपद-प्राणिवर्गपद-चतुर्दशमार्गणास्थानरक्षकपरमकारूणिकपद-
प्राप्ताय विष्णुपदारक्षनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं……।।४५।।
ॐ ह्रीं जन्माभिषेकचतुष्किका-मेरुपर्वतप्राप्ताय स्नानपीठायिताद्रिराट्नाम-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४६।।
ॐ ह्रीं तीर्थस्वरूपजलाशयस्वामिरूपंमन्यमानक्षीरसमुद्रपवित्रीकृताय
तीर्थेशंमन्यदुग्धाधिनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं……।।४७।।
ॐ ह्रीं स्नानजलेन वासवशरीरप्रक्षालिताय स्नानाम्बुस्नातवासवनाम-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४८।।
ॐ ह्रीं जन्माभिषेकजलेन त्रिभुवनपवित्रीकृताय गन्धाम्बुपूतत्रैलोक्यगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।४९।।
ॐ ह्रीं स्वाभाव्येन छिद्रसहितप्रभुकर्णइन्द्रवज्रसूचीकर्णवेधविधिप्राप्ताय
वज्रसूचीशुचिश्रवस्नाम समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं…….।।५०।।
ॐ ह्रीं सफलीकृत-इन्द्रमहादेवीहस्ताय कृतार्थितशचीहस्तनामसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५१।।
ॐ ह्रीं इन्द्रेण सर्वमानितनामघोषणाप्राप्ताय शक्रोद्घुष्टेष्टनामकगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५२।।
ॐ ह्रीं मेरुपर्वतस्योपरिजन्माभिषेकानन्तरं इन्द्रकृतानंदनर्तनप्राप्ताय
शक्रारब्धानन्दनृत्यगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं…..।।५३।।
ॐ ह्रीं शच्या प्रभुवैभवं प्रदर्श्य जिनजननी-आश्चर्योत्पादकाय
शचीविस्मापिताम्बिकगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं……।।५४।।
ॐ ह्रीं ङ्कान्माभिषेकानन्तरमिन्द्रकृतपितृसमक्षनर्तनाय इन्द्रनृत्यन्तपितृकगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५५।।
ॐ ह्रीं सौधर्मेन्द्रादेशप्राप्तकुबेरेण जगज्जनमनोरथपूर्णीकृताय
रैदपूर्णमनोरथगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं…..।।५६।।
ॐ ह्रीं आदेशग्राहकसौधर्मेन्द्रकृतसेवाभक्तियुक्ताय आज्ञार्थीन्द्रकृतासेवगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५७।।
ॐ ह्रीं लौकान्तिकदेवाभीष्टप्रभुमोक्षोद्यमसहिताय देवर्षीष्टशिवोद्यमगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५८।।
ॐ ह्रीं जैनेश्वरीदीक्षासमयसमस्तजगत्क्षोभिताय दीक्षाक्षणक्षुब्ध-
जगन्नाम्नालंकृताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।५९।।
ॐ ह्रीं अधोमध्योर्ध्वलोकस्वामिपूजिताय भूर्भुव:स्व:पतीडितगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६०।।
ॐ ह्रीं कुबेरकृतसमवसरणमहिमामण्डिताय कुबेरनिर्मितास्थानगुणधारकाय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६१।।
ॐ ह्रीं नवनिधिलक्षणबहिरंगाभ्युदयलक्ष्मी-अनन्तचतुष्टय-रूपान्तरंग-
लक्ष्मीप्रदानसमर्थाय श्रीयुक्-
गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं…..।।६२।।
ॐ ह्रीं यम-नियम-प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणा-ध्यान-समाधि-लक्षणाष्ट-
योगसहितयोगिजनानामीश्वरगणधरदेवादिभिरर्चिताय योगीश्वरार्चितगुण-
समन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।६३।।
ॐ ह्रीं ब्रह्मापरनामाहमिन्द्रै:स्तुत्याय ब्रह्मेड्यगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६४।।
ॐ ह्रीं आत्मस्वरूपज्ञायकाय ब्रह्मविद्गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६५।।
ॐ ह्रीं योगिवृंदज्ञानगम्याय वेद्यगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६६।।
ॐ ह्रीं पूजायोग्यपदप्राप्ताय याज्यगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६७।।
ॐ ह्रीं यज्ञ-महामहस्वामिने यज्ञपतिगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६८।।
ॐ ह्रीं योगिध्यानप्रकटीभूताय क्रतुनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।६९।।
ॐ ह्रीं पूजाविध्युपायप्रदर्शिताय यज्ञांगगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७०।।
ॐ ह्रीं मृत्युविजयिपदप्राप्ताय अमृतगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७१।।
ॐ ह्रीं पूजायोग्यपदप्राप्ताय यज्ञगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७२।।
ॐ ह्रीं निजात्मस्वरूपे कर्मेन्धनहवनकरणसमर्थाय हविनामसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७३।।
ॐ ह्रीं इन्द्र-नागेन्द्र-चक्रवर्ति-गणधरादिभि:स्तुतियोग्याय
स्तुत्यगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं…………।।७४।।
ॐ ह्रीं सर्वजगत्प्राणिभि:स्तुतिप्राप्ताय स्तुतीश्वरगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७५।।
ॐ ह्रीं आत्मस्वभावोपलब्धिरूपाय समवसरणविभूतिमंडिताय
भावनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७६।।
ॐ ह्रीं महामहस्वरूपमहतीकल्पद्रुमादिपूजाप्राप्ताय महामहपतिगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।७७।।
ॐ ह्रीं घातिकर्मेन्धनहोमलक्षणलक्षिताय महायज्ञगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७८।।
ॐ ह्रीं याजकेषु प्रमुखपदप्राप्ताय अग्रयाजकगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।७९।।
ॐ ह्रीं करूणास्वरूपपूजाप्राप्ताय दयायागगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।८०।।
ॐ ह्रीं त्रिभुवनजनपूज्यपदप्राप्ताय जगत्पूज्यगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।८१।।
ॐ ह्रीं अष्टविधार्चनयोग्याय पूजार्हगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।८२।।
ॐ ह्रीं त्रैलोक्यस्थितभव्यप्राणिगणपूजिताय जगदर्चितगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।८३।।
ॐ ह्रीं इन्द्रादिषु श्रेष्ठपदप्राप्ताय देवाधिदेवगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।८४।।
ॐ ह्रीं द्वात्रिंशदिन्द्रपूजिताय शक्रार्च्यगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।८५।।
ॐ ह्रीं देवानां देव-परमदेवपदप्राप्ताय देवदेवगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।८६।।
ॐ ह्रीं जगत्स्थितप्राणिवर्गपितृतुल्योपदेशकाय जगद्गुरुगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।८७।।
ॐ ह्रीं इन्द्रादेशामंत्रितचतुर्विधदेववृंदपूजिताय संहूतदेवसंघार्च्यगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।८८।।
ॐ ह्रीं देवरचितकमलोपरिचरणकमलनिक्षेपणकराय पद्मयानगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।८९।।
ॐ ह्रीं मोहारिविजयिध्वजधारकाय जयध्वजिगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।९०।।
ॐ ह्रीं कोट्यर्कसमानतेजोमंडलसहिताय भामंडलीगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।९१।।
ॐ ह्रीं द्वात्रिंशद्यक्षसंवीज्यमानचतु:षष्टिचामरसहिताय चतु:षष्टिचामर-
गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।९२।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वादशकोटिवाद्योद्घोषमहिमाप्राप्ताय देवदुंदुभिनामसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।९३।।
ॐ ह्रीं तालु-ओष्ठादिस्पर्शविरहितदिव्यध्वनिप्राप्ताय वागस्पृष्टासनगुण-
समन्विताय श्रीनेमिनाथ
जिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।९४।।
ॐ ह्रीं छत्रत्रयविभूतिधारकाय छत्रत्रयराट्गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।९५।।
ॐ ह्रीं उपरिमुखधोवृंतकृतद्वादशयोजनपर्यंतकुसुमवृष्टिमहिमाप्राप्ताय
पुष्पवृष्टिभाक्नामसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं……..।।९६।।
ॐ ह्रीं दिव्यामानुषमहामंडपोपरिस्थितयोजनैक-प्रमाणविस्तृतमणिमया-
शोकवृक्षमहिमाधारकाय ‘दिव्याशोक’ नामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।९७।।
ॐ ह्रीं दूरादपि दर्शनमात्रेण मिथ्यावादि-अहंकारशतखण्डीकरण-
समर्थचतुर्मानस्तंभप्राप्ताय
मानमर्दिनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।९८।।
ॐ ह्रीं गीत-नृत्य-वादित्र सहितनाट्यशालागतदेवांगनानर्तनविभवधारकाय
संगीतार्हनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं….।।९९।।
ॐ ह्रीं प्रतिप्रतोलि-शृंगारतालकलशध्वजस्वस्तिकछत्रदर्पणचामर
नामाष्टमंगलद्रव्यविभवधारकाय
अष्टमंगलनामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१००।।
ॐ ह्रीं संसारसागरपारकरणसमर्थद्वादशांगशास्त्रमयतीर्थकरणकुशलाय
तीर्थकृद्गुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं….।।१०१।।
ॐ ह्रीं स्वपादस्पर्शमात्राद्भूमिपर्वतादिस्थलतीर्थकरणसमर्थाय
तीर्थसृट्नामसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१०२।।
ॐ ह्रीं संसारवार्द्धितारणसमर्थरत्नत्रयस्वरूपभावतीर्थसृजनकरणाय
तीर्थकरगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं…..।।१०३।।
ॐ ह्रीं पंचकल्याणविभवकारितीर्थकरनामकर्मप्रकृतिबंधप्राप्ताय
तीर्थंकरगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं………….।।१०४।।
ॐ ह्रीं क्षायिकसम्यक्त्वप्राप्ताय सुदृक्गुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ-जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१०५।।
ॐ ह्रीं धर्मचक्रप्रवर्तनसमर्थाय तीर्थकर्तृनामसमन्विताय
श्रीनेमिनाथ-
जिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१०६।।
ॐ ह्रीं धर्मतीर्थपोषणकराय तीर्थभर्तृगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१०७।।
ॐ ह्रीं तीर्थस्वामिपदप्राप्ताय तीर्थेशगुणसमन्विताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय
अर्घ्यं………….।।१०८।।
पूर्णार्घ्य
तर्ज-यह नंदन वन………
यह मानवतन, अनमोल रतन, पा विषयों में मत फंस जाना।
भवसिंधु अगर तरना चाहो, जिनचरण शरण में आ जाना।।
तीर्थंकर आत्म साधना कर, समता पियूष का पान करें।
निजशुक्ल ध्यान के द्वारा ही, सब कर्मनाश शिवनारि वरें।।
इन भगवन्तों की पूजा कर, परमानंदामृत पा जाना।।
यह मानव तन……..।।१।।
नाना विध व्याधी से पीड़ित, या दरिद्रता से दुखी हुये।
नेमीप्रभु की पूजा करके, जन-जन सब दुख से मुक्त हुये।।
फिर भी ये परम वीतरागी, इनसे मन पावन कर जाना।।
यह मानव तन……..।।२।।
ॐ ह्रीं यज्ञार्हगुणादितीर्थेशगुणपर्यंत अष्टोत्तरशतगुणसमन्विताय
श्रीनेमिनाथजिनेंद्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य-
ॐ ह्रीं सर्वाण्हयक्षकूष्माण्डीयक्षीसहिताय श्रीअरिष्टनेमिनाथाय नम:।
(सुगंधित पुष्प, लवंग या पीले तंदुल से १०८ बार जपें।)
जयमाला
(तर्ज-चंदन सा बदन…….)
नेमी भगवन्! शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
कर जोड़ खड़े, तव चरण पड़े हम शीश झुकाते चरणों में।।टेक.।।
यौवन में राजमती को वरने चले बरात सजा करके।
पशुओं को बांधे देख प्रभो! रथ मोड़ लिया उल्टे चल के।।
लौकांतिक सुर संस्तव करके, पुष्पांजलि की तव चरणों में।।१।।
प्रभु नग्न दिगंबर मुनि बने, ध्यानामृत पी आनंद लिया।
कैवल्य सूर्य उगते धनपति ने समवसरण भी अधर किया ।।
तब राजमती आर्यिका बनी, चतुसंघ नमें तव चरणों में।।नेमी.।।२।।
वरदत्त आदि ग्यारह गणधर, अठरह हजार मुनिराज वहाँ।
राजीमति गणिनी आदिक, चालिस हजार संयतिकाएँ वहाँ।।
इक लाख सुश्रावक तीन लाख, श्राविका झुकीं तव चरणों में।।नेमी.।।३।।
सर्वाण्ह यक्ष अरु कूष्मांडिनि, यक्षी प्रभु शंख चिन्ह माना।
आयू इक सहस वर्ष चालिस, कर सहस देह उत्तम जाना।।
द्वादशगण से सब भव्य वहाँ, शत-शत वंदे तव चरणों में।।नेमी.।।४।।
प्रभु समवसरण में कमलासन पर, चतुरंगुल से अधर रहें।
चउ दिश में प्रभु का मुख दीखे, अतएव चतुर्मुख ब्रह्म कहें।।
सौ इन्द्र मिले पूजा करते, नित नमन करें तव चरणों में।।नेमी.।।५।।
प्रभु के विहार में चरण कमल, तल स्वर्ण कमल खिलते जाते।
बहुकोशों तक दुर्भिक्ष टले, षट् ऋतुज फूल फल खिल जाते।।
तनु नीलवर्ण सुंदर प्रभु को, सब वंदन करते चरणों में।।नेमी.।।६।।
तरुवर अशोक था शोकरहित, सिंहासन रत्न खचित सुंदर।
छत्रत्रय मुक्ताफल लंबित, भामंडल भवदर्शी मनहर।।
निज सात भवों को देख भव्य, प्रणमन करते तव चरणों में।। नेमी.।।७।।
सुरदुंदुभि बाजे बाज रहे, ढुरते हैं चौंसठ श्वेत चंवर।
सुरपुष्पवृष्टि नभ से बरसे, दिव्यध्वनि फैले योजन भर।।
श्रीकृष्ण तथा बलदेव आदि, अतिभक्ति लीन तव चरणों में।।नेमी.।।८।।
हे नेमिनाथ! तुम बाह्य और अभ्यंतर लक्ष्मी के पति हो।
दो मुझे अनंत चतुष्टयश्री, जो ज्ञानमती सिद्धिप्रिय हो।।
इसलिए अनंतों बार नमें, हम शीश झुकाते चरणों में।।नेमी.।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
शेर छंद-
जो भव्य नेमिनाथ का विधान ये करें।
वे आधि व्याधि संकटादि कष्ट परिहरें।।
अतिशायि पुण्यबंध से ईप्सित सफल करें।
‘‘सज्ज्ञानमती’’ से अनन्त संपदा वरें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:। पुष्पांजलि:।।
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