तर्ज-माई रे माई…………..….
गुरुभक्ती के लिए अर्घ्य का, थाल सजाकर लाए।
सप्तऋषी की पूजाकर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।टेक.।।
राजा दशरथ और राम के, युग की यह घटना है।
सात सगे भ्राताओं के, तप ऋद्धि की यह घटना है।।
इनके तप का अनुमोदन कर, पुण्य कमाने आए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।१।।
नगर प्रभापुर में राजा, श्रीनन्दन जी रहते थे।
उनकी रानी ने क्रम क्रम से, सात पुत्र जनमे थे।।
सातों सुत पितु के संग दीक्षा, ले मन में हर्षाए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।२।।
पिता ने केवलज्ञान प्राप्त कर, मोक्षधाम को पाया।
इन सातों मुनियों ने तपकर, नव इतिहास बनाया।।
कई ऋद्धियों के स्वामी बन, जग के कष्ट मिटाए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।३।।
एक बार मथुरा में इनका, वर्षायोग हुआ था।
रोग महामारी जहाँ पैला, चारों ओर हुआ था।।
जनता के ही पुण्ययोग से, गुरु चौमास रचाएँ।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।४।।
इनकी ही इक बात सुनो, वे ऋद्धीधारी मुनिवर।
वर्षायोग के मध्य पहुँच गए, नगरि अयोध्या पुरिवर।।
अर्हद्दत्त सेठ तब इनका, विनय नहीं कर पाए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।५।।
सेठ ने सोचा ये मुनि, आगमनिष्ठ नहीं लगते हैं।
वर्षायोग में चूँकी स्वैराचार गमन करते हैं।।
इसीलिए आहार हेतु ये, आज मेरे घर आए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।६।।
फिर भी सेठ की पुत्रवधू ने, गुरुओं को पड़गाया।
नवधाभक्ती करके उन, सबको आहार कराया।।
कर आहार वे सातों ऋषिवर, जिनमंदिर में आए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।७।।
द्युति आचार्य वहाँ पर अपने, संघ सहित स्थित थे।
ऋद्धि सहित मुनियों को लख, वे खड़े हुए भक्ती से।।
गुरु को नमस्कार करते लख, शिष्य बहुत अकुलाए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।८।।
सातों ऋषि आकाशमार्ग से, उड़कर चले गए जब।
मुनि शिष्यों ने गुरु अविनय का, प्रायश्चित्त लिया तब।।
अर्हद्दत्त सेठ भी तत्क्षण, जिनमंदिर में आए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।९।।
द्युति आचार्य ने कहा सेठ से, बड़े भाग्यशाली हो।
सेठ ने रोकर कहा पूज्यवर, मुझको प्रायश्चित दो।।
वैसे अब उन महामुनीश्वर का दर्शन हम पाएँ।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।१०।।
मथुरा जाकर सप्तऋषी का, वंदन अब करना है।
गुरुवर बोले यही श्रेष्ठिवर! प्रायश्चित करना है।।
तभी सेठ गुरुवंदन करने, मथुरापुरि में आए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।११।।
इन्हीं सप्तऋषियों की आज भी, प्रतिमाएँ बनती हैं।
जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में, निधियाँ ये मिलती हैं।।
भौतिक संपति हेतु भक्तजन, पूजा इनकी रचाएँ।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।१२।।
गणिनी ज्ञानमती की शिष्या, नाम ‘चन्दनामति’ है।
पूर्ण अर्घ्य का थाल किया, सप्तर्षि चरण अर्पित है।।
जब तक मुक्ति मिले तब तक, गुरुभक्ति सदा मन भाए।
सप्तऋषी की पूजा कर, जयमाल बड़ी हम गाएँ।।
जय हो सप्तऋषी की जय, जय हो सप्तऋषी की जय-२।।१३।।
ॐ ह्रीं श्रीसुरमन्युश्रीमन्युश्रीनिचयश्रीसर्वसुन्दर श्रीजयवानश्रीविनयलालस-
श्रीजयमित्रनाम ऋद्धिधारकसप्तऋषिभ्यो जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।