सिद्धं विशुद्धं महिमानवेशं। दुष्टारिमारि ग्रहदोषनाशं।
सर्वेषु योगेषु परं प्रधानं। संस्थापये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् स्वाहा
सन्निधापनं।
गंगापगातीर्थ सुनीर पूरै:। शीतै: सुगंधैर्घन सारमिश्रै:।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय जलं निर्वपामि स्वाहा।
श्रीचंदनैर्गंधविलुब्धभृंगै:। सर्वोत्तमैर्गंधविलासयुत्तै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय गंधं निर्वपामि स्वाहा।।
चंद्रावदातै: सरलै: सुगंधै:। अिंनद्यपात्रैर्वरशालिपुंजै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय अक्षतान् निर्वपामि स्वाहा।
मंदारजातीबकुलादिकुंदै:। सौरभ्यरम्यै: शतपत्रपुष्पै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय पुष्पं निर्वपामि स्वाहा।।
वाष्पायमाणैर्घृतपूरपूरै—र्नानाविधै: पात्रगतै: रसाढ्यै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय नैवेद्यं निर्वपामि स्वाहा।।
विश्वप्रकाशै: कनकावदातै:। दीपैश्च कर्पूरमयैर्विशालै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय दीपं निर्वपामि स्वाहा।।
कर्पूरकृष्णागुरुचंदनाद्यै:। धूपै: सुगंधैर्वरद्रव्ययुत्तै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय धूपं निर्वपामि स्वाहा।।
खर्जूरराजादननालिकेरै: रम्यै: फलैर्मोक्षफलाभिलाषै:।।
दुष्टोपसर्गैकविनाशहेतो:। समर्चये श्रीकलिकुंडयंत्रं।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय फलं निर्वपामि स्वाहा।।
जलगन्धाक्षतपुष्पै— र्नैवेद्यैर्दीपधूपफलनिकरै:।।
श्रीकलिकुंडाय वरं ददामि कुसुमाञ्जलिं विमलम्।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय अर्घ्यं निर्वपामि स्वाहा।।
ततो जिनेंद्रपादांते वारिधारां निपातये।
भृंगारनालिकोद्वांतां जिनमल्लोकशांतये।।१०।।
शांतये शांतिधारा।।
अलंघ्यमुत्तमाधिपं दयालुसूरिवृंदवै:।
प्रफुल्लफुल्लमल्लिवैर्यजामि मुक्तिसिद्धये।।११।।
दिव्यपुष्पाञ्जिंल क्षिपेत्।।
श्रीमद्देवेन्द्रवृंदामलमणिमुकुटज्योतिषां चक्रवालै:।
व्यालीढं पादपीठं शठ कमठ कृतोपद्रवा बाधितस्य।।
लोकालोकावभासिस्फुरदुरुविमलज्ञानसिद्धिप्रदीप—।
प्रध्वस्तध्वान्तजालस्य वितरतु सुखं पार्श्वनाथस्य नित्यं।।१।।
इति स्तोत्रार्घ्यं।।
(जाप्य 9 या 108 बार)
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय अतुलबलवीर्यपराक्रमा—
यात्मविद्यां रक्ष रक्ष परविद्यांछिंद छिंद भिंद भिंद स्फ़्रां स्फ़्रूं स्फ़्रौं स्फ़्र: हूं फट्
स्वाहा।
प्रोद्यत्सन्मणिनागनायकफटाटोपोल्लसन्मंडपं।।
सद्भक्त्या नमिंदद्रमौलिमणिभाभास्वत्पदांभोरुहं।।
प्रोन्मीलन्नवनीरदालिपटलीशंकासमुत्पादकं।।
ध्याये श्रीकलिकुंडदंडविकलसञ्चंडोग्रपार्श्वप्रभुं।।१।।
सुसिद्धि विशुद्ध विबोध निधान। विकाशितविश्व विवेकनिधान।।
विडंबितकामजगज्जयचंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।२।।
पयोधिपयोधरधीरनिनाद। निराकृतदुर्मतदुर्मदवाद।।
असत्यपथैकपतत्पविदंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।३।।
निराकुल निर्मलशील निरीहं। निराश निरंजन जिनवरिंसह।।
विपाटितदुष्टमदद्विपगंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।४।।
कषायचतुष्टयकाष्ठकुठार। निरामय नित्य नरामरसार।।
विदीर्णघनाघनविघ्नकरंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।५।।
अनल्प वितल्प विलीनविकल्प। विशल्य विशुल्ल (विशूल) विसर्प विदर्प।
विरोग विभोग विखंड विमुंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।६।।
फणीश नरेश सुरेश महेश। दिनेश मुनीश शुभेश गणेश।।
चिदर्क विकाशितशतदलतुंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।७।।
विशोक विशंक विमुक्तकलंक। विकासितविश्व विदूरितपंक।।
कलाकुल केवलचिन्मयिंपड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।८।।
विखंडितमोहमहीरुहकंद। वरप्रद सत्पद संपद मंद (?)।।
त्रिदंड विखंडितमाय विखंड। सदा सदयोदय जय कलिकुंड।।९।।
—घत्ता—
कलिलदमनदक्षं योगियोगोपलक्षं।
अविकल कलिकुंडोद्दंडपार्श्वप्रचंडं।।
शिवसुखशुभ संपद्वासवल्लीवतं।
प्रतिदिनमहमीडे वर्द्धमानर्द्धिसिद्ध्यै।।१०।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकलिकुंडपार्श्वनाथाय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामि स्वाहा।।
दशावतारो भुवनैकमल्लो। देवांगनाशोभितपादपद्म।
श्रीपार्श्वनाथ पुरुषोत्तमोयं। ददातु व: सर्व समीहितानि।।१।।
इत्याशीर्वाद:।।