ज्ञानाञ्जलि महोत्सव सन् १९५२ से २०२३ तक (७२ द्विवसीय)
[ सन २०२३ – अयोध्या में पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी के ७२वें संयम दिवस के उपलक्ष्य में उनके ७२ चातुर्मास स्थलों के नाम से ७२ दिन ज्ञानांजलि महोत्सव किया गया , जिसमे सभी चातुर्मास स्थलों के जिनमंदिरों को अर्घ्य समर्पित करते हुए सभी देशवासियों को उन मंदिरो के दर्शन कराये गए , उसी का विवरण पूज्य चंदनामती माताजी के द्वारा निम्न काव्यों में प्रस्तुत किया गया है | ]
[ ज्ञानाञ्जलि महोत्सव का मंगलाचरण ]
मंगलं शुभ मंगलं, हो विश्व में शुभ मंगलम्
आज ज्ञानाञ्जलि महोत्सव, करें जिनवर मंगलम्।।०।।
ज्ञानमति माता का संयम, युग युगों चलता रहे।
हम सभी के लिए भी, होवे ये संयम मंगलम्।।१।।
महोत्सव का ध्वज गीत
शिवपुर पथ की कुशल साधिका, ज्ञानमती जी की जय हो।
ज्ञानाञ्जलि उत्सव की नायिका, मात तुम्हारी जय हो।।०।।
प्रभु वीर जन्मभूमी का तब जोरों से खूब प्रचार हुआ।।
इण्डिया गेट दिल्ली से चलकर तीर्थ प्रयागराज पहुँचीं।
प्रभु ऋषभदेव दीक्षा भू तपस्थली की धन्य हुई धरती।।१।।
गर्मी के कारण स्वास्थ्य देखकर यहीं पे चातुर्मास हुआ।
नगरी प्रयाग वाराणसि रोड है वहीं संघ का प्रवास हुआ।।
यह है पचासवाँ चौमासा सन् दो हजार दो के सन् का।
तीर्थंकर ऋषभदेव की तपस्थली तीरथ के वन्दन का।।२।।
था त्यागदिवस इक्यावनवाँ तिथि शरदपूर्णिमा को आया।
यह स्वर्णिम शरदपूर्णिमा उत्सव कहकर भक्तों ने मनाया।
हुआ न्यायाधीश का सम्मेलन इक समवसरण भी बना वहाँ।
वृषभेश तपोवन-समवसरण-वैâलाशगिरी का धाम जहाँ।।३।।
यह है आध्यात्मिक तीर्थ प्रथम माँ ज्ञानमती ने बतलाया।
प्रभु ऋषभदेव के जीवन में कई प्रथम कार्य हो गये यहाँ।।
युग की पहली दीक्षा व ज्ञानकल्याणक गणधर पुत्र प्रथम।
गणिनी व आर्यिका ब्राह्मी-सुंदरि कन्या की दीक्षा थी प्रथम।।४।।
-दोहा-
ऐसे पावन तीर्थ को, नमन करूँ शत बार।
ज्ञानमती जी मात का, है ये बड़ा उपकार।।५।।
अर्घ्य समर्पण कर नमूँ, जिनमंदिर जिननाथ।
पुन: अर्घ्य अर्पण करूँ, ज्ञानमती पद आज।।६।।
१. ॐ ह्रीं पंचाशत्तमचातुर्मासस्थल तीर्थंकरऋषभदेवतपस्थलीप्रयागतीर्थे विराजमान समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं ………
२. ॐ ह्रीं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती मात्रे अर्घ्यं…………..
५१-५२ वाँ कुण्डलपुर चातुर्मास-कुण्डलपुर
( २००३-२००४ – अर्घ्य )
तीरथ प्रयाग से कर विहार महावीर जन्मभूमी पहुँचीं।
श्री ज्ञानमती माताजी कुण्डलपुर विकास हेतू पहुँचीं।।
वहाँ नंद्यावर्त महल नामक विकसित इक सुन्दर तीर्थ हुआ।
सैकड़ों वर्ष प्राचीन तीर्थ पर भी निर्मित कीर्तिस्तम्भ हुआ।।१।।
दो चातुर्मास हुए माताजी के कुण्डलपुर तीरथ पर।
ईसवी सन् दो हजार तीन और चार में प्रभावनापूर्वक।।
प्रभु वीर का पंचकल्याण फरवरी में हो गया बहुत सुन्दर।
पुनरपि चौमास से पूर्व नवग्रह प्रतिमाओं का बना मंदिर।।२।।
कुण्डलपुर से राजगृह पावापुर तीर्थों के किये दर्शन।
बाईस माह में बाइस बार वन्दना के आये अवसर।।
पावापुर में अब्दुलकलाम भारत के राष्ट्रपति आये।
माताजी के दर्शन करके आशीर्वाद ले हर्षाये।।३।।
दो बार का दीपावली महोत्सव पावापुर में मना लिया।
जलमंदिर में प्रभु महावीर के श्रीचरणों का ध्यान किया।।
सरकार पर्यटन केन्द्र के द्वारा उत्सव प्रभु का होता है।
कुण्डलपुर धाम महोत्सव जन्मकल्याणक के दिन होता है।।४।।
-दोहा-
उस कुण्डलपुर तीर्थ को, नमन करूँ शत बार।
महावीर की कीर्ति को, गाए सब संसार।।५।।
अर्घ्य समर्पण कर नमूँ, जिनमदिर जिननाथ।
पुन: अर्घ्य अर्पण करूँ, ज्ञानमती पद आज।।६।।
१. ॐ ह्रीं एकपंचाशत्तम-द्विपंचाशत्तमचातुर्मासस्थल श्री महावीरजन्मभूमि कुंडलपुरतीर्थे विराजमान श्री महावीर जिनमंदिरसहितसमस्त जिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं………..
२. ॐ ह्रीं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती मात्रे अर्घ्यं………….
त्रेपन के चातुर्मास से लेकर ६२ नं तक – जम्बूद्वीप
( सन् २००५ से २०१४ तक अर्घ्य )
सन् दो हजार पाँच से सन् चौदह तक दश चौमास हुए।
अतिशायी जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में अनेकों कार्य हुए।।
कुण्डलपुर से वापस आकर गम्भीर रूप से अस्वस्थ हुईं।
पर कल्पवृक्ष महावीर प्रभू के चमत्कार से स्वस्थ हुईं।।१।।
हुए कई प्रभावनापूर्ण कार्य जिनधर्म का झण्डा लहराया।
सन् दो हजार छह में माता की दीक्षास्वर्ण जयन्ति हुई।।
साधू समूह में प्रथम बार इनकी पचासवीं पूर्ण हुई।
इक गौरव ग्रंथ छपा सुन्दर उस दीक्षा स्वर्ण जयंती में।।२।।
सन् दो हजार सात में तेरहद्वीप पंचकल्याण हुआ।
सोने के सिक्के बरसाए अदृश्य देवताओं ने वहाँ।।
षट्खंडागम सिद्धांतिंचतामणि टीका लिखकर पूर्ण किया।
श्री ज्ञानमती माता ने कमल मंदिर में उसको पूर्ण किया।।३।।
इक्कीस दिसम्बर दो हजार सन् आठ में राष्ट्रपति आईं।
हस्तिनापुरी में जम्बूद्वीप तीर्थ पर शुभ घड़ियां आईं।।
प्रतिभादेवीिंसह पाटिल ने माता से आशीर्वाद लिया।
इक विश्वशांति सम्मेलन में उद्घोष अिंहसा धर्म किया।।४।।
साहित्य सृजन जिनधर्मप्रभावन तीर्थों का निर्माण हुआ।
मांगीतुंगी में प्रतिमा के निर्माण का खूब प्रचार हुआ।।
हर जैन दिगम्बर जुड़ा और प्रतिमा निर्माण का लाभ लिया
फिर मंगीतुंगीयात्रा हेतू माँ ने ससंघ विहार किया ।।५।।
-दोहा-
शांति कुंथु अरनाथ का, है पावन शुभ धाम।
हस्तिनापुर में मात के, वर्षायोग महान।।६।।
अर्घ्य समर्पण कर नमूँ, जिनमंदिर जिननाथ।
पुन: अर्घ्य अर्पण करूँ, ज्ञानमती पद आज।।७।।
१. ॐ ह्रीं त्रिपंचाशत्तमादिद्विषष्टिचातुर्मासपर्यंत चातुर्मासस्थल जम्बूद्वीप-हस्तिनापुरतीर्थे विराजित समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं…….
२. ॐ ह्रीं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती मात्रे अर्घ्यं………
त्रेसठाँ – चौंसठाँचातुर्मास – मांगीतुंगी
( सन् २०१५-२०१६ अर्घ्य )
सन् दो हजार पन्द्रह में सत्रह मार्च को संघ विहार हुआ।
सोनागिरि होते हुए पुन: मांगीतुंगी में प्रवास हुआ।।
पन्द्रह का चातुर्मास हुआ त्रेसठवाँ गणिनी माता का।
प्रभु ऋषभदेव प्रतिमा का द्रुतगति से निर्माण हो रहा था।।१।।
संयोग बना हुआ चमत्कार प्रतिमाजी बन कर पूर्ण हुईं।
चौबीस जनवरी नेत्र बने अंतिम छेनी मूरत पे चली।।
श्री ज्ञानमती माताजी की खुशियों से आँखें छलक पड़ीं।
अपने पितु के चरणों से लिपट यह ब्राह्मी माता फफक पड़ी।।२।।
जीवन के इस स्वर्णिम क्षण को लेखनी नहीं लिख सकती है।
रोमांचक ऐसी दुर्लभ घड़ियाँ याद ही बस रह सकती हैं।।
हुआ महामूर्ति का महापंचकल्याणक पावन बेला में।
सन् दो हजार सोलह फरवरी का महामहोत्सव सुन्दर है।।३।।
इक सौ पच्चीस साधुओं का पावन सानिध्य निराला था।
फिर चौंसठवाँ चौमास मात का प्रभु चरणों में प्यारा था।।
श्री अनेकांतसागराचार्य ने भी माँ संग चौमास किया।
इन धर्ममात के पास उन्होंने दीर्घकाल का प्रवास किया।।४।।
-दोहा-
सिद्धक्षेत्र शुभ धाम को, नमन है बारम्बार।
ऋषभगिरी के धाम को, भी वन्दन शत बार।।५।।
अर्घ्य समर्पण कर नमूँ, जिनमंदिर जिननाथ।
पुन: अर्घ्य अर्पण करूँ, ज्ञानमती पद आज।।६।।
१. ॐ ह्रीं त्रिषष्ठितम-चतु:षष्ठितम चातुर्मासस्थल मांगीतुंगीसिद्धक्षेत्रे विराजमान समस्तजिनप्रतिमाभ्य: अर्घ्यं…….
२. ॐ ह्रीं ऋषभगिरि पर्वतस्योपरि विराजमान शताष्टफुटोन्नत श्री ऋषभदेव जिनप्रतिमायै अर्घ्यं…….
३. ॐ ह्रीं गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती मात्रे अर्घ्यं ………..
६५ वाँ चातुर्मास-मुम्बई (महा.)
( सन् २०१७ – अर्घ्य )
सन् दो हजार सत्रह में माता का मुम्बई विहार हुआ।
एलोरा गजपंथा होकर मुम्बई में भव्य प्रवेश हुआ।।
फिर अकस्मात् भक्तों की भावना जाने क्या रंग ले आई।
पोदनपुर तीर्थ त्रिमूर्ति में चातुर्मास की शुभ घड़ियाँ आईं।।१।।
पैंसठवां चातुर्मास मात का यद्यपि पोदनपुर में था हुआ।
फिर भी भाण्डुप के जैनम् हाल में अधिक से अधिक प्रवास हुआ।।
हुए चौबिस कल्पद्रुम विधान दशलक्षण पर्व के अवसर पर।
बच्चों के हुए संस्कार शिविर नारी के गर्भ संस्कार शिविर।।२।।
पूरे मुम्बई में भ्रमण हुआ सारी समाज ने लाभ लिया।
आचार्य शांतिसागर जी की प्रतिनिधि का बहुत सम्मान हुआ।।
कहते हैं कभी आचार्य नेमिसागर सन् बासठ में आये।
उनके दर्शन को शहर के नर नारी भक्ति से उमड़ आये।।३।।