(भरत-ऐरावत वर्तमान तीर्थंकर पूजा)
-स्थापना-
ढाईद्वीपों में पाँच भरत, औ पाँच क्षेत्र ऐरावत हैं।
इनमें चौबिस तीर्थेश चतुर्थ-काल में जिनवर भाषित हैं।।
इन वर्तमान दश चौबीसी को, मन-वच-तन से मैं पूजूँ।
सम्पूर्ण अमंगल दोष दूर कर, भव-भव के दुख से छूटूँ।।१।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकर-
समूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकर-
समूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकर-
समूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अथ अष्टक (स्रग्विणी छन्द)—
सिंधु को नीर भृंगार में लाय के, धार देऊँ प्रभो पाद में आय के।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।१।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
जलं निर्वपामीति स्वाहा।
गंध सौगंध्य कर्पूर केशर मिली, पाद चर्चंत सम्यक्त्व कलिका खिली।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।२।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
दुग्ध के फेन सम स्वच्छ अक्षत लिए, पुंज को धारते स्वात्म संपत मिले।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।३।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
केवड़ा मोगरा पुष्प अरविंद हैं, नाथ पद पूजते कामशर भंग हैं।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।४।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
मुद्ग लाडू इमरती कनक थाल में, पूजते भूख व्याधी हरूँ हाल में।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।५।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वर्ण के पात्र में ज्योति कर्पूर की, नाथ की आरती मोह को चूरती।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।६।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
धूप दशगंध ले अग्नि में खेवते, कर्म की भस्म हो नाथ पद सेवते।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।७।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
आम अंगूर केला अनंनास ले, नाथ पद चर्चते मुक्तिकांता मिले।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।८।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीर गंधादि वसु द्रव्य ले थाल में, अर्घ्य अर्पण करूँ नाय के भाल मैं।
इंद्र शतवंद्य तीर्थंकरों को जजूँ, जन्मव्याधी हरूँ सर्व दुख से बचूँ।।९।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीन दशचतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य:
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-सोरठा-
तीर्थंकर परमेश, तिहुंजग शांतीकर सदा।
चउसंघ शांती हेत, शांतीधारा मैं करूँ।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
हरसिंगार प्रसून, सुरभित करते दश दिशा।
तीर्थंकर पदपद्म, पुष्पांजलि अर्पण करूँ।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
(दश चौबासी के कुल २४० अर्घ्य)
जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
दोहा- शुद्ध बुद्ध परमात्मा, पाया ज्ञान प्रभात।
परमानंद निजात्म में, मग्न रहें दिन-रात।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीऋषभदेवतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअजितनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसंभवनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअभिनंदननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसुमतिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपद्मप्रभनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसुपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीचंद्रप्रभनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपुष्पदंतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीशीतलनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीश्रेयांसनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीवासुपूज्यनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीविमलनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअनंतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीधर्मनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीशांतिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअरहनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमल्लिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमुनिसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीनमिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीनेमिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (दोहा)
ऋषभदेव को आदि ले, महावीरपर्यंत।
श्री चौबीस जिनेन्द्र को, पूजत हो भव अंत।।१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीऋषभदेवादिमहावीरस्वामिपर्यन्त-
चतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
दोहा- कर्ममलीमस आत्मा, प्रभु तुम भक्ति प्रसाद।
शुद्ध बुद्ध होवे तुरत, अत: नमूँ तुम पाद।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीबालचंद्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसुव्रतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअग्निसेननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदिसेननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीश्रीदत्तनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीव्रतधरनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसोमचंद्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीधृतदीर्घनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीशतायुष्यनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीविवसितनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीश्रेयोनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीविश्रुतजलनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रासिंहसेननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीउपशांतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीगुप्तशासननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअनंतवीर्यनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपार्श्वनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअभिधाननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमरुदेवनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्री श्रीधरनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीश्यामकंठनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअग्निप्रभनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअग्निदत्तनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीवीरसेननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (सोरठा)
श्री चौबीस जिनेश, जो ऐरावत क्षेत्र के।
देवें सौख्य हमेश, पूजूँ अर्घ्य चढ़ाय के।।१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीबालचंंद्रादिवीरसेननाथपर्यंत-
चतुर्विंशति-तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पूर्वधातकीखण्ड भरतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
दोहा- धर्मचक्र के अधिपती, त्रिभुवनपति जिनराज।
सुमन चढ़ाकर पूजहूँ, नमूँ-नमूँ नतमाथ।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीयुगादिदेवनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसिद्धांतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमहेशनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपरमार्थनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसमुद्धरनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीभूधरप्रभनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीउद्योतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअभयनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअप्रकंपनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपद्मनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपद्मनंदिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रियंकरनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसुकृतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीभद्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमुनिचंद्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपंचमुष्टिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीत्रिमुष्टिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीगांगिकनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीगणनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसर्वांगनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीब्रह्मेन्द्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीइंद्रदत्तनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीनायकनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (दोहा)
पूर्वधातकी खण्ड के, धर्म चक्रधर धीर।
पूरण अर्घ्य चढ़ाय के, पाऊँ मैं भवतीर।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीन श्रीयुगादि-देवप्रभृति-
नायकनाथपर्यंत चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
दोहा- ज्ञान-दरश-सुख-वीर्यमय, गुण अनंत विलसंत।
सुमन चढ़ाकर पूजहूँ, हरूँ सकल जग फंद।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअपश्चिमनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपुष्पदंतनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअर्हदेवनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीचारित्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसिद्धानंदनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदगनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपद्मनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीउदयनाभिनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीरुक्मेन्द्रनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीकृपालुनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीप्रौष्ठिलनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसिद्धेश्वरनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअमृतेन्दुनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीस्वामिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीभुवनलिंगनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसर्वरथनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमेघनंदनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदिकेशनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीहरिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअधिष्ठनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीशांतिकनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदिस्वामितीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीकुंदपार्श्वनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीविरोचननाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (नाराच छंद)
तोय गंध शालि पुष्प, आदि अष्टद्रव्य ले।
तीन रत्न हेतु आप, अर्घ्य से जजूँ भले।।
वर्तमान तीर्थनाथ, वंदना सदा करूँ।
धर्म्य शुक्लध्यान हेतु, अर्चना मुदा करूँ।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ वर्तमानकालीनचतुर्विंशति-
तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पश्चिमधातकीखण्डद्वीप भरतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
दोहा- कोटिसूर्य से प्रभ अधिक, अनुपम आतम तेज।
पुष्पांजलि कर पूजहूँ, कर्माञ्जन हर हेत।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीविश्वचंद्रनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीकपिलनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीवृषभनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रियतेजोनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रशमनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीविषमांगनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीचारित्रनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रभादित्यनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमुंजकेशनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीवीतवासनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसुराधिपनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीदयानाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसहस्रभुजनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीजिनसिंहनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीरैवतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीबाहुस्वामी-तीर्थंकराय अर्घ्यं
नर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमालिनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअयोगनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअयोगिनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीकामरिपुनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीआरंभनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीनेमिनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीगर्भज्ञातिनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीएकार्जितनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (स्रग्विणी छंद)- सर्व संपत्ति धर नाथ अनमोल हो,
अर्घ्य से पूजते स्वात्म कल्लोल हो।
तीर्थकरतार चौबीस को मैं जजूँ,
कर्म निर्मूल कर स्वात्म अमृत चखूँ।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ वर्तमानकालीनचतु-
र्विंशतितीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पश्चिमधातकीखण्डद्वीप ऐरावतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
सोरठा- त्रिभुवन गुरु भगवान्, अनुपम सुख की खान हो।
मैं पूजूँ धर ध्यान, सकल विघ्न घन को हरो।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसाधितनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीजिनस्वामि-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीस्तमितेन्द्रनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअत्यानंदनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपुष्पोत्फुल्लनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमंडितनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीप्रहतदेवनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमदनसिद्धनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीहसदिंद्रनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीचंद्रपार्श्वनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअब्जबोधनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीजिनबल्लभनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसुविभूतिकनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं नर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीककुदभासनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसुवर्णनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीहरिवासनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीप्रियमित्रनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीधर्मदेवनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीप्रियरतनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदिनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअश्वानीकनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपर्वनाथ
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपार्श्वनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीचित्रहृदयनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (अडिल्ल छंद)
वर्तमान चौबीस जिनेश्वर को जजूँ।
श्रद्धा भक्ति समेत, सतत उनको भजूँ।।
पूजूँ अर्घ्य चढ़ाय, नमाऊँ भाल मैं।
जिनगुण संपति लहूँ, तुरत खुशहाल मैं।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ वर्तमानकालीन
चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पूर्वपुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
सोरठा- ज्ञान चेतना रूप, परमेष्ठी चिद्रूप हैं।
पुष्पांजलि से पूज, सकल दु:ख दारिद हरूँ।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीजगन्नाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रभासनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीस्वरस्वामितीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीभरतेशनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीदीर्घानननाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीविख्यातकीर्तिनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअवसानिनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रबोधनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीतपोनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपावकनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीत्रिपुरेश्वरनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसौगतनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीवासवनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमनोहरनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीशुभकर्मईशनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीइष्टसेवितनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीविमलेन्द्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीधर्मवासनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रसादनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रभामृगांकतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीउज्झितकलंकनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीस्फटिकप्रभनाथ-तीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीगजेन्द्रनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीध्यानजयनाथतीर्थंकराय अर्घ्यं
निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (दोहा)-
जल गंधादिक अर्घ्य, लिया भर थाल में।
रत्नत्रय निधि हेतु, जजूँ त्रयकाल में।।
वर्तमान चौबीस, जिनेश्वर को जजूँ।
रोग शोक भय नाश, सहज निज सुख भजूँ।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ वर्तमानकालीनचतुर्विंशति-
तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
सोरठा- सिद्धिवधू भरतार, निज में ही रमते सदा।
भक्ति-मुक्ति दातार, इसी हेतु भविजन जजें।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीशंकरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वप्मीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअक्षवासनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनग्ननाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनग्नाधिपतिनाथ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनष्टपाखंडनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीस्वप्नवेदनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीतपोधननाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीपुष्पकेतुनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीधार्मिकनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीचंद्रकेतुनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअनुरक्तज्योतिर्नाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीवीतरागनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीउद्योतनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीतमोपेक्षनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमधुनादनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमरुदेवनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीदमनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीवृषभस्वामितीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीशिलातननाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीविश्वनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमहेन्द्रनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीतमोहरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीब्रह्मजनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (गीता छंद)- नीरादि में वररत्न धर के, अर्घ्य सुन्दर ले लिया।
अनमोल निज संपत्ति हेतूू, अर्घ्य तुम अर्पण किया।।
चौबीस तीर्थंकर जगत में, सर्वसुख दातार हैं।
जो पूजते तुम चरण अंबुज, वे भवोदधि पार हैं।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ वर्तमानकालीनचतुर्विंशति-
तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पश्चिमपुष्करार्धद्वीप भरतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
दोहा- अलंकार भूषण रहित, फिर भी सुन्दर आप।
आयुध शस्त्रविहीन हो, नमूँ नमूँ निष्पाप।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसर्वांगस्वामितीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपद्माकरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीप्रभाकरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीबलनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीयोगीश्वरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसूक्ष्मांगनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीव्रतचलातीतनाथ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीकलंबकनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपरित्यागनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीनिषेधिकनाथ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीपापापहारिनाथ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसुस्वामिनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमुक्तिचंद्रनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअप्राशिकनाथ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीजयचंद्रनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमलाधारिनाथ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीसुसंयतनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीमलयसिंधुन्थ-तीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीअक्षधरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीदेवधरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीदेवगणनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीआगमिकनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीविनीतनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ श्रीरतानंदतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (भुजंगप्रयात)
जलादी मिला अर्घ्य चरणों चढ़ाऊँ, निजात्मीक संपत्ति मैं शीघ्र पाऊँ।
जजूँ तीर्थकर के चरण पंकजों को, मिटाऊँ सभी जन्म के संकटों को।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रस्थ वर्तमानकालीनचतुर्विंशति-
तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्र के वर्तमान चौबीसी के अर्घ्य
दोहा- समवसरण प्रभु आपका, दिव्य सभा का रूप।
मध्य कमल आसन उपरि, राजें तिहुँ जग भूप।।१ ।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीगांगेयकनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनल्लवासवनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीभीमनाथ
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीदयाधिकनाथ-
तीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसुभद्रनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीस्वामिनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीहनिकनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीनंदिघोषनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीरूपबीजनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीवङ्कानाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसंतोषनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसुधर्मनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीफणीश्वरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीवीरचंद्रनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीमेधानिकनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीस्वच्छनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीकोपक्षयनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीअकामनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीधर्मधामनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीसूक्तिसेननाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीक्षेमंकरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीदयानाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीकीर्तिपनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थ श्रीशुभंकरनाथतीर्थंकराय
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
पूर्णार्घ्य (नाराच छंद)
तीनलोक संपदा जिनेन्द्रभक्त को मिले,
अर्घ्य को चढ़ावते निजात्म की कली खिले।
धर्मतीर्थनाथ की सदैव अर्चना करें,
पूर्ण हों स्वतंत्र वे यहाँ पे जन्म ना धरें।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रस्थवर्तमानकालीनचतुर्विंशति-
तीर्थंकरेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
मंत्र जाप्य – ॐ ह्रीं अर्हं त्रयोदशद्वीपसंबंधि नवदेवताभ्यो नम:।
-दोहा-
अनंत दर्शन ज्ञान औ, सुख औ वीर्य अनंत।
अनंत गुण के तुम धनी, नमूँ नमूँ भगवंत।।१।।
-शेरछंद-
जैवंत तीर्थकर अनंत सर्वकाल के।
जैवंत धर्मवंत न हों वश्यकाल के।।
जै पाँच भरत पाँच ऐरावत में हो रहे।
जै भूत वर्तमान औ भविष्य के कहे।।१।।
इस जम्बुद्वीप में हैं भरत और ऐरावत।
इन दो ही क्षेत्र में सदा हो काल परावृत।।
जो पूर्व धातकी औ अपर धातकी कहे।
इन दोनों में भी भरत ऐरावत सदा कहे।।२।।
वर पुष्करार्ध पूर्व अपर में भी दोय जो।
हैं क्षेत्र भरत और ऐरावत प्रसिद्ध जो।।
इस ढाईद्वीप में प्रधान क्षेत्र दश कहे।
षट्काल परावर्तनों से चक्रवत् रहें।।३।।
इनके चतुर्थकाल में तीर्थेश हुए हैं।
जो वर्तमान काल के प्रसिद्ध हुए हैं।।
इस विध से दश् क्षेत्र के चौबीस जिनेश्वर।
ये दो सौ चालीस कहे धर्म के ईश्वर।।४।।
इनकी त्रिकाल बार-बार वंदना करूँ।
मैं भक्तिभाव से सदैव अर्चना करूँ।।
सम्पूर्ण कर्मपर्वतों की खण्डना करूँ।
निज ‘ज्ञानमती’ पाय, फेर जन्म ना धरूँ।।५।।
-घत्ता-
जय जय तीर्थंकर, धर्मचक्रधर, भव संकट हर तुमहिं भजूूँ।
जय तीन रतनधर, निज संपतिवर, अनुपम सुख को नित्य चखूँ।।६।।
ॐ ह्रीं पंचभरतपंचैरावतक्षेत्रसंबंधि-वर्तमानकालीनदशचतुर्र्विंशति-
तीर्थंकरेभ्य: जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-शंभु छंद-
श्री तेरहद्वीप विधान भव्य, जो भावभक्ति से करते हैं।
वे नित नव मंगल प्राप्त करें, सम्पूर्ण दु:ख को हरते हैं।।
फिर तेरहवाँ गुणस्थान पाय, अर्हंत अवस्था लभते हैं।
कैवल्य ‘ज्ञानमति’ किरणों से, त्रिभुवन आलोकित करते हैं।।
।। इत्याशीर्वाद: ।।