-शेर छंद-
सिद्धों को नमूँ हाथ जोड़ शीश नमा के।
ये सिद्धि सौख्य दे रहे हैं पाप नशाके।।
अर्हंतदेव को नमूँ ये मुक्ति के नेता।
आचार्य उपाध्याय साधु धर्म प्रणेता।।१।।
ये साधु कर्म नाशने में बद्ध कक्ष हैं।
अर्हंतदेव चार घातिकर्म मुक्त हैं।।
सिद्धों ने सर्व कर्म को निर्मूल कर दिया।
कृतकृत्य हुये लोक अग्रभाग पा लिया।।२।।
ज्ञानावरण के पाँच भेद शास्त्र में गाये।
नव भेद दर्शनावरण के साधु बतायें।।
दो वेदनीय मोहनीय भेद अठाइस।
आयू के चार नामकर्म त्र्यानवे कथित।।३।।
दो गोत्र अंतराय पाँच आर्ष में गाये।
सब एक सौ अड़तालिस हैं भेद बताये।।
इन सबको नाश करके ही सिद्ध कहाते।
हम सिद्ध वंदना से भव दुख को मिटाते।।४।।
मैं कर्मदहन पूजा रचना करूँ अभी।
वसुकर्मनाश होवें यह भावना अभी।।
जब तक न मोक्ष पाऊँ सिद्धों की है शरण।
प्रतिक्षण समय-समय भी हो सिद्ध स्मरण।।५।।
अथ विधियज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।