अथ स्थापना-शंभु छंद
जिनवर की प्रथम दिव्य देशना, नंतर सुरपति अति भक्ती से।
निज विकसित नेत्र हजार बना, प्रभु को अवलोके विक्रिय से।।
प्रभु एक हजार आठ लक्षणधारी सब भाषा के स्वामी।
शुभ एक हजार आठ नामों, से स्तुति करता वह शिवगामी।।
-दोहा-
एक हजार सु आठ ये, श्री जिननाम महान्।
उनकी मैं पूजा करूँ, करके इत आह्वान।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर
संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव-
भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक-
चाल-नंदीश्वर पूजा……….
सरयू नदि का शुचिनीर, सुवरण भृंग भरूँ।
मिल जावे भवदधि तीर, जिनपद धार करूँ।।
शुभ एक हजार सु आठ, जिनवर नाम जजूँ।
कर कर नामावलि पाठ, सुख प्रद स्वात्म भजूँ।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: जलं……….।
काश्मीरी केशर शुद्ध, चंदन संग घिसूँ।
जिनपद चर्चत अविरुद्ध, भव संताप नशूँ।।शुभ.।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: चंदन……….।
मोती सम उज्जवल धौत, तंदुल पुंज धरूँ।
मिल जावे, अक्षय सौख्य, प्रभु पद पूज करूँ।।शुभ.।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: अक्षतं……….।
जूही केवड़ा गुलाब, सुरभित सुमनों से।
पूजत छुट जाउँâ नाथ, भव भव भ्रमणों से।।
शुभ एक हजार सु आठ, जिनवर नाम जजूँ।
कर कर नामावलि पाठ, सुख प्रद स्वात्म भजूँ।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: पुष्पं……….।
पूरण पोली घृतपूर, हलुआ भर थाली।
पूजत हो अमृतपूर, मनरथ निंह खाली।।शुभ.।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: नैवद्यं……….।
दीपक की ज्योति प्रजाल, आरति करते ही।
भगता मन का तम जाल, ज्योती प्रगटे ही।।शुभ.।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: दीपं……….।
दस गंधी धूप सुगंध, खेवूँ अगनी में।
सब जलते कर्म प्रबंध, पाऊँ निजसुख मैं।।शुभ.।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: धूपं……….।
अंगूर आम फल सेब, अर्पण करते ही।
निज आतम सम्मति लेव, फल से जजते ही।।शुभ.।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: फलं……….।
जलचंदन अक्षत आदि, अर्घ बनाऊँ मैं।
अर्पण करते भव व्याधि, सर्व नशाऊँ मैं।।शुभ.।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: अर्घ्यं……….।
-दोहा-
सहस्र नाम को पूजहूँ, शांतिधारा देय।
सर्वसौख्य सम्मति मिले, आत्मसुधा वरसेय।।शुभ.।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
पारिजात के पुष्प बहु, सुरभित दिक् महकंत।
पुष्पांजलि अर्पण किये, आतम सुख विलसंत।।शुभ.।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य-ॐ ह्रीं अष्टोत्तरसहस्रनामधारक चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।
-दोहा-
महातेज के धाम प्रभु, नमूँ नमूँ त्रयकाल।
एक हजार सु आठ तुम, नाममंत्र जयमाल।।१।।
चाल-शेर हे दीनबंधु……….
जय जय जिनेन्द्र! तुम असंख्य नाम गुण भरें।
जय जय जिनेन्द्र! तुम अनंत सौख्य गुण भरें।।
हे नाथ! तुम सहस्रनाम नित्य जो पढ़े।
वे हों पवित्र बुद्धि मोक्ष महल में चढ़े।।२।।
हे नाथ! यद्यपि आप नाम वचन से कहें।
फिर भी वचन अगोचर मुनिगण तुम्हें कहें।।हे नाथ.।।३।।
तुम नाम संस्तवन सदा अभीष्ट को फले।
भगवन् तुम्हीं हो भक्तों के बंधु हो भले।।हे नाथ.।।४।।
स्वामिन्! जगत्प्रकाशी हो ‘एक’ ही तुम्हीं।
हो ज्ञान दर्श गुण से ‘दोरूप’ भी तुम्हीं।।हे नाथ.।।५।।
रत्नत्रयी शिवमार्ग से प्रभु ‘तीनरूप’ हो।
आनन्त्य चतुष्टय से प्रभु ‘चाररूप’ हो।।हे नाथ.।।६।।
हो पंच परमेष्ठी स्वरूप ‘पांचरूप’ भी।
प्रभु पंच कलयाणक से भी ‘पांचरूप’ ही।।हे नाथ.।।७।।
जीवादि छहों द्रव्य जानते ‘छहरूप’ हो।
प्रभु सात नयों को निरूप ‘सातरूप’ हो।।हे नाथ.।।८।।
सम्यक्तव आदि आठ गुण से ‘आठरूप’ हो।
नव केवली लब्धी से आप ‘नवस्वरूप’ हो।।हे नाथ.।।९।।
अवतार दश महाबलादि ‘दशस्वरूप’ हो।
हे ईश! दया कीजिए त्रैलोक्य भूप हो।।हे नाथ.।।१०।।
मैं आप विविध नाम पुष्प गूँथ-गूँथ के।
स्तोत्र की माला बनाई पूजहूँ उससे।।हे नाथ.।।११।।
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भगवन् प्रसन्न होय अनुग्रह करो मुझपे।
स्तोत्र से वच हों पवित्र शीश नमें से।।हे नाथ.।।१२।।
प्रभु नाम स्मृतिमात्र से भाक्तिक पवित्र हों।
जो भक्ति से पूजा करें कल्याण पात्र हों।।हे नाथ.।।१३।।
इस विध समवसरण में इंद्र ने स्तुति किया।
फिर श्री विहार हेतु प्रभु से प्रार्थना किया।।हे नाथ.।।१४।।
हे नाथ! भव्य धान्य पाप अनावृष्टि से।
सूखें उन्हें सींचो सुधर्म सुधावृष्टि से।।हे नाथ.।।१५।।
भगवंत! आप विजय की उद्योग सूचना।
ये धर्मचक्र है तैयार शोभता घना।।हे नाथ.।।१६।।
हे देव! आप मोह शत्रु पे विजय किया।
शिवमार्ग के उपदेश का अवसर ये आ गया।।हे नाथ.।।१७।।
जिनवर स्वयं तैयार श्रीविहार के लिए।
बस इंद्र के ये प्रार्थना नियोग के लिए।।हे नाथ.।।१८।।
तत्क्षण समवसरण सभी विलीन हो गया।
इंद्रों ने प्रभु विहार का उत्सव महा किया।।हे नाथ.।।१९।।
जय जय ध्वनी ऊँची उठी बाजे बजे घने।
संगीत गीत नृत्य करें देवगण घने।।हे नाथ.।।२०।।
आकाश में अधर सुवर्ण कमल रच दिए।
सुरभित कमल पे नाथ चरण धरत चल दिए।।हे नाथ.।।२१।।
गंधोद वृष्टि, पुष्पवृष्टि मंद पवन है।
अतिशय विभूति आप के विहार समय है।।हे नाथ.।।२२।।
आरे हजार धर्मचक्र चमचमा रहा।
जिनराज आगे-आगे चले शोभता महा।।हे नाथ.।।२३।।
हे देव! मेरी प्रार्थना को पूर्ण कीजिए।
‘कैवल्यज्ञानमती’ नाथ! तूर्ण दीजिए।।हे नाथ.।।२४।।
-दोहा-
जय जिन नामावलि, स्तुति हारावलि, जो भविजन कंठे धरहीं।
उन स्मृति शक्ती, क्षण क्षण बढ़ती, ‘अतिशय ज्ञान करें सबहीं।।२५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकराणांअष्टोत्तरसहस्रनाममंत्रेभ्य: जयमाला पूर्णार्घ्यं……….।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-गीता छंद-
जो भव्य श्रेष्ठ सहस्रनाम विधान भक्ती से करें।
वे पापकर्म सहस्र नाशें सहस मंगल विस्तरें।।
‘सज्ज्ञानमति’ भास्कर उदित हो हृदय की कलिका खिले।
बस भक्त के मन की सहस्रों कामनायें भी फलें।।१।।
-इत्याशीर्वाद:-