तर्ज-माई रे माई……..
आया रे आया सोलहकारण, पर्व अनादी आया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।टेक.।।
एक वर्ष में तीन बार, यह पर्व सदा आता है।
चैत्र भाद्रपद और माघ का, माह इसे पाता है।।
पर्व अनादि इसे कहते हैं, नहीं किसी ने बनाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय ।।१।।
इसमें बत्तिस दिन तक उपवा-सादि किये जाते हैं।
सोलहकारण पूजा एवं, जाप्य किये जाते हैं।।
इसको कर बहुतेक जनों ने, तीर्थंकर पद पाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय ।।२।।
इसकी सुन्दर कथा जिनागम, में पाई जाती है।
जिसे जानकर गुरुओं की, गाथा गाई जाती है।।
राजगृही नगरी का कथानक, इस व्रत में बतलाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।३।।
राजगृही में कालभैरवी, नाम की इक कन्या थी।
वह अत्यन्त कुरूप महा-शर्मा के घर जन्मी थी।।
इक दिन मतिसागर मुनिवर से, महाशर्मा ने बताया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।४।।
गुरु ने कहा यह पूर्व जन्म में, सुन्दर राजसुता थी।
उज्जैनी के राजमहल में, लाड़ प्यार से पली थी।।
रूप के मद में ज्ञानसूर्य मुनि, पर था थूक गिराया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।५।।
राजपुरोहित ने क्रोधित हो, कन्या को फटकारा।
मुनिवर का तन प्रक्षालन कर, वैयावृत्ति कराया।।
कन्या को भी गुरुवर सम्मुख, प्रायश्चित्त कराया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।६।।
गुरु बोले महाशर्मा से, कुछ पुण्य उदय जब आया।
उस कन्या ने तेरे घर में, पुन: जनम अब पाया।।
लेकिन मुनि उपसर्ग का पाप भी, आज उदय है आया।
हमने सोलहकारण का सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।७।।
गुरु आसादन का दुष्फल सुन, काल भैरवी बोली।
गुरुवर कुछ उपाय बतलाओ, शान्त भाव से बोली।।
मुनि ने तब सोलहकारण का, व्रत उसको बतलाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।८।।
विधिवत् व्रत पालन कर उसने, मरण समाधि किया था।
फिर सोलहवें स्वर्ग में देव के, पद को प्राप्त किया था।।
परम्परा से विदेह क्षेत्र में, तीर्थंकर पद पाया।।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।९।।
सीमंधर तीर्थंकर बन, गन्धर्व नगर में जन्मे।
असंख्य जीवों को संबोधा, उस तीर्थंकर पद में।।
आयु पूर्ण करके उनने, निर्वाण परमपद पाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१०।।
यह इस सोलहकारण व्रत का, चमत्कार तुम जानो।
इस व्रत से तीर्थंकर पद भी, मिलता है यह मानो।।
तीर्थंकर के पुण्य का वर्णन, शास्त्रों में बतलाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।११।।
चैत्र भाद्रपद माघ की बदि, एकम से शुरू व्रत होता।
एक माह तक व्रत करके, मंत्रों का जाप्य भी होता।।
दर्शविशुद्धी से प्रवचन-वत्सल तक पुण्य कमाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१२।।
व्रत में तीन प्रतिपदा१ के उपवास तीन होते हैं।
बाकी के दिन में एकाशन, करके व्रत होते हैं।।
अथवा जघन्य में बत्तिस दिन, एकाशन बतलाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१३।।
एक मंत्र का जाप्य दो दिवस, करना है भव्यात्मन्।
बत्तिस२ दिन में सोलह मंत्रों, को पढ़ना भव्यात्मन्।।
सोलहकारण व्रत सोलह, वर्षों में पूर्ण बताया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१४।।
गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माता, का आशीष मिला है।
इसीलिए यह पुण्यकृती, लिखने का पुण्य खिला है।।
इस व्रत को ‘‘चन्दनामती’’, पालन करना मन भाया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१५।।
जयमाला का महा अर्घ्य, प्रभु चरण चढ़ाने आए।
इस विधान के माध्यम से, भावों को शुद्ध बनाएँ।।
रथयात्रा आदिक भी करना, उद्यापन में बताया।
हमने सोलहकारण का, सुन्दर विधान रचवाया।।
बोलो जय जय जय, बोलो जय जय जय।।१६।।
ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धि-विनयसम्पन्नता-शीलव्रतेष्वनतीचार-अभीक्ष्णज्ञानोपयोग-
संवेग-शक्तितस्त्याग- शक्तितस्तप- साधुसमाधि- वैय्यावृत्त्यकरण-अर्हद्भक्ति-
आचार्यभक्ति- बहुश्रुतभक्ति- प्रवचनभक्ति- आवश्यकापरिहाणि- मार्गप्रभावना-
प्रवचनवत्सल्वनाम षोडशकारणेभ्यो महाजयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-शंभु छंद-
जो रुचिपूर्वक सोलहकारण, भावना की पूजा करते हैं।
मन-वच-तन से इनको ध्याकर, निज आतम सुख में रमते हैं।।
तीर्थंकर के पद कमलों में जो, मानव इनको भाते हैं।
वे ही इक दिन ‘चन्दनामती’, तीर्थंकर पदवी पाते हैं।।
।।इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि:।।