-स्थापना द्धशंभु छंदऋ-
अरिहन्त सि) को वन्दन कर, जिनराज चरण का धयान करूँ।
भौतिक आधयात्मिक सुख हेतू, नव देवों का गुणगान करूँ।।
कृत्रिम-अकृत्रिम चैत्यालय को, सादर विनत प्रणाम करूँ।
जिनशासन रक्षक देव तथा, सब वास्तुदेव आह्नान करूँ।।1।।
-दोहा-
मंदिर महल मकान का, वास्तु रहे सुखकार।
स्वस्थ सुखी हों भक्तजन, रहे सुखी संसार।।1।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादिनवदेवता कृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् आह्नाननं।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादिनवदेवता कृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादिनवदेवता कृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषट् सन्निधाीकरणं।
-अष्टक द्धशंभु छंदऋ-
गंगा के निर्मल जल से भावों को अति निर्मल करना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, जिनपद में धाारा करना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।1।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं जलं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
अति सुरभित शीतल चन्दन से, भावों को सुरभित करना है।
निज आत्मशुि) हेतू जिनपद में, चंदन चर्चित करना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।2।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं गंधां गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
अति शुभ्र धावल अक्षत लेकर, भावों को अक्षय करना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, अक्षतपुंजों को धारना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।3।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं अक्षतं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
सुरभित पुष्पों का थाल सजा, निज भावों को महकाना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, जिनपद में पुष्प चढ़ाना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।4।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं पुष्पं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
लड्डू पेड़ा पकवानों से, निज मन को पुष्ट बनाना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, जिनपद नैवेद्य चढ़ाना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।5।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं नैवेद्यं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
घी का जगमग शुभ दीप जला, मन में उजियारा करना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, जिनवर की आरति करना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।6।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं दीपं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
सुरभित मलयागिरि धाूप जला, निज हृदय सुगंधिात करना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, अब धाूप प्रज्वलित करना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।7।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं धाूपं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
अंगूर सेव बादाम आदि, फ़ल से इच्छित फ़ल वरना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, प्रभु को फ़ल अर्पित करना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।8।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं फ़लं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
ले अष्टद्रव्य ‘‘चन्दनामती’’, आतमगुण वृ)ी करना है।
निज आत्मशुि) गृहशुि) हेतु, अब अर्घ्य समर्पित करना है।।
लोक्यवर्ति सब चैत्यालय के, रक्षक वास्तुदेव आओ।
अपना स्थान ग्रहण करके, सबको भी सुखमय कर जाओ।।9।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसिद्धादि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयादिरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः!
इदं अर्घ्यं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
वास्तुदेव सब धार्मप्रिय, आओ हर्षित होय।
विघ्नशांति के हेतु मैं, पुष्प समर्पूं तोय।।
ॐ ह्रीं श्रीं भूः स्वाहा मण्डलस्योपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
द्धमण्डल पर पूर्व दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
शचि इन्द्राणी के साथ स्वर्ग से, ऐरावत पर आते हो।
वज्रायुधा लेकर सभी विघ्न, संकट को दूर भगाते हो।।
हे इन्द्र नाम दिक्पाल देव! यह अष्टद्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।1।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे इन्द्रदेव! अत्रगच्छ आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गन्धां, पुष्पं, दीपं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर आग्नेय कोण में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
अग्नी ज्वाला के रूप में निज, वैक्रियिक काय को धारते हो।
दुग्धाादिक सामग्री द्वारा, पूजित हो निज गृह बसते हो।।
हे अग्निकुमर दिक्पाल देव! यह अष्टद्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।2।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे अग्निदेव! अ आगच्छ आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, दीपं, चरुं, बलिं, फ़लं,स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर दक्षिण दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
भैंसा वाहन से सहित दण्ड, आयुधा को धाारण करते हो।
तिल आदिक सामग्री द्वारा, पूजित हो निजगृह बसते हो।।
यम नाम धाारि दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।3।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे यम देव! अ आगच्छ आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा
पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, दीपं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं
यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर नै_त्य दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
नै_त्य दिशा के वासी मुद्गर, शस्= को धाारण करते हो।
तैलादिक सामग्री से पूजित, हो निज गृह में बसते हो।।
नै_त्य नाम दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।4।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे नै_त्य कुमार देव! अ आगच्छ आगच्छ तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः
स्वाहा पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं,
स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर पश्चिम दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
पश्चिम दिश वासी मुद्गर आदिक, शस्= को धाारण करते हो।
क्षीरान्न आदि सामग्री से, पूजित हो निज गृह बसते हो।।
हे वरुण नाम दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।5।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे वरुण देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर वायव्य दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
वायव्य दिशा के वासी नाना-आयुधा धाारण करते हो।
अन्नादि पिण्ड सामग्री से, पूजित हो निजगृह बसते हो।।
हे पवन नाम दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।6।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे वायुकुमार देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं
अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर उत्तर दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
उत्तरदिश के स्वामी कुबेर, रत्नादि पुष्प को धारते हो।
क्षीरान्न पा= से पूजित हो, निज भवन में सुख से रहते हो।।
दिक्पाल देव हे धानकुबेर! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।7।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे कुबेर देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं
अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर ईशान दिशा में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
ईशान दिशा वासी त्रिशूल को, कर में धाारण करते हो।
घृतयुत दुग्धाान्नों से पूजित, निज गृह में सुख से रहते हो।।
ईशान नाम दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।8।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे ईशान देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं
अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर पूर्व और उत्तर दिशा के मधय में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
पाताललोक के वासी कर में, विविधा शस्= को धारते हो।
नाना पक्वान्नों से पूजित, निज गृह में सुख से रहते हो।।
धारणेन्द्र नाम दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।9।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे धारणेन्द्र देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं
अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर पश्चिम और वायव्य दिशा के मधय में पुष्पांजलि करके अर्घ्य चढ़ावेंऋ
तुम ऊधर्व दिशा के वासी कर में, विविधा शस् को धारते हो।
नाना पक्वान्नों से पूजित, निजगृह में सुख से रहते हो।।
तुम सोम नाम दिक्पाल देव! यह अष्ट द्रव्य स्वीकार करो।
मेरे परिजन को करो सुखी, कर्तव्य समझ निज कार्य करो।।10।।
आं क्रौं ॐ ह्रीं हे सोम देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं
अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य चढ़ावेंऋ
द्धमण्डल पर वास्तुदेवों को विविधा पकवानों से सहित अर्घ्य समर्पित करेंऋ
-शार्दूलविक्रीडित छंद-
ग्रामक्षेगृहादिभेदविविधाो-र्वाभागमधयाश्रय-
स्तत्तगपरिच्छिदा बहुविधा-स्वात्मप्रदेशो विभुः।
ब्रह्मा दिक्पतिपूर्वदेवनिकरै-रात्मोन्मुखैर्वेष्टितो,
लाजाज्यान्वितदुग्धाभक्तमधाुना, गृण्हातु रक्तप्रभः।।1।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे ब्रह्म जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं रक्तवर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुधा वाहन वधाू चिन्ह सपरिवार
हे ब्रह्मन्! अ आगच्छ-आगच्छ, स्वस्थाने तिष्ठ-तिष्ठ ठः ठः स्वाहा।
ॐ ह्रीं ब्रह्मणे स्वाहा, ब्रह्म परिजनाय स्वाहा, ब्रह्म अनुचराय नमः, वरुणाय नमः,
सोमाय स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा, ॐ स्वाहा,ॐ भूः स्वाहा, भुवः स्वाहा, भूर्भुवः स्वाहा,
स्वः स्वाहा, स्वधाा स्वाहा, हे ब्रह्मन्! इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, दीपं, धाूपं,
चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं यज्ञ भागं च यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं
समर्पयामि स्वाहा।
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
नोट-अर्घ्य के साथ चावल की धाानी, घी, शक्कर, खीर और तगर चढ़ाएँ
इस प्रकार आगे भी जिस-जिस देव के जो-जो भक्ष्य पदार्थ हैं, उन्हें उनके कोठों
पर अर्घ्य के साथ चढ़ाएँ। इस प्रकार 49 कोठों पर ही चढ़ाएँ।
-उपजाति छंद-
ऐरावतस्कंधामधिाश्रयन्तं, वज्रायुधां रुच्यशचीसमेतम्।
प्रत्यूहविधवंसकमर्हदिष्टौ, कुष्टप्रसूनैः प्रयजामि शक्रम्।।2।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे इन्द्र जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं रक्तवर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुधा वाहन वधाूू चिन्ह सपरिवार
हे इन्द्रदेव! अत्रगच्छ अत्रगच्छ तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। द्धपुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ ह्रीं इन्द्राय स्वाहा, इन्द्र परिजनाय स्वाहा, इन्द्र अनुचराय स्वाहा, वरुणाय
स्वाहा, सोमाय स्वाहा, प्रजापतये स्वाहा, ॐ स्वाहा, ॐभूः स्वाहा, भुवः स्वाहा, भूर्भुवः
स्वाहा, स्वः स्वाहा, स्वधाा स्वाहा, हे इन्द्र देव! इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गन्धां, पुष्पं, दीपं,
चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं
समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ कोष्ट, उपलेट, फ़ूल चढ़ाएँऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ ज्वालाकलापात्मकशक्तिहस्तो, बस्ताधिारूढः सुपरिष्कृतांगः।
स्वाहामहिष्या सममग्निदेवः, प्रीणातु दुग्धौस्तगरैस्तराज्यैः।।3।।
-दोहा-
वास्तुदेव अग्नी कुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐआं क्रौं ॐ ह्रीं रक्तवर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुधा वाहन वधाू चिन्ह सपरिवार
हे अग्निदेव! अ आगच्छ आगच्छ स्वस्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। द्धपुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
हे अग्नि देव! इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, दीपं, चरुं, बलिं, फ़लं,
स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
द्धअर्घ्य के साथ दूधा, घी, तगर चढ़ाएँऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐछायासमेतं महिषाधिारूढं, दंडायुधां दंडितवैरिवर्गम्।
वैवस्वतं विघ्नहरं तिलान्नैः, सिंबान्ययुक्तैः परितर्पयामि।।4।।
-दोहा-
वास्तुदेव यमदेव जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐआं क्रौं ॐ ह्रीं रक्तवर्णे सम्पूर्ण लक्षण स्वायुधा वाहन वधाू चिन्ह सपरिवार हे यम
देव! अ आगच्छ आगच्छ स्वस्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। द्धपुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
हे यम देव! इदमर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, दीपं, चरुं, बलिं, फ़लं,
स्वस्तिकं यज्ञभागं च यजामहे प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा।
द्धअर्घ्य के साथ तिल का चूर्ण, तुअर का बाकरा चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-नै_त्यदेशो नि_तिः सुरुक्ष-मृक्षांगवाहद्विषदास्यरक्षः।
आरूढवानु०तमु०रास्, पिण्याकमायच्छतु तैलमिश्रम्।।5।।
-दोहा-
वास्तुदेव नै_त्य जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं नै_त्य कुमार देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत्। इदं
अर्घ्यं पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ तिल का तेल,
तिल पापड़ी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ करघृतफ़णिपाशो मंडनोद्योतिताशः, करिमकरकमूर्तिर्लोकसंक्रांतकीर्तिः।
सुरुचिरवरुणानीप्राणनाथः सयूथो, वरुण इह समेतो लातु दुग्धाान्नधाान्यम्।।6।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे वरुण जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे वरुण देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ धााणी, दूधा
पाक, द्धरबड़ीऋ खीर चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-उर्वीरुहोर्वायुधाशस्तहस्त-मर्वाधिारूढं परिमंडितांगम्।
तद्वायुवेगीमुखदत्तदृष्टिं, पिष्टैर्निशायाः पवनं यजामि।।7।।
-दोहा-
वास्तुदेव वायूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं वायुकुमार देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
पिसी हल्दी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
सद्रत्नरुक्पुष्पितपुष्पकाभ्र-यानाधिारूढस्फ़ुरितोग्रशक्तेः।
सजानियूथ्यव्रजयक्षराज, प्रत्तं मया स्वीकुरु पायसान्नम्।।8।।
-दोहा-
वास्तूदेव कुबेर जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे कुबेर देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ दूधा में मिलाया
हुआ भात चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ उमासमेतो वृषभाधिारूढो, जटाकिरीटप्रणिभूषितांगः।
त्रिशूलहस्तः प्रमथाधिानाथो, गृण्हातु दुग्धाान्नमिदं ससर्पिः।।9।।
-दोहा-
वास्तुदेव ईशान जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐआं क्रौं ॐ ह्रीं हे ईशान देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ घी,
क्षीरान्न चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ वेधाःपुरोदेशमवंतमार्यं, धवस्तात्मदेशप्रतिरोधिावीर्यम्।
सत्पूरिकामोदकपूरिकादि-र्भक्ष्यैः प्रहृष्टं विदधो फ़लैश्च।।10।।
-दोहा-
आर्यदेव वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे आर्य देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ मैदा
का घूंगरा और फ़ल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-ब्रह्मापसव्यं पदमावसानो, भाभासमानो मुकुटादिभाभिः।
स्थामिष्यसंवीतभुजिष्यवर्गो, दीव्येत माषान्नतिलैर्विवस्वान्।।11।।
-दोहा-
वास्तुदेव विवस्वान जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे विवस्वानदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ उड़द की घँूगरी
द्धबाकराऋ, तिल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-श=ुशक्तिविनिवारणक्षमो, मिरक्षणविधाानदक्षिणः।
प्रत्यगीश इह मिनिर्जरः, स्वीकारोतु दधिादूर्विकामपि।।12।।
-दोहा-
मिदेव वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐआं क्रौं ॐ ह्रीं हे मिदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ दही बड़ा,
मैदा का भुजिया चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-प्रजापतेः सव्यसुधााशिभागे, महीमवंतं महिमानमाप्तम्।
महीधारं मंडनमंडितांगं, महामहस्कं महयामि दुग्धौः।।13।।
-दोहा-
वास्तुदेव भूधारश्री, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे भूधारदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य साथ दूधा
चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-सविंद्रदेवाय सविक्रमाय, तनूनपात्पक्षमुपाश्रिताय।
वनामरानीकपुरःसराय, ददामि पुंजीकृतधाान्यलाजम्।।14।।
-दोहा-
हे सविन्द्र वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे सविन्द्र देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ चावल
की धााणी और धानिये की धााणी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-वैश्वानरादित्यमुपाश्रिताय, साविंद्रदेवाय सविक्रमाय।।
कर्पूरकाश्मीरलवंगकुष्टै-रुपस्कृतं पुण्यजलं ददामि।।15।।
-दोहा-
वास्तुदेव साविन्द्र जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे साविन्द्र देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ कपूर,
कश्मीर केशर,लवंग आदि सुगंधिात द्रव्यों से मिश्रित जल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ इंद्रं वनामर्त्यकदंबकेंद्रं, मंद्रारवं पुण्यजनस्य पक्षम्।
प्रत्यूहजालं विनिपातयंतं, मु०स्य चूर्णैः प्रयजे सपूपैः।।16।।
-दोहा-
इन्द्रदेव वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे इन्द्र देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
मूँंग का चूर्ण और फ़ूल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-इंद्रराजगततंद्रनिर्जितारातिवर्ग जिनवर्गपोषक।
कासराधिापतिपक्षमाश्रिताऽऽदेहि पूपयुतमु०चूर्णकम्।।17।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे इन्द्र जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे इन्द्र देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
चावल के बड़े और मूँग का चूर्ण चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-समीराग्रभूमौ समुसमानं, निजं देशभागं सदा पालयन्तम्।
यजे रुद्रमक्षुद्रवन्यामरेंद्र, गुडापूपवर्गैरुपस्कारयुक्तैः।।18।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे रुद्र जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे रुद्रदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़,
मैदा का घँूगरा चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-रुद्रजयाख्यं परिमितरौद्र-क्षुद्रनिकायं वनसुरमुख्यम्।
मारुतनिघ्नं गुडपरिपुष्टैः, पिष्टकवर्गैरिह महयामि।।19।।
-दोहा-
रुद्रराज वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे रुद्रराज! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़,
चावल का आटा, अम्बोली द्धइमलीऋ चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-आमोदमाप्नोति गुणाधिाकेषु, विद्वेषमुद्वृत्तजनेषु यश्च।
आपः सदेवो गुडपिष्टयुक्तं, सकैरवं शंखमुपैतु शैव।।20।।
-दोहा-
आप्देव वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे आप्देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़,
चावल का आटा, सफ़ेद कमल, शंख, अम्बोली चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-धार्मानुरक्ताननुमोदमानं, पापानुषक्तानपसारयन्तम्।
महेश्वरायत्तमिहापवत्सं, संपूजयेयं बलिना तथैव।।21।।
-दोहा-
आपवत्स वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे आपवत्स देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़,
चावल का आटा, सफ़ेद कमल, शंख, अम्बोली चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ पर्जन्य पर्जन्यनिनादतुल्य-नादेन दूरीकृतवैरिलोक।
स्वतर्जनीचालनतर्जितात्म-वाचाटभृत्याज्यमुपैहि रौद्र।।22।।
-दोहा-
वास्तुदेव पर्जन्य जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे पर्जन्य देव!अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ घी
चढ़ाएँ। ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-जयं तनोति प्रतिरोधिारोधाा-न्नयं तनोति स्वजनानुवृत्तेः।
योऽसौ जयंतो हरिदक्षिणस्थो, गृण्हातु पूतं नवनीतमेतत्।।23।।
-दोहा-
हे जयन्त वास्तूकुमर, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे जयन्त देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
ताजा मक्खन चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-संक्रंदनापष्टुपदेशितारं, तापप्रकाशप्रतिभासमानम्।
तमोपहं भास्करदेवमेतं, कुर्वे प्रहृष्टं मधाुकंददानात्।।24।।
-दोहा-
भास्करदेव प्रसि) तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे भास्करदेव!अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़
और सफ़ेद फ़ूल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-सत्यामरं नित्यमसत्यदूरं, गोत्र द्विषद्वामपदे वसंतम्।
स)र्भनिधयानकृतप्रमोदं, संपूजये पूर्वसपर्ययैव।।25।।
-दोहा-
सत्यकाय हे देव तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे सत्यकाय देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ ताजा
मक्खन चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-भृशं विवक्षुर्गुणशास्संघं, भृशं दिदृक्षुर्मुनिमुख्यसंगम्।
भृशामरः संश्रुतवृत्तश-रातु प्रमोदान्नवनीतपिंडम्।।26।।
-दोहा-
हे भृषदेव प्रसि) तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे भृषदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
ताजा मक्खन का गोला चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ अथांतरिक्षो विहरन्विनोदं, वनेषु पश्यन्सुजनोपसर्गम्।
नुदन्बृहनुसखोंतरिक्षश्चूर्णं निशामाषजमाददातु।।27।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे अन्तरिक्ष, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे अन्तरिक्ष देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
हल्दी और उड़द का चूर्ण चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-पुष्णाति यः सज्जनतोपकारं, मुष्णातु चासज्जनदुर्विलासम्।
कृपीटयोनेः सुहृदेष पूषा, शिंबान्नमेतत्सपर्यः द्धत्सपर्ययाऋ प्रतीच्छेत्।।28।।
-दोहा-
पुच्छ देव तुम आयके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे पुच्छ देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
तुअर के नैवेद्य व दूधा चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-वितथाख्यं वितथीकृतारि-शक्तिप्रदनं साधाुजनोपकारदक्षम्।
प्रथितं दंडधाराख्यं वरकटावन्नसमर्चितं करोमि।।29।।
-दोहा-
वितथदेव तुम आयके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे वितथदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ सौंठ,
काली मिर्च व पीपल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-रक्षःपरीवारकसत्वरक्षा-दक्षे सुमार्गे विहितप्रमोदम्।
कलापसव्याश्रयराक्षसेंद्रं, मधाुप्रदानात्सुखितो भव त्वम्।।30।।
-दोहा-
राक्षसदेव प्रसि) तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे राक्षसदेव! अ आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
गुड़ चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ – सगंधागंधार्वसुपर्वहस्त – प्रशस्तवीणानुगगानगीतं।
गंधार्वदेवं घनसारपूर्व – गंधौः समर्चे यममाश्रयन्तम्।।31।।
-दोहा-
वास्तुदेव गंधार्व जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे गन्धार्व देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ कपूर
और सुगंधिात जल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-यो विक्रमाक्रांतजनप्रसंग-स्तपोधानाधाीशपदाब्जभृंगः।
स भृंगराजः श्रितधार्मराजः, पविदुग्धाान्नमिदं ससर्पिः।।32।।
-दोहा-
भृंगराज जी आयके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे भृंगराज देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
रबड़ी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-मृषीकृताधार्मपरप्रभावं, मृषोक्तिदूरं मृषनामधोयम्।
रक्षोधिापायात्तमुदारशक्तिं, माषान्नसंतर्पितमातनोतु।।33।।
-दोहा-
हे मृषदेव प्रसि) तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे मृष देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ उड़द
की घूंगरी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-तपोधानाजन्यनिवारणार्थं, वनाश्रमद्वारि सदा निषण्णम्।
दौवारिकं सेवितयातुधाानं, संतर्पयेऽहं वरशालिपिष्टैः।।34।।
-दोहा-
हे दौवारिक देव तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे दौवारिकदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ चावल
का आटा चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-सुग्रीव यातानुतवीणया वै-गायन्नितांतं गुणिनां गुणौघम्।
सुग्रीवदेवः श्रितपाशहस्तः, प्रमोदवान्मोदकदानतोऽस्तु।।35।।
-दोहा-
हे सुग्रीव प्रसि) तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे सुग्रीवदेव! अ आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ लड्डू
चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-विभांति पुंसां गुणसंकथायां, पुष्पावदाताः खलु यस्य दंताः।
स पुष्पदंतो वरुणान्तिकस्थः, पुष्पाणि गृण्हातु जलान्वितानि।।36।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे पुष्पदन्त!, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे पुष्पदंत देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ फ़ूल
और जल चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-असुरः कल्पसुराभविक्रियो, गिरिनद्यादिविहारलोलुपः।
वरुणोपांतमहीमुपाश्रितो, भजतां लोहितमन्नमुत्तमम्।।37।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे असुर जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे असुरदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
लाल रंग का भात चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-संशु)मार्गप्रतिरोधिावाहिनी-शोषं सदा यः कुरुते प्रतापतः।
शोषः सपक्षीकृतयादसांपति-र्लातु प्रघौतं तिलमक्षतांश्च।।38।।
-दोहा-
शोष देव तुम आयके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे शोष देव! अ आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ तिल
और अक्षत चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-रोगोपघातांगतपोधानानां, दृष्ट्वा स्थितिं तामनुकंप्यमानाम्।
रोगं मरुत्पक्षकृतानुरागं, सुखाकरोम्युत्तमकारिकाभिः।।39।।
-दोहा-
रोगदेव तुम आयके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे रोग देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़
की मीठी पूड़ी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-नागं समाराधिातयोगिनागं, नागारिनादेन पलायितारम्।
वातापसव्याश्रयमाश्रयन्तं, मधाुप्रदिग्धौर्महयामि लाजैः।।40।।
-दोहा-
नागदेव सन्तुष्ट हो, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे नाग देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
शक्कर पड़ा हुआ दूधा और पका भात चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-मुख्यं यजे व्यंतरदेवमुख्यं, यक्षेण सत्र कृतचारुमुख्यम्।
विख्यातकांतारविहारसक्तं, संतु प्रवेकैर्वरवस्तुयुक्तैः।।41।।
-दोहा-
मुख्यदेव जी आएके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे मुख्य देव! अ आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य
के साथ श्रीखंड चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-भल्लाटदेवं प्रतिमल्लघट्ट-संघट्टनाविष्कृतसर्वशक्तिम्।
बीरं कुबेरं प्रबलं प्रतीतं, गुडान्नदानेन सुखाकरोमि।।42।।
-दोहा-
वास्तुदेव भल्लाट जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे भल्लाट देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़
और भात चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-मृगगणैस्तपसा वशीकृतै, मृगयते मुनिपन्नमनाय यः।
तमहम मृगं धानदाश्रयं, परिचरामि गुडान्वितपूपकैः।।43।।
-दोहा-
वास्तुदेव मृगदेव जी, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे मृगदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ गुड़
के मालपुआ चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-धानदवामधारातलभागभागदितिनंदनमुख्यसुरादृतः।
अदितिरवनामरपूजितो मुदितवान्भवतादिह मोदकैः।।44।।
-दोहा-
अदितिदेव तुम आयके, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे अदिति देव! अ आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ
मोदक-लड्डू चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-मोचाफ़ला यद्युदितिर्यदास्या-दधोति वाचा विनिवारणार्थम्।
मुमुक्षुसाक्षादुदितिः सुभुंजां, भक्षं तिरोपेतमुमापतीश।।45।।
-दोहा-
उदिति देव सन्तुष्ट हो, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे उदितिदेव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ तिल
पापड़ी चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-विचारि सत्कृत्यविनोदशक्ते, विचारियुक्ते सुजनानुरक्ते।
कृशानुबाह्यावनिभागभुक्त्यै, गृहाण भक्ष्यं लवणोपयुक्तम्।।46।।
-दोहा-
हे विचार्य जी देव तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे विचार्य देव! अ आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ नमक
डला हुआ भात चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-कायेन वाचा मनसा पवि-मावर्जयंती तपसामधाीशं।
रक्षोबहिःस्था तिलपिष्टभुक्त्या, संतुष्यतां संप्रति पूतनाख्या।।47।।
-दोहा-
वास्तुदेव हे पूतना!, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे पूतना देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ तिल
और भात चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-पापान्महापूरुषकारिणो या, या राक्षसीरूपधारा ह्यतर्जत्।
सा मारुताशावनिबाह्यसंश्रिता, कुल्माषमायच्छतु पापराक्षसी।।48।।
-दोहा-
पापराक्षसी देव तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे पापराक्षसी देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ उबाले
हुए मँग चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
ॐ-यत्र यत्र मुनयो वसंति ते, तत्र तत्र तदजन्यवारणे।
या चरत्यनिशमीशबाह्यतः, सा ददातु चरकी घृतं मधाु।।49।।
-दोहा-
चरकी देव प्रसि) तुम, करो वास्तु मम शु)।
सुखी रहें यजमान सब, होवे शांति समृि)।।
ॐ आं क्रौं ॐ ह्रीं हे चरकी देव! अत्र आगच्छ आगच्छ पुष्पांजलिं क्षिपेत् इदं अर्घ्यं
पाद्यं, जलं, गंधां, अक्षतं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फ़लं, स्वस्तिकं, यज्ञभागं च यजामहे
प्रतिगृह्यताम् प्रतिगृह्यताम् इति अर्घ्यं समर्पयामि स्वाहा। द्धअर्घ्य के साथ घी
और गुड़ चढ़ाएँ।ऋ
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
-पूर्णार्घ्य द्धशार्दूलविक्रीडित छंदऋ-
ॐ-एते वास्तुसुराः समस्तधारणी-संवासिनोऽबाधिाता-
प्रत्यूहस्य विधाायिनस्तपचिताः प्रत्यूहसंहारकाः।।
अद्य प्रापितपूजनेन मुदिताः, सर्वप्रभावान्विताः।
यष्टुर्याजकभूपमंत्रिशुभवर्णानां च संतु श्रियै।।50।।
शेर छंद- सब वास्तुदेव आइए पवि कीजिए।
विघ्नों का नाश करके सुख समृि) दीजिए।।
यजमान व याजक को संतुष्ट कीजिए।
जिनभक्ति करके निज हृदय को शु) कीजिए।।50।।
ॐ ॐ ह्रीं समस्त वास्तुदेवाः! इदं पूर्णार्घ्यं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
-शेर छंद-
जय जय जिनेन्द्रदेव की मैं वंदना करूँ।
जय जय जिनेन्द्रदेव की मैं अर्चना करूँ।।
जय जय जिनेन्द्रदेव से अभ्यर्थना करूँ।
सम्यक्त्व प्राप्ति हेतु प्रभु से प्रार्थना करूँ।।1।।
जिस गृह में प्रभु विराजते मंदिर उसे कहते।
उन मंदिरों में उनके वास्तुदेव भी रहते।।
रक्षा सदैव मंदिरों-मकान की करते।
इस हेतु ही हम लोग आमंत्रित उन्हें करते।।2।।
जिन यज्ञकाल में वे निज वैभव सहित आते।
आह्वान करने वाले के संग प्रेम निभाते।।
जिनभाक्तिकों के लिए सुख व शांति प्रदाता।
सब वास्तुदेव गृहनिवासियों को दें साता।।3।।
मंदिर-मकान आदि का हर कोण शु) हो।
वहाँ जाने-रहने वालों के परिणाम शु) हों।।
तब ही तो पूजकों को इष्ट फ़ल की प्राप्ति हो।
सब मानसिक व कायिक दुख की समाप्ति हो।।4।।
पूजा का यज्ञभाग सब स्वीकार कीजिए।
प्रभु भक्ति को निज मन में भी साकार कीजिए।।
इस वास्तु में निज योग्य स्वस्थान लीजिए।
परिवार अरु समाज को सुख शांति दीजिए।।5।।
चौरादि का प्रवेश नहीं हो यहाँ कभी।
भूतादि का प्रवेश भी होवे नहीं कभी।।
सर्पादि का भय भी न सतावेे यहाँ कभी।
कीटादि भी प्रवेश न पावें यहाँ कभी।।6।।
परकृत सभी बाधााएँ दूर से ही नष्ट हों।
निज के भी रोग-शोक नशें नहीं कष्ट हो।।
मन के अभीष्ट सि) हों तन से भी स्वस्थ हों।
इस वास्तु यज्ञ से समस्त भूमि शु) हो।।7।।
प्रभु वीतराग से है मेरी याचना यही।
मन में तुम्हारी भक्ति रहे भावना यही।।
दुख संकटों में भी नहीं विचलित हो मन कभी।
जिनधार्म-धौर्य-गुरु के सिवा जाऊँ ना कहीं।।8।।
सब वास्तुदेवों से मेरा अनुरोधा यही है।
सहधार्मियों का साथ हो अनुकूल यही है।।
तुम और हम मिलकर प्रभू की भक्ति करेंगे।
फि़र ‘‘चंदनामती’’ अभीष्ट सि) करेंगे।।9।।
ॐ ह्रीं अरिहन्तसि)दि नवदेवताकृत्रिमाकृत्रिमचैत्यालयरक्षकसमस्तवास्तुदेवाः
इदं जयमाला अर्घ्यं गृण्हीधवं गृण्हीधवं स्वाहा।
द्धशांतिधाारा, पुष्पांजलिं क्षिपेत्ऋ
इत्थं प्रार्थनया प्रगृह्य विदितं सामान्यमन्यं बलिम्।
सर्वे वास्तुसुराः प्रसीदत भवव्यांतरायास्तु ये।।
गेहे धााम्नि विधिात्सिते च विविधाोत्साहेऽथवा विष्टपे।
सन्त्येतान्सकलान्निवारयत तत्सर्वं सदा रक्षत।।51।।
एवं जिनाधाीश्वरयज्ञकाले, संतर्पिताः स्वस्वविभूतियुक्ताः।
वन्यामराः किन्नरदेवमुख्या, कुर्वन्तु शांतिं जिनभाक्तिकानाम्।।52।।
ॐ-संपूजिता इत्यसुरेंद्रमुख्याः, महामहिम्नि प्रतिभासमानाः।
दशप्रकारोदितभावनेंद्राः, कुर्वंतु शांतिं जिनभाक्तिकानाम्।।53।।
ॐ-मुख्याविभौ चंद्रदिवाकरौ च, शेषग्रहा अश्वयुगादिताराः।
प्रकीर्णका ज्योतिरमर्त्यवर्गाः, कुर्वन्तु शांतिं जिनभाक्तिकानाम्।।54।।
जिनेंद्रचंद्रस्य महामहेऽस्मिन्, संपूजिताः कल्पनिकायवासाः।
सौधार्ममुख्यासि्दशाधिानाथाः, कुर्वन्तु शांतिं जिनभाक्तिकानाम्।।55।।
ॐ-पृथ्वीविकारात्सलिलप्रवेशा-दग्नेश्च दाहात्पवनप्रकोपात्।
चौरप्रयोगादपि वास्तुदेवश्-चैत्यालयं रक्षतु सर्वकालम्।।56।।
तिर्यक्प्रचारादशनिप्रघाताद्-बीजप्ररोहाद् द्रुमखंडपातात्।
कीटप्रवेशादपि वास्तुदेवश्-चैत्यालयं रक्षतु सर्वकालम्।।57।।
विधाान रचना काल
-दोहा-
वीर संवत् पच्चीस सौ, छत्तिस संवत् जान।
माघ शुक्ल दशमी तिथि, रच गया वास्तु विधाान।।1।।
ज्ञानमती गणिनीप्रमुख, मात प्रसि) महान।
उनकी शिष्या चन्दना-मती आर्यिका नाम।।2।।
जम्बूद्वीप की प्रतिकृती, निर्मित जहाँ प्रसि)।
वहीं रत्नय निलय में, लिखी गई कृति इष्ट।।3।।
गुरु करकमलों में किया, अर्पण वास्तु विधाान।
सबको दे सुख-शांति यह, जग का हो कल्याण।।4।।
मंदिर-महल-मकान का, जब तक हो निर्माण।
तब तक इस कृति का करें, सदुपयोग इन्सान।।5।।