अथ स्थापना (नरेन्द्र छंद)
कर्मभूमि के आर्यखण्ड में, तीर्थंकर विहरे हैं।
समवसरण के मध्य राजते, भविजन पाप हरे हैं।।
देश विदेहों में तीर्थंकर, समवसरण नित रहता।
भरतैरावत में चौथे ही, काल में यह दिख सकता।।१।।
-दोहा-
जिनवर समवसरण यही, धर्मसभा की भूमि।
आह्वानन कर मैं जजूँ, मिले आठवीं भूमि।।२।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव-
समवसरणसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव-
समवसरणसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव-
समवसरणसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
अथ अष्टक (सोरठा)
सिंधुनदी को नीर, जल से पूजत मन शुची।
मिलता ज्ञान शरीर, समवसरण पूजूँ सदा।।१।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शीतल गंध सुगंध, चंदन चर्चे अघ टले।
मिलता सौख्य अनिंद्य, समवसरण पूजूँ सदा।।२।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शालि स्वच्छ अखंड, पुंज चढ़ाते अखय पद।
होवे ज्ञान अखंड, समवसरण पूजूँ सदा।।३।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
बेला कमल गुलाब, पुष्प सुगंधित अर्पते।
मिटे सुतन-मन व्याधि, समवसरण पूजूँ सदा।।४।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
लड्डू मोतीचूर, बहुविध चरू चढ़ावते।
होवे क्षुधा विदूर, समवसरण पूजूँ सदा।।५।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
घृत का दीप जलाय, करूँ आरती तम टले।
भेद ज्ञान प्रगटाय, समवसरण पूजूँ सदा।।६।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अगर तगर से मिश्र, धूप सुगंधित खेवते।
घातिकर्म हो भस्म, समवसरण पूजूँ सदा।।७।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
लीची आम अनार, सरस फलों से पूजते।
मिले आत्म सुखसार, समवसरण पूजूँ सदा।।८।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव
समवसरणेभ्य: फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल गंधादिक लेय, अर्घ बनाकर पूजते।
मिलता सौख्य अमेय, समवसरण पूजूँ सदा।।९।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधिसप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव समवसरणेभ्य:
अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतिधारा देत, शांती हो सब विश्व में।
पूर्ण स्वस्थता हेत, समवसरण पूजूँ सदा।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
मल्ली हरसिंगार, पुष्पांजलि अर्पण किए।
हो नवनिधि भण्डार, समवसरण पूजूँ सदा।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
समवसरण यजते मिले, सर्व ऋद्धि नवनिद्धि।
पुष्पांजली चढ़ावते, सर्व मनोरथ सिद्ध।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
जम्बूद्वीप के 34 समवसरण के 34 अर्घ्य
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
पूर्णार्घ्य (दोहा)
त्रिभुवनपति त्रिभुवन धनी, त्रिभुवन के गुरु आप।
त्रिभुवन के चूड़ामणी, नमूँ नमूँ नत माथ।।
ॐ ह्रीं जंबूद्वीपसंबंधि-चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमिस्थित अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेव समवसरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पूर्वधातकीखण्डद्वीप के 34 समवसरण के 34 अर्घ्य
दोहा- चिन्मूरति चिंतामणी, चिंतित फल दातार।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, पाऊँ सौख्य अपार।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
पूर्णार्घ्य (शंभु छंद)
जो समवसरण के स्वामी हैं, वे जिनवर शिवलक्ष्मी वरते।
वे शरणागत के रक्षक हैं, भक्तों को मोक्ष दिला सकते।।
मैं निज समतारस का इच्छुक, अतएव शरण में आया हूँ।
बस पूरण अर्घ्य चढ़ा करके, गुण पूरण करने आया हूँ।।
ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमिस्थित अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पश्चिमधातकीखण्डद्वीप के 34 समवसरण के 34 अर्घ्य
दोहा- धर्मामृतमय वचन की, वर्षा से भरपूर।
भविजन कलिमल धोवते, करो हमें सुखपूर।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे –
अचिन्त्यविभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
पूर्णार्घ्य (दोहा)
तीर्थंकर जिनदेव को, पूजूँ भक्ति समेत।
पूरण अर्घ्य चढ़ायहूँ, पूर्ण सौख्य के हेतु।।
ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमिस्थित अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पूर्वपुष्करार्धद्वीप के 34 समवसरण के 34 अर्घ्य
दोहा- सब कर्मों में एक ही, मोहकर्म बलवान।
उसके नाशन हेतु मैं, पूजूँ भक्ति प्रधान।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वप्रावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
वसु द्रव्य मिलाकर अर्घ्य लिया।
तुम अर्पत सौख्य अनर्घ्य लिया।।
तीर्थेश समवसृति सौख्य प्रदा।
शत इंद्र जजें प्रभुपाद मुदा।।
ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमिस्थित अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
पश्चिमपुष्करार्धद्वीप के 34 समवसरण के 34 अर्घ्य
सोरठा- स्थिति औ अनुभाग, बंध कषायों से कहा।
इसके नाशन हेतु, पुष्पांजलि कर पूजहूँ।।१।।
अथ मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-कच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महाकच्छाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-कच्छकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-आवर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-लांगलावर्ताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पुष्कलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पुष्कलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुवत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महावत्साविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वत्सकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-रम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुरम्याविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-रमणीयाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-मंगलावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुपद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महापद्माविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-पद्मकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-शंखाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-नलिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-कुमुदाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सरिताविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुवप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-महावप्राविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-वप्रकावतीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-गंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-सुगंधाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-गंधिलाविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-गंधमालिनीविदेहक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-भरतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-ऐरावतक्षेत्रार्यखण्डे अचिन्त्यविभूतियुक्त
श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
पूर्णार्घ्य (रोला छंद)
परमहंस परमेश श्री तीर्थेश जिनेशा।
परमपिता भुवनेश नमत शतेन्द्र हमेशा।।
सात भयों से दूर पूर्ण अभयदाता।
जो पूजें तुम नित्य पावें अनुपम साता।।
ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-चतुस्त्रिंशत्कर्मभूमिस्थित अचिन्त्य-
विभूतियुक्त श्रीतीर्थंकरदेवसमवसरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-पूर्णार्घ्य-
इक सौ सत्तर कर्मभूमि में, भूत भावि संप्रति में।
तीर्थंकर के समवसरण थे, होते अरु होवेंगे।।
उन सबको पूर्णार्घ्य समर्पित, करके निजपद पाऊँ।
चौंतिस अतिशय सहित देव, तीर्थंकर के गुण गाऊँ।।
ॐ ह्रीं सप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थित अचिन्त्यविभूतियुक्तश्रीतीर्थंकरदेव-
समवसरणेभ्य: पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं त्रयोदशद्वीपसंबंधिनवदेवताभ्यो नम:।
दोहा- समवसरण तीर्थेश के, जिनमंदिर सत्यार्थ।
गाऊँ गुणमाला अबे, सिद्ध करें सर्वार्थ।।१।।
छंद-हे दीनबंधु…………….
जय जय जिनेन्द्र तीर्थनाथ, गुणमणी भरें।
जय जय जिनेन्द्र तीर्थनाथ, जग सुखी करें।।
जब घाति कर्म को हना, तब केवली हुए।
तुम ज्ञान में तब लोक अरु, अलोक दिख गए।।२।।
तब इंद्र की आज्ञा से, धनपती यहाँ आया।
अद्भुत अपूर्व रम्य, समवसरण बनाया।।
रवि बिंब सदृश गोल, इंद्र नीलमणी का।
इस भूमि से वह बीस सहस, हाथ था ऊँचा।।३।।
चारों दिशा में सीढ़ियाँ हैं, बीस सहस ही।
वे एक एक हाथ ऊँची, सर्व सुखमयी।।
चारों दिशा में चार, मानस्तंभ बने हैं।
जो दर्श से ही मानियों का, मान हरे हैं।।४।।
पहला है धूलिसाल कोट, सर्व रत्न का।
फिर चैत्य के प्रासाद की, मानी है भूमिका।।
फिर नाट्यशाला फेर, मानस्तंभ की भूमी।
फिर वेदिका प्रथम है पुन:, खातिका वनी।।५।।
वेदी लता भूमी के बाद, कोट दूसरा।
उपवन वनी व नाट्यशाला, वेदि ध्वज धरा।।
परकोट तृतीय कल्पभूमि, नाट्यशालिका।
वेदी भवन धरा स्तूप, कोट चतुर्था।।६।।
पश्चात् श्रीमंडप की भूमि, जो फटिकमयी।
वेदी के बाद प्रथम द्वितिय, तृतिय पीठ ही।।
इसके उपरि है गंधकुटी, मध्य सिंहासन।
उस पर सहस्रदलमयी, स्वर्णिम कमल आसन।।७।।
चतुरंगुल अधर तीर्थनाथ, इस पे राजते।
निज दिव्यध्वनी से, असंख्य भव तारते।।
बालक व वृद्ध अंध बधिर, पंगु आदि भी।
मुहूर्त में ही चढ़ते लोग, सीढ़ियाँ सभी।।८।।
नाटक गृहों में अप्सरा, अभिनय विविध करें।
तीर्थंकरों के पंच-कल्याणक को विस्तरें।।
गणधर व चक्रवर्ति, पुण्य पुरुष चरित का।
नाटक करें सब लोक का, मन हर रहीं नीका।।९।।
मिथ्यादृशी पाखंडि शूद्र, जन वहाँ नहीं।
जो दर्श करें नाथ का, वे भव्य हैं सही।।
बाधा बिना बैठे सभी, निज निज के ही कोठे।
मुनिगण व आर्यिका व, देव देवि असंख्ये।।१०।।
नर पशु सभी निज निज के, वैरभाव छोड़ के।
प्रभु का सुनें उपदेश, रुचि से हाथ जोड़ के।।
प्रभु वीर का समवसरण, योजन सु एक था।
फिर भी असंख्य देव का, निवास वहाँ था।।११।।
अतिशय जिनेन्द्र देव की, अवगाहना शक्ती।
जो भव्य हैं वे ही वहाँ, कर सकते हैं भक्ती।।
भव्यों के पुण्य से प्रभू का, श्रीविहार हो।
दुर्भिक्ष रोग शोक, उपद्रव न वहाँ हो।।१२।।
इन ढाईद्वीप में ही रहें, कर्मभूमियाँ।
जो एक सौ सत्तर कहीं हैं, धर्मभूमियाँ।।
ये कर्मभूमि शाश्वत, मानी विदेह की।
जो इक सौ साठ जानिए, वे धर्मभूमि ही।।१३।।
इनमें सदा ही काल, मोक्षमार्ग चल रहा।
तीर्थेश चक्रवर्ती आदि, जन्मते यहाँ।।
जो पाँच भरत पाँच-ऐरावत प्रसिद्ध हैं।
इनमें चतुर्थकाल में ही, तीर्थकर कहें।।१४।।
यदि एक साथ एक सौ-सत्तर ही भूमि में।
तीर्थेश जन्म लेवें तो, अधिकतम रहें।।
कहते हैं श्री अजितनाथ के समय हुए।
ये एक सौ सत्तर जिनेन्द्र-समवसरण में।।१५।।
इन तीर्थनाथ की सदा मैं वंदना करूँ।
निज आत्मा को तीर्थ बना, भवजलधि तरूँ।।
ये सार्वभौम नाथ की हैं, धर्मसभाएँ।
जो इनको नमें निज को, सर्वगुण को सजाएँ।।१६।।
-दोहा-
जो तीर्थंकर पूजते, समवसरण पूजंत।
सकल ‘ज्ञानमति’ संपदा, वे पा लेत तुरंत।।१७।।
ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि सप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थिततीर्थंकरदेव-
समवसरणेभ्यो जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-शंभु छंद-
श्री तेरहद्वीप विधान भव्य, जो भावभक्ति से करते हैं।
वे नित नव मंगल प्राप्त करें, सम्पूर्ण दु:ख को हरते हैं।।
फिर तेरहवाँ गुणस्थान पाय, अर्हंत अवस्था लभते हैं।
कैवल्य ‘ज्ञानमति’ किरणों से, त्रिभुवन आलोकित करते हैं।।
।। इत्याशीर्वाद: ।।