-दोहा-
पर्व अनादि अनंत है, दशलक्षणमय धर्म।
होता भव का अंत है, करें यदी शुभकर्म।।१।।
धर्म नाम से हैं क्षमा, मार्दव आर्जव भाव।
शौच सत्य संयम तथा, तप अरु त्याग स्वभाव।।२।।
आकिंचन्य व ब्रह्मचर्य, हैं धर्मों के सार।
इनकी पूजन से करूँ, मुक्तिपंथ साकार।।३।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव
वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक (दोहा)-
गंग नदी का नीर है, जग में शुद्ध पवित्र।
दश धर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।१।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
काश्मीरी केशर घिसी, पूजन हेतु पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।२।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
तंदुल धवल अखण्ड ले, धोकर किया पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।३।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
फूल चुने निज हाथ से, विविध प्रकार पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।४।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: कामबाणविनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
व्यंजन विविध बनाय के, लाऊँ थाल पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।५।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत दीपक का थाल ले, आरति करूँ पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।६।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूपघटों की अग्नि में, खेऊँ धूप पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।७।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
विविध फलों का थाल भर, अर्पूं नाथ पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।८।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अर्घ्य ‘चंदनामति’ लिया, स्वर्णिम थाल पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।९।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मेभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कंचन धारी से करूँ, शांतीधार पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
पुष्पों को भरकर करूँ, पुष्पांजली पवित्र।
दशधर्मों की अर्चना, से हो पावन चित्त।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र – ॐ ह्रीं उत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्य
ब्रह्मचर्यदशलक्षणधर्मेभ्यो नम:।
तर्ज-माई रे माई…………..
दशधर्मों की पूजन में, जयमाल सभी मिल गाएँ।
अष्टद्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।टेक.।।
उत्तम क्षमा धर्म पावन कर, शत्रु को मित्र बनाना।
उत्तम मार्दव धर्म के द्वारा, विनय भाव अपनाना।।
उत्तम आर्जव धर्म धार कर………….
उत्तम आर्जव धर्म धार कर, मन को सरल बनाएँ।
अष्टद्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।१।।
उत्तम सत्य धर्म का सेवन, वचनसिद्धि करवाता।
उत्तम शौच धर्म मन-वच-तन, को भी शुद्ध बनाता।।
उत्तम संयम धर्म के द्वारा………..
उत्तम संयम धर्म के द्वारा, जीवन उच्च बनाएँ।
अष्टद्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।२।।
उत्तम तपो धर्म से कुछ, तप की शिक्षा मिलती है।
उत्तम त्याग धर्म से मन की, ज्ञानकली खिलती है।।
चार दान देकर गुरुओं को……….
चार दान देकर गुरुओं को, त्याग धर्म अपनाएँ।
अष्ट द्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।३।।
उत्तम आकिंचन्य धर्म, परिग्रह का त्याग कराता।
जब तक पूर्ण त्याग नहिं हो, परिग्रहप्रमाण करवाता।।
श्रद्धायुत इसका पालन कर……….
श्रद्धायुत इसका पालन कर, अणुव्रती बन जाएं।
अष्ट द्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।४।।
उत्तम ब्रह्मचर्य पालन कर, शीलव्रती बनना है।
सब धर्मों का सार चन्दना-मती प्राप्त करना है।।
इसीलिए दशलक्षण पर्व में………
इसीलिए दशलक्षण पर्व में, पूजन करने आए।
अष्टद्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।५।।
मोक्षमहल की सीढ़ी ये, दशधर्म कहे जाते हैं।
इन पर चढ़कर भव्यप्राणि शाश्वत सुख को पाते हैं।।
सिद्धशिला के स्वामी बनकर………..
सिद्धशिला के स्वामी बनकर, पूजन का फल पाएँ।
अष्टद्रव्य का थाल सजा, पूर्णार्घ्य चढ़ाने आए।।
जय हो दशों धर्म की जय, जय हो दशों धर्म की जय.।।६।।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमामार्दवार्जवासत्यशौचसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्य
दशलक्षणधर्मेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-शेर छंद-
जो भव्यजन दशधर्म की आराधना करें।
निज मन में धर्म धार वे शिवसाधना करें।।
इस धर्म कल्पवृक्ष को धारण जो करेंगे।
वे ‘‘चंदनामती’’ पुन: भव में न भ्रमेंगे।।
।। इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि: ।।