-अथ स्थापना-
(तर्ज-तुमसे लागी लगन……)
आप पूजा करें, शीघ्र सिद्धी वरें, शक्ति दीजे।
नाथ! मुझपे कृपा दृष्टि कीजे।।टेक.।।
वीर सन्मति महावीर भगवन् !
आवो आवो यहाँ नाथ! श्रीमन्!
पूजा भक्ति करें, शुद्ध समकित धरें, शक्ति दीजे।
नाथ! मुझपे कृपा दृष्टि कीजे।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्रदायक! श्रीमहावीरतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्रदायक! श्रीमहावीरतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्रदायक! श्रीमहावीरतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टकं-
(तर्ज-चंदन सा बदन…….)
-शंभु छंद-
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
गंगानदि का शुचि जल लेकर, तुम चरण चढ़ाने आये हैं।
भव भव का कलिमल धोने को,श्रद्धा से अति हरषाये हैं।।
हे वीरप्रभो! महावीर प्रभो! त्रयधारा दें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
हरिचंदन कुंकुम गंध लिये, जिनचरण चढ़ाने आये हैं।
मोहारिताप संतप्त हृदय, प्रभु शीतल करने आये हैं।।
हे वीरप्रभो! चंदन लेकर, चर्चन करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन………।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
क्षीराम्बुधि फेन सदृश उज्ज्वल, अक्षत धोकर ले आये हैं।
क्षय विरहित अक्षय सुख हेतू, प्रभु पुंज चढ़ाने आये हैं।
हे वीरप्रभो! हम पुंज चढ़ा, अर्चन करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
बेला चंपक अरविंद कुमुद, सुरभित पुष्पों को लाये हैं।
मदनारिजयी तव चरणों में, हम अर्पण करने आये हैं।।
हे वीरप्रभो! पुष्पों को ले, पूजा करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
पूरणपोली खाजा गूझा, मोदक आदिक बहु लाये हैं।
निज आतम अनुभव अमृत हित, नैवेद्य चढ़ाने आये हैं।
हे वीरप्रभो! चरु अर्पण कर, हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
मणिमय दीपक में ज्योति जले, सब अंधकार क्षण में नाशे।
दीपक से पूजा करते ही, सज्ज्ञानज्योति निज में भासे।।
हे वीरप्रभो! तुम आरति कर, हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
दशगंध विमिश्रित धूप सुरभि, धूपायन में खेते क्षण ही।
कटु कर्म दहन हो जाते हैं, मिलता समरस सुख तत्क्षण ही।।
हे वीर प्रभो! हम धूप जला, अर्चन करते तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
एला केला अंगूरों के, गुच्छे अतिसरस मधुर लाये।
परमानंदामृत चखने हित, फल से पूजन कर हर्षाये।।
हे वीर प्रभो! महावीर प्रभो! हम नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
त्रिशलानंदन, शत शत वंदन, शत शत वंदन तव चरणों में।
निर्वाण परमस्थान हेतु, हम शीश झुकाते चरणों में।।
जल चंदन अक्षत पुष्प चरू, वर दीप धूप फल लाये हैं।
निजगुण अनंत की प्राप्ति हेतु, प्रभु अर्घ्य चढ़ाने आये हैं।।
हे वीर प्रभो! हम अर्घ्य चढ़ा, कर नमन करें तव चरणों में।।
त्रिशलानंदन……….।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-उपेंद्रवङ्काा छंद-
त्रैलोक्य शांती कर शांतिधारा, श्री सन्मती के पदकंज धारा।
निजस्वांत शांतीहित शांतिधारा, करते मिले है भवदधि किनारा।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
सुरकल्पतरु के वर पुष्प लाऊँ, पुष्पांजलि कर निज सौख्य पाऊँ।
संपूर्ण व्याधी भय को भगाऊँ, शोकादि हर के सब सिद्धि पाऊँ।।११।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
-गीता छंद-
सिद्धार्थ नृप कुण्डलपुरी में, राज्य संचालन करें।
त्रिशला महारानी प्रिया सह, पुण्य संपादन करें।।
आषाढ़ शुक्ला छठ तिथी, प्रभु गर्भ मंगल सुर करें।
हम पूजते वसु अर्घ्य ले, हर विघ्न्ा सब मंगल भरें।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं आषाढ़शुक्लाषष्ठ्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सितचैत्र तेरस के प्रभू, अवतीर्ण भूतल पर हुए।
घंटादि बाजे बज उठे, सुरपति मुकुट भी झुक गये।।
सुरशैल पर प्रभु जन्म उत्सव, हेतु सुरगण चल पड़े।
हम पूजते वसु अर्घ्य ले, नजकर्म धूली झड़ पड़े।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं चैत्रशुक्लात्रयोदश्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मगसिर वदी दशमी तिथी, भवभोग से निःस्पृह हुए।
लौकांतिकादी आनकर, संस्तुति करें प्रमुदित हुए।।
सुरपति प्रभू की निष्क्रमण, विधि में महा उत्सव करें।
हम पूजते वसु अर्घ्य ले, संसार सागर से तरें।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं मार्गशीर्षकृष्णदशम्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
प्रभु ने प्रथम आहार राजा, कूल के घर में लिया।
वैशाख सुदि दशमी तिथी, केवलरमा परिणय किया।।
श्रावण वदी एकम तिथी, गौतम मुनी गणधर बनें।
तव दिव्यध्वनि प्रभु की खिरी, हम पूजते हर्षित तुम्हें।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं वैशाखशुक्लादशम्यां श्रीमहावीरतीर्थंकरकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कार्तिक अमावस पुण्य तिथि, प्रत्यूष बेला में प्रभो।
पावापुरी उद्यान सरवर, बीच में तिष्ठे विभो।।
निर्वाण लक्ष्मी वरणकर, लोकाग्र में जाके बसे।
हम पूजते वसु अर्घ्य ले, तुम पास में आके बसें।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं कार्तिककृष्णाअमावस्यायां श्रीमहावीरतीर्थंकरनिर्वाण-कल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
ध्यानामृत पीकर भये, मृत्युंजयि प्रभु आप।
पुष्पांजलि से पूजहूँ, हरो सकल संताप।।१।।
अथ मंडलस्योपरि सप्तमकोष्ठके पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
ॐ ह्रीं महादमगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१।।
ॐ ह्रीं महादान्तगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२।।
ॐ ह्रीं महाशांतगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३।।
ॐ ह्रीं महाकान्तगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४।।
ॐ ह्रीं महाबलिगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५।।
ॐ ह्रीं महादेवगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६।।
ॐ ह्रीं महापूतगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७।।
ॐ ह्रीं महायोगिगुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८।।
ॐ ह्रीं महाधनिगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९।।
ॐ ह्रीं महाकामिगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०।।
ॐ ह्रीं महाशूरगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।११।।
ॐ ह्रीं महाभटगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१२।।
ॐ ह्रीं महायशोगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१३।।
ॐ ह्रीं महानादगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१४।।
ॐ ह्रीं महास्तुत्यगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१५।।
ॐ ह्रीं महामहपतिगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१६।।
ॐ ह्रीं सर्वोत्तममहागुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१७।।
ॐ ह्रीं महाधीरगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१८।।
ॐ ह्रीं महावीरगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१९।।
ॐ ह्रीं महाबंधुगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२०।।
ॐ ह्रीं महाश्रमगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२१।।
ॐ ह्रीं महाधारगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२२।।
ॐ ह्रीं महाकारगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२३।।
ॐ ह्रीं महाशर्मगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२४।।
ॐ ह्रीं महाश्रयगुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२५।।
ॐ ह्रीं महायोगिगुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२६।।
ॐ ह्रीं महाभोगिगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२७।।
ॐ ह्रीं महाब्रह्मगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२८।।
ॐ ह्रीं महीधरगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।२९।।
ॐ ह्रीं महाधुर्यगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३०।।
ॐ ह्रीं महावीर्यगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३१।।
ॐ ह्रीं महादर्शिगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३२।।
ॐ ह्रीं महार्थविद्गुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३३।।
ॐ ह्रीं महामहाभर्तृगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३४।।
ॐ ह्रीं महाकर्तृगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३५।।
ॐ ह्रीं महाशीलगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३६।।
ॐ ह्रीं महागुणिनामालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३७।।
ॐ ह्रीं महाधर्मगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३८।।
ॐ ह्रीं महामौनिगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।३९।।
ॐ ह्रीं महाभरगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४०।।
ॐ ह्रीं महाग्रिमगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४१।।
ॐ ह्रीं महास्रष्ट्रगुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४२।।
ॐ ह्रीं महातीर्थगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४३।।
ॐ ह्रीं महाख्यातगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४४।।
ॐ ह्रीं महाहितगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४५।।
ॐ ह्रीं महाधन्यगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४६।।
ॐ ह्रीं महाधीशगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४७।।
ॐ ह्रीं महारूपिगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४८।।
ॐ ह्रीं महामुनिगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।४९।।
ॐ ह्रीं महाविभुगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५०।।
ॐ ह्रीं महाकीर्तिगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५१।।
ॐ ह्रीं महादातृगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५२।।
ॐ ह्रीं महारतगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५३।।
ॐ ह्रीं महाकृपगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५४।।
ॐ ह्रीं महाराध्यगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५५।।
ॐ ह्रीं महाश्रेष्ठगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५६।।
ॐ ह्रीं महायतिगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५७।।
ॐ ह्रीं महाक्षान्तिगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५८।।
ॐ ह्रीं महालोकगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।५९।।
ॐ ह्रीं महानेत्रगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६०।।
ॐ ह्रीं महार्घकृद्गुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६१।।
ॐ ह्रीं महाश्रमिगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६२।।
ॐ ह्रीं महायोग्यगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६३।।
ॐ ह्रीं महाशमिगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६४।।
ॐ ह्रीं महादमिगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६५।।
ॐ ह्रीं महेशेशगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६६।।
ॐ ह्रीं महेशात्मगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६७।।
ॐ ह्रीं महेशार्च्यगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६८।।
ॐ ह्रीं महेशराड्गुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।६९।।
ॐ ह्रीं महानन्तगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७०।।
ॐ ह्रीं महातृप्तगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७१।।
ॐ ह्रीं महाहरगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७२।।
ॐ ह्रीं महावरगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७३।।
ॐ ह्रीं महर्षीशगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७४।।
ॐ ह्रीं महाभागगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७५।।
ॐ ह्रीं महास्थानगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७६।।
ॐ ह्रीं महान्तकगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७७।।
ॐ ह्रीं महौदर्यगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७८।।
ॐ ह्रीं महाकार्यगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।७९।।
ॐ ह्रीं महाकेवललब्धिगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८०।।
ॐ ह्रीं महाशिष्टगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८१।।
ॐ ह्रीं महानिष्टगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८२।।
ॐ ह्रीं महादक्षगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८३।।
ॐ ह्रीं महाबलगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८४।।
ॐ ह्रीं महालक्षगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८५।।
ॐ ह्रीं महार्थज्ञगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८६।।
ॐ ह्रीं महाविद्वद्गुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८७।।
ॐ ह्रीं महात्मकगुणान्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८८।।
ॐ ह्रीं महेज्यार्हगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।८९।।
ॐ ह्रीं महानाथगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९०।।
ॐ ह्रीं महानेतृगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९१।।
ॐ ह्रीं महापितृगुणविशिष्टाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९२।।
ॐ ह्रीं महामनोगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९३।।
ॐ ह्रीं महाचिन्त्यगुणधारकाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९४।।
ॐ ह्रीं महासारगुणविभूषिताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९५।।
ॐ ह्रीं महायमिगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९६।।
ॐ ह्रीं महेन्द्रार्च्यगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९७।।
ॐ ह्रीं महावंद्यगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९८।।
ॐ ह्रीं महावादिगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।९९।।
ॐ ह्रीं महानुतगुणालंकृताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१००।।
ॐ ह्रीं परमात्मगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०१।।
ॐ ह्रीं परात्मज्ञगुणप्राप्ताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०२।।
ॐ ह्रीं परंज्योतिगुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०३।।
ॐ ह्रीं परार्थकृद्गुणसमन्विताय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०४।।
ॐ ह्रीं परब्रह्मगुणनिधानाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०५।।
ॐ ह्रीं परब्रह्मरूपगुणास्पदाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०६।।
ॐ ह्रीं परतरगुणास्पदाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०७।।
ॐ ह्रीं परमेशगुणनिधानाय श्रीमहावीरतीर्थंकराय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।१०८।।
-गीता छंद-
घाति अघाती कर्म घातकर, हुए निकल परमात्मा।
शुद्ध सिद्ध कृतकृत्य निरंजन, लोक शिखर गत आत्मा।।
परिनिर्वाण परमपद पूजत, निरुपम सौख्य भजूँ मैं।
महावीर को अष्टद्रव्य ले, हर्षित भाव जजूूँ मैं।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं परिनिर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं परिनिर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय नम:।
-दोहा-
प्रभु चरणों की भक्ति है, चिंतित फलदातार।
तुम गुणमणिमाला कहूँ, सुख संपति साकार।।१।।
(चाल-श्रीपति जिनवर करुणा……)
जय जय श्री सन्मति रत्नाकर! महावीर! वीर! अतिवीर! प्रभो!
जय जय गुणसागर वर्धमान! जय त्रिशलानंदन! धीर प्रभो!।।
जय नाथवंश अवतंस नाथ! जय काश्यपगोत्र शिखामणि हो।
जय जय सिद्धार्थतनुज फिर भी, तुम त्रिभुवन के चूड़ामणि हो।।२।।
जिस वन में ध्यान धरा तुमने, उस वन की शोभा अति न्यारी।
सब ऋतु के फूल खिलें सुन्दर, सब फूल रहीं क्यारी क्यारी।।
जहँ शीतल मंद पवन चलती, जल भरे सरोवर लहरायें।
सब जात विरोधी जन्तूगण, आपस में मिलकर हरषायें।।३।।
चहुँ ओर सुभिक्ष सुखद शांती, दुर्भिक्ष रोग का नाम नहीं।
सब ऋतु के फल फल रहे मधुर, सब जन मन हर्ष अपार सही।।
कंचन छवि देह दिपे सुंदर, दर्शन से तृप्ति नहीं होती।
सुरपति भी नेत्र हजार करे, निरखे पर तृप्ति नहीं होती।।४।।
श्री इन्द्रभूति आदिक ग्यारह, गणधर सातों ऋद्धीयुत थे।
चौदह हजार मुनि अवधिज्ञानी, आदिक सब सात भेदयुत थे।।
चंदना प्रमुख छत्तीस सहस, संयतिकायें सुरनरनुत थीं।
श्रावक इक लाख श्राविकाएँ, त्रय लाख चतुःसंघ संख्या थी।।५।।
प्रभु सात हाथ, उत्तुंग आप, मृगपति लांछन से जग जाने।
आयू बाहत्तर वर्ष कही, तुम लोकालोक सकल जाने।।
भविजन खेती को धर्मामृत, वर्षा से सिंचित कर करके।
तुम मोक्षमार्ग अक्षुण्ण किया, यति श्रावक धर्म बता करके।।६।।
मैं भी अब आप शरण आया, करुणाकर जी करुणा कीजे।
निज आत्म सुधारस पान करा, सम्यक्त्व निधी पूर्णा कीजे।।
रत्नत्रयनिधि की पूर्ती कर, अपने ही पास बुला लीजे।
‘‘सज्ज्ञानमती’’ निर्वाणश्री, साम्राज्य मुझे दिलवा दीजे।।७।।
-घत्ता-
जय जय श्रीसन्मति, मुक्ति रमापति, जय जिनगुणसंपति दाता।
तुम पूजूँ ध्याऊँ, भक्ति बढ़ाऊँ, पाऊँ निजगुण विख्याता।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं निर्वाणपरमस्थानप्राप्तये श्रीमहावीरतीर्थंकराय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-गीता छंद-
जो सप्तपरमस्थान तीर्थंकर विधान सदा करें।
वे भव्य क्रम से सप्तपरमस्थान की प्राप्ती करें।।
संसार के सुख प्राप्त कर फिर सिद्धिकन्या वश करें।
सज्ज्ञानमति रविकिरण से भविमन कमल विकसित करें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि:।।