-स्थापना (अडिल्ल छंद)-
सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित की साधना।
कहलाती है रत्नत्रय आराधना।।
इस रत्नत्रय को ही शिवपथ जानना।
करूँ उसी रत्नत्रय की स्थापना।।१।।
दोहा- आह्वानन स्थापना, सन्निधिकरण महान।
रत्नत्रय पूजन करूँ, जिनमंदिर में आन।।२।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्म! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्म! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनं।
-अष्टक-
तर्ज-एरी छोरी बांगड़ वाली……….
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
कंचन झारी में जल ले, प्रभुपद त्रयधारा करना है।
जन्म जरा मृत्यू का नाशक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।१।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
काश्मीरी केशर घिस करके, जिनपद चर्चन करना है।
पंचपरावृत भवदुखनाशक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।२।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
धवल अखण्डित तंदुल लेकर, प्रभु ढिग पुंज चढ़ाना है।
अक्षयपद शिवसौख्य प्रदायक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।३।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
वकुल केवड़ा आदि पुष्प ले, जिनवर चरण चढ़ाना है।
कामबाण विध्वंस में हेतू, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।४।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
मिष्ट सरस पकवान्न थाल ले, जिनवर चरण चढ़ाना है।
क्षुधारोग विध्वंसनकारक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।५।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
घृत दीपक की थाली लेकर, प्रभु की आरति करना है।
मोहमहातम का विध्वंसक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।६।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
शुद्ध धूप ले अग्निघटों में, प्रभु के पास जलाना है।
सभी अष्टकर्मों का नाशक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।७।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
सेव आम अंगूर आदि फल, प्रभु के निकट चढ़ाना है।
दुखनाशक मुक्तीफलदायक, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।८।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
सम्यक् रत्नत्रय आराधन, शाश्वत सौख्य प्रदाता है।।टेक.।।
अर्घ्य थाल ‘‘चन्दनामती’’, जिनवर के चरण चढ़ाना है।
पद अनर्घ्य की प्राप्ती हेतू, रत्नत्रय कहलाता है।।सम्यक्…।।९।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयधर्माय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रासुक निर्मल नीर ले, कर लूँ शांतीधार।
आत्मशक्ति जाग्रत करूँ, लूँ रत्नत्रय धार।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
पुष्पांजलि के हेतु मैं, लिया पुष्प भर थाल।
आतम गुण विकसित करूँ, लूँ रत्नत्रय धार।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र- (१) ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यो नम:।
अथवा
(२) ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयाय नम:।
हाथों में लेकर पूजन का थाल, छाई हैं मन में खुशियाँ अपार,
हम सब आए हैं पूजन के लिए-२।।टेक.।।
आठ अंगों से युत, सम्यग्दर्शन शुद्ध होता।
जिसको पाकर मानव, आतम के करम मल धोता।।
मुक्तिमहल की सीढ़ी है यह,
हम सब आए हैं पूजन के लिए।।१।।
अष्टविध ज्ञान सम्यक्, जिसे पाकर के ज्ञानी है बनना।
ज्ञान के दर्पण में, दोष को देखकर उनसे डरना।।
ज्ञान मिले-विज्ञान मिले,
हम सब आए हैं पूजन के लिए।।२।।
है त्रयोदश विध का, चारित्र जिसे पालते मुनि।
पाप कुछ त्याग करके, बनें श्रावक भि तो अणुव्रती हैं।।
पाप तजें-हम पुण्य करें,
हम सब आए हैं पूजन के लिए।।३।।
रत्नत्रय का यह उपवन, गुण पुष्पों से होता है सुरभित।
रत्नत्रय का यह अर्चन, भव्यों को ही करता है सुरभित।।
वन्दन है, अभिनंदन है,
हम सब आए हैं पूजन के लिए।।४।।
रत्नत्रय पूजन की, जयमाला का पूर्णार्घ्य लाए।
‘‘चन्दनामति’’ प्रभु के, चरणों में चढ़ाने आए।।
ज्ञान मिले, चारित्र मिले,
हम सब आए हैं पूजन के लिए।।५।।
ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रयाय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
शेर छंद- जो भव्य रत्नत्रय की पूजा सदा करें।
त्रयरत्नप्राप्ति का प्रयत्न ही सदा करें।।
वे रत्नत्रय धारण के फल को प्राप्त करेंगे।
तब ‘‘चन्दनामती’’ वे आत्मतत्त्व लहेंगे।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि:।।