-स्थापना (कुसुमलता छन्द)-
तीर्थंकर श्री विमलनाथ की, जन्मभूमि काम्पिल्यपुरी।
गर्भ जन्म तप ज्ञान चार, कल्याणक से पावन नगरी।।
आह्वानन स्थापन करके, पूजूँ कम्पिल तीरथ को।
जिनवर की पद धूलि नमन कर, गाऊँ जिनगुण कीरत को।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्र! अत्र अवतर
अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्र! अत्र तिष्ठ
तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्र! अत्र मम
सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक (अडिल्ल छन्द)-
गंग नदी का नीर, कलश में भर लिया।
पाऊँ भवदधि तीर, धार पद कर दिया।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वंदूँ कम्पिल धाम, भव भव दुख से छूटूँ।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय जन्मजरा-
मृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
काश्मीरी केशर घिसकर के लाइये।
जिनवर चरणकमल से, पूज्य बनाइये।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय संसारताप-
विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
मोती सम उज्जवल अक्षत के पुंज हैं।
अक्षयपद के हेतु निजातम कुंज हैं।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय अक्षयपद-
प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
चम्प चमेली बेला पुष्प चढ़ाय के।
कामव्यथा नश जाय स्वात्म सुख पाय के।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय कामबाण-
विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
घेवर बावर आदि बहुत पकवान ले।
क्षुधा व्याधि नाशन हित नाथ चढ़ाय के।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय क्षुधारोग-
विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
रजतथाल में घृत का दीप जलाय के।
मोहनाश हो तीरथ आरति गाय के।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।६।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय मोहांधकार-
विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णागरु की शुद्ध धूप बनवाय के।
कर्म नष्ट हो प्रभु के निकट जलाय के।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिलधाम भव भव दुख से छूटूँ।।७।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय अष्टकर्म-
दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूरों का गुच्छा सुंदर लाय के।
सम्यक्फल हो प्राप्त जिनेश चढ़ाय के।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।८।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय मोक्षफल-
प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अष्टद्रव्ययुत अर्घ्य चढ़ाऊँ नाथ मैं।
तभी ‘‘चन्दनामती’’ मिले गुणराज्य है।।
विमलनाथ भगवान का जन्मस्थल पूजूँ।
वन्दूँ कम्पिल धाम भव भव दुख से छूटूँ।।९।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय अनर्घ्यपद-
प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-सोरठा-
विमलनाथ पदपद्म, शांतीधारा मैं करूँ।
मिले निजातम सद्म, कम्पिलजी तीरथ जजूँ।।१०।।
शांतये शांतिधारा
चंपक हरसिंगार, प्रभु पद पुष्पांजलि करूँ।
भरे सुगुण भंडार, कम्पिल जी तीरथ जजूँ।।१।।
दिव्य पुष्पांजलिः
(इति मण्डलस्योपरि दशमदले पुष्पांजल्क्षिपेत्)
-प्रत्येक अर्घ्य (दोहा)-
ज्येष्ठ वदी दशमी जहाँ, हुआ गर्भकल्याण।
विमलनाथ की वह धरा, पूजूँ करूँ प्रणाम।।१।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथगर्भकल्याणक पवित्रकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
माघ सुदी तिथि चौथ को, जन्मे विमल जिनेश।
अतः कम्पिला तीर्थ को, पूजें नमें सुरेश।।२।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मकल्याणक पवित्रकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।
जन्म तिथी में ही जहाँ, हुआ प्रभू वैराग्य।
उपवन कम्पिल तीर्थ का, अर्चूं लहूँ स्वराज्य।।३।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथदीक्षाकल्याणक पवित्रकम्पिलपुरी-तीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
माघ शुक्ल छठ श्रेष्ठ तिथि, हुआ जहाँ पर ज्ञान।
समवसरण से पूज्य वह, कम्पिल तीर्थ महान।।४।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथकेवलज्ञानकल्याणक पवित्रकम्पिलपुरी-तीर्थक्षेत्राय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (शंभु छन्द)-
श्री विमलनाथ तेरहवें तीर्थंकर का अर्चन करना है।
उनके चारों कल्याणक से, पावन तीरथ को भजना है।।
उस कम्पिल जी में अद्यावधि, प्राचीन कथानक मिलता है।
उसको पूर्णार्घ्य चढ़ाने से, निज मन का उपवन खिलता है।।५।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथगर्भजन्मदीक्षाकेवलज्ञानचतुःकल्याणक पवित्रकम्पिलपुरी
तीर्थक्षेत्राय पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणक तीर्थक्षेत्रेभ्यो नम:।
तर्ज-यदि भला किसी का कर न सको……
कम्पिल जी की गौरव गाथा, सब मिलकर वृद्धिंगत करना।
तीर्थंकर विमलनाथ जी के, जन्मस्थल का अर्चन करना।।टेक०।।
कृतवर्मा पितु के महलोें में, जयश्यामा माँ के आंगन में।
हुई पन्द्रह महिने रत्नवृष्टि, उस पुण्यांगण का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।१।।
जन्मे खेले जिस धरती पर, वहाँ स्वर्गपुरी भी आती थी।
सौधर्म इन्द्र जहाँ किंकर था, उस कम्पिलजी का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।२।।
जहाँ ब्याह किया और राज्य किया, फिर भी आसक्त न थे उसमें।
लख बर्फ नाश दीक्षा ले ली, उस तपोभूमि का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।३।।
तप से जहाँ घातिकर्म नाशे, कैवल्यज्ञान का उदय हुआ।
बना समवसरण गगनांगण में, उस ज्ञान स्थल का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।४।।
अपनी दिव्यध्वनि से प्रभु ने, फिर जन-जन का कल्याण किया।
सम्मेदशिखर से मोक्ष गये, उस सिद्धक्षेत्र का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।५।।
कम्पिल जी की यह धर्मकथा, जिन आगम ग्रंथ पुराण कहें।
लेकिन इतिहास भी है प्रसिद्ध, सति द्रौपदि के जन्मस्थल का।।
तीर्थंकर०।।६।।
है कथा महाभारत युग की, नृप द्रुपद यहाँ पर रहते थे।
उनकी कन्या द्रौपदी हुई, उसके सतीत्व का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।७।।
पांचाल देश की रजधानी, काम्पिल्यपुरी कहलाती थी।
द्रौपदी तभी पाञ्चाली कहलाई, इतिहास यही पढ़ना।।
तीर्थंकर०।।८।।
है वर्तमान गौरवशाली, कम्पिल की श्रीवृद्धि लखकर।
जिनमंदिर है प्राचीन जहाँ, प्रभु विमलनाथ का क्या कहना।।
तीर्थंकर०।।९।।
कम्पिलनगरी के कण-कण को, मेरा वंदन अन्तर्मन से।
मन मेरा भी हो विमल सदा, अनुरोध यही स्वीकृत करना।।
तीर्थंकर०।।१०।।
जयमाला पढ़कर तीरथ की, पूर्णार्घ्य समर्पण करता हूँ।
‘‘चंदनामती’’ मति पूर्ण बने, यह अर्घ्य मेरा स्वीकृत करना।।
तीर्थंकर०।।११।।
ॐ ह्रीं तीर्थंकरश्रीविमलनाथजन्मभूमिकम्पिलपुरीतीर्थक्षेत्राय जयमाला
पूर्णार्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
-शेर छंद-
तीर्थंकरों के पंचकल्याणक जो तीर्थ हैं।
उनकी यशोगाथा से जो जीवन्त तीर्थ हैं।।
निज आत्म के कल्याण हेतु उनको मैं नमूँ।
फिर ‘‘चन्दनामती’’ पुन: भव वन में ना भ्रमूँ।।
।। इत्याशीर्वाद:।।