सम्यक् रूप से यम अर्थात् नियन्त्रण करना संयम है वह इन्द्रिय संयम है वह इन्द्रिय संयम व प्राणी संयम के भेद से दो प्रकार है ।
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन पांचो इन्द्रियों के विषयों से विरक्त होना इन्द्रिय संयम है । सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात ऐसे इसके पांच भेद हैं ।
यह संयम पूर्णतया मुनियों के ही होता है किन्तु गृहस्थ भी एक देश रूप से संयम का पालन करते हैं चूंकि उनकी षट् आवश्यक क्रियाओं मेंं संयम भी एक क्रिया है । कुछ न कुछ नियम का लेना एक संयम है । गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी प्रत्येक कार्य को सावधानी पूर्वक करना संयम है । सावधानीपूर्वक चलना, फिरना, उठना, बैठना भी संयम है । चौराहे की लालबत्ती संयम को सिखाती है जो उसकी उपेक्षा करते हैं वह जीवन को भी खतरे में डाल देते है । संयम से मनुष्य महान और पूज्य बन जाता है ।