-स्थापना-
तर्ज-परदेशी-परदेशी……….
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी- हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
जिनशास्त्रों में सप्तऋषी का नाम है…..नाम है।
जिनके पद में करते सभी प्रणाम हैं।।-२
उनमें छठे मुनिवर, नाम विनयलालस
करें हम उन्हीं का, आज मिल करके अर्चन।।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।।१।।
आह्वानन स्थापन करके वन्दना…..वंदना।
पुन: अष्ट द्रव्यों से कर लें अर्चना।।-२
यही विधि करके, मन में उन्हें धरके,
करें हम गुरू का, आज मिल करके अर्चन।।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षे! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षे! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षे! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
सन्निधीकरणं स्थापनं।
-अष्टक-
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
शीतल प्रासुक जल ले, जलधारा करूँ…..धारा करूँ।
जन्म मृत्यु नश जाय, यही आशा करूँ।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
चंदन घिसकर गुरुपद में चर्चन करूँ…..चर्चन करूँ।
भव आतप नाशन हेतू, अर्चन करूँ।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
मोती सम अक्षत से, गुरुपद पूजहूँ….पूजहूँ।
शाश्वत अक्षय पद हेतु, गुरु को नमूँ।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
श्वेत सुगंधित पुष्पमाल गुरुपद धरूँ…..पद धरूँ।
काम बाण हो नाश, यही आशा करूँ।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
पकवानोें का थाल गुरू के पद धरूँ…..पद धरूँ।
क्षुधारोग नश जाय, यही आशा करूँ।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
घृत का दीप जलाय, गुरू आरति करूँ….आरति करूँ।
मोहतिमिर नश जाय, यही आशा करूँ।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम- २, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
ताजी धूप बनाय, अग्नि में है दहन…..है दहन।
गुरुपूजन से होता, कर्मों का हवन।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
फल का थाल गुरू चरणों में अर्पण है…..अर्पण है।
मोक्ष महाफल प्राप्ती हेतु समर्पण है।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ऋषिवर जी, मुनिवर जी, करते हैं हम-२, पूजन तेरी-हाँ पूजन तेरी।
पूजा करके हे गुरुवर, भक्ति करें हम, भक्ती से होगा मेरे कर्मों का शमन।।
ऋषिवर जी..।।टेक.।।
अर्घ्य थाल गुरुपद में करना अर्पण है…..अर्पण है।
करूँ ‘‘चन्दनामति’’ गुरुपद में वंदन मैं।।-२
गुरू विनयलालस, देवें मुझे साहस, ऋद्धियों के धारक, उनके चरणों में नमन।।
ऋषिवर जी…।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
शांतीधारा के लिए, जलयुत कलश मंगाय।
राज्य राष्ट्र नृप के लिए, है यह मंगल भाव।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
विश्व एकता के लिए, पुष्पांजलि का भाव।
मैत्री पैले जगत में, आपस में सौहार्द।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
सप्तऋषी मण्डल रचा, पूजा हेतु महान।
पुष्पांजलि करके वहाँ, अर्घ्य चढ़ाऊँ आन।।१।।
इति मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
-शंभु छंद-
अत्यन्त विनयवृत्ती वाले, मुनिराज विनयलालस जी थे।
अपने पितु मुनिवर श्रीनंदन के, साथ तपस्या में रत थे।।
उन चारणादि ऋद्धीधारी, मुनिवर की पूजा सुखकारी।
उनकी ऋद्धी से मिल जाती, भौतिक आत्मिक संपति सारी।।२।।
ॐ ह्रीं चारणऋद्धिसमन्वितश्रीविनयलालसमहर्षये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये नम:।
-शंभु छंद-
गुरुवर! ऋषिवर! यतिवर! मुनिवर! तुम शिवपथ के दिग्दर्शक हो।
संसार में भी रह करके तुम संसार के प्रति अनुरक्त न हो।।
तुम राजाओं के भी राजा महाराज तभी कहलाते हो।
तुम शिवपथ के अनुगामी बन सबको शिवपथ बतलाते हो।।१।।
ऋषियों में शिरोमणि सप्तऋषी जो आगम में बतलाए हैं।
उनमें हि विनयलालस ऋषि को हम अर्घ्य चढ़ाने आए हैं।।
मथुरा नगरी में इन सबने इक साथ प्रभाव दिखाया था।
देवों की शक्ति पराजित कर सब रोग को दूर भगाया था।।२।।
शत्रुघ्न को चिंतित देख मुनीश्वर ने उनको उपदेश दिया।
हे राजन्! कुछ दिन में कलियुग आएगा यह संदेश दिया।।
उस कलियुग में यह जिनशासन कुछ कम महिमा दिखलाएगा।
अज्ञानी क्रूर प्राणियों से मिथ्यात्वतिमिर छा जाएगा।।३।।
सच्चे गुरुओं के दर्शन तब दुर्लभता से मिल पाएंगे।
यदि मिल जावें तो मूढात्मन मूल्यांकन नहिं कर पाएंगे।।
मुनि बोले, हे शत्रुघ्न! आज तुम हितकारी इक नियम करो।
आहारदान सच्चे गुरुओं को देने का संकल्प करो।।४।।
इस दान को देने से गृहस्थ जीवन सच्चा सार्थक होगा।
मथुरा नगरी के नर-नारी का जीवन मंगलमय होगा।
शत्रुघ्न ने इस गुरुआज्ञा का पालन करके दिखलाया था।
जिनमंदिर कई बनाकर उनमें सप्तऋषी पधराया था।।५।।
उपकार सप्तऋषियों का उनके मन में बहुत समाया था।
श्रावक कर्तव्यों का पालन करना गुरु ने सिखलाया था।।
इस कलियुग में उनकी भविष्यवाणी बिल्कुल सच दिखती है।
जिनवर वाणी में पूर्ण रुची विरले लोगों की दिखती है।।६।।
मुनिराज विनयलालस के संग सातों ऋषियों को नमन करूँ।
पूर्णार्घ्य चढ़ा ‘‘चन्दनामती’’ गुरुचरण सदा स्मरण करूँ।।
मेरे भव भव के पाप कटें गुरुपूजन का फल यही मिले।
सम्यक् तप करके मोक्ष लहूँ ऐसी अन्तर में ज्योति जले।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीविनयलालसमहर्षये जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
सप्तऋषी की अर्चना, देवे सौख्य महान।
इनके पद की वंदना, करे कष्ट की हान।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।