अर्हन्तो मंगलं कुर्यु:, सिद्धा: कुर्युश्च मंगलम्।
आचार्या: पाठकाश्चापि, साधवो मम मंगलम्।।१।।
वासुपूज्यो जगत्पूज्य:, पूज्यपूजातिदूरग:।
पूज्यो जन: प्रसादात्ते, भवेत्तुभ्यं नमो नम:।।२।।
कर्ममल्लभिदे तुभ्यं, मल्लिनाथ ! नमो नम:।
स्वमोहमल्लनाशाय, भववल्लिभिदे नम:।।३।।
राजीमतीं परित्यज्य, महादयार्द्रमानस:।
लेभे सिद्धिवधूं सिद्ध्यै, नेमिनाथ! नमोऽस्तु ते।।४।।
सर्वंसहो जिन: पार्श्वो, दैत्यारिमदमर्दक:।
सहिष्णुतां प्रपुष्यान्मे, नित्यं तुभ्यं नमो नम:।।५।।
वर्धमानो महावीरो—ऽतिवीरो सन्मतिर्जिन:।
वीरनाथो नमस्तुभ्यं, सन्मतिं वितनोतु मे।।६।।
वासुपूज्यस्तथा मल्लि—र्नेमि: पार्श्वोऽथ सन्मति:।
कौमारा: पंच तीर्थेशा—स्तेभ्यो मेऽनन्तशो नम:।।७।।
अथ जिनयज्ञप्रतिज्ञापनाय मंडलस्योपरि पुष्पांजिंल क्षिपेत्।
– अथ स्थापना-
(तर्ज—मेरा नम्र प्रणाम है……….)
वंदन शत शत बार है,
पंचबालयति तीर्थंकर को वंदन शत शत बार है।
जिनका नाम मंत्र जपने से होते भवदधि पार हैं।
पंचबालयति ………………..।।टेक.।।
वासुपूज्य जिन मल्लिनाथ प्रभु नेमिनाथ तीर्थेश हैं।
पार्श्वनाथ महावीर जिनेश्वर बालयती परमेश हैं।।
बालब्रह्मचारी रह करके दीक्षा ली सुखकार है।
पंचबालयति ……………….।।१।।
द्विविध रत्नत्रय धारण करके, धरा दिगम्बर वेष है।
आत्मध्यान पीयूष पानकर, हरा मृत्यु का क्लेश है।
विविध तपश्चर्या कर करके, भरा सुगुण भंडार है।।
पंचबाल…..।२।।
आह्वानन स्थापन करके प्रभो! आपका यजन करें।
हृदय कमल में आप विराजो, मोहतिमिर का हनन करें।
सन्निधिकरण विधीपूर्वक, हम करें भक्ति साकार है।
पंचबालयति तीर्थंकर को वंदन शत शत बार है।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्य—मल्लिनाथ—नेमिनाथ—पार्श्वनाथ—महावीरस्वामी— पंचबालयतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्य—मल्लिनाथ—नेमिनाथ—पार्श्वनाथ—महावीरस्वामी— पंचबालयतितीर्थंकरसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्य—मल्लिनाथ—नेमिनाथ—पार्श्वनाथ महावीरस्वामी— पंचबालयतितीर्थंकरसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक-
गंगा नदि को जल स्वच्छ, कंचन शृंग भरूं।
त्रयधारा देते चर्ण, भव भव त्रास हरूँ।।
श्री बालयती तीर्थेश, प्रभु के गुण गाऊं।
परमानंदामृत हेतु, पूजूं हरषाऊं।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
मलयागिरि चंदन गंध, प्रभु के चरण जजूँ।
पाऊँ निज अनुभव गंध, जिनवर शरण भजूँ।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
तंदुल अति धवल अखंड, धोकर थाल भरूँ।
होवे मुझ ज्ञान अखंड, तुम ढिग पुंज धरूँ।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
मैं वकुल सुगंधित पुष्प, लाऊँ चुन चुन के।
पाऊँ निज समरस सौख्य, प्रभु चरणों धर के।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: कामबाणविध्वंनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
लाडू है मोतीचूर, अर्पूं तुम सन्मुख।
हो क्षुधा वेदनी दूर, पाऊँ स्वातम सुख।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दीपक की ज्योति प्रजाल, आरति करते ही।
नशे मोह तिमिर का जाल, ज्योती प्रगटे ही।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
दश गंध सुगंधित धूप, अगनी में खेऊँ।
उड़ जावे चहुँदिश धूम्र, तुम पद को सेऊँ।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य:अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूर सेब बादाम, फल से यजन करूँ।
हो निजपद में विश्राम, भव भव भ्रमण हरूँ।।श्री.।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जल आदिक अर्घ्य बनाय, रत्न मिलाऊँ मैं।
सिद्धों के चरण चढ़ाय, गुणमणि पाऊँ मैं।।
श्री बालयती तीर्थेश, प्रभु के गुण गाऊं।
परमानंदामृत हेतु, पूजूं हरषाऊं।।
ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्य: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-स्रग्विणी छंद-
नीर लाया पयोसिंधु से भृंग में।
नाथ के पाद में तीन धारा करूँ।।
विश्व में शांति हो सर्व विपदा टलें।
धर्म पीयूष मिल जाय तुम भक्ति से।।
शांतये शांतिधारा।
मल्लिका केवड़ा पुष्प सुरभित लिये।
नाथ के पाद पकंज चढ़ाऊँ अबे।।
सौख्य भंडार पूरो मिटे व्याधियाँ।
स्वात्म निधियाँ मिले फैले कीर्ति यहाँ।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य मंत्र—ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयतितीर्थंकरेभ्यो नम:।
-दोहा-
लोकोत्तर फलप्रद तुम्हीं, कल्पवृक्ष जिनदेव।
पंचबालयति आपको, नमूँ करूं नित सेव।।१।।
-गीता छंद-
जय पांच तीर्थंकर प्रभो ! तीनों जगत में ख्यात हो।
जय जय अखिल संपत्ति के, भर्ता भविकजन नाथ हो।।
लोकांत में जा राजते, त्रैलोक्य के चूड़ामणी।
जय जय सकल जग में तुम्हीं, हो ख्यात प्रभु चिंतामणी।।२।।
एकेन्द्रियादिक योनियों में, नाथ! मैं रुलता रहा।
चारों गती में ही अनादी, से प्रभो! भ्रमता रहा।।
मैं द्रव्य क्षेत्र रु काल भव, औ भाव परिवर्तन किये।
इनमें भ्रमण से ही अनंतानंत काल बिता दिये।।३।।
बहु जन्म संचित पुण्य से, दुर्लभ मनुज योनी मिली।
तब बालपन में जड़ सदृश, सज्ज्ञान कलिका ना खिली।।
बहुपुण्य के संयोग से, प्रभु आपका दर्शन मिला।
बहिरातमा औ अंतरात्मा, का स्वयं परिचय मिला।।४।।
तुम सकल परमात्मा बने, जब घातिया आहत हुए।
उत्तम अतीन्द्रिय सौख्य पा, प्रत्यक्ष ज्ञानी तब हुए।।
फिर शेष कर्म विनाश करके, निकल परमात्मा बने।
कल-देहवर्जित निकल अकल, स्वरूप शुद्धात्मा बने।।५।।
हे नाथ! बहिरात्मा दशा को, छोड़ अंतर आतमा।
होकर सतत ध्याऊँ तुम्हें, हो जाऊँ मैं परमात्मा।।
संसार का संसरण तज, त्रिभुवन शिखर पे जा बसूँ।
निज के अनंतानंत गुणमणि, पाय निज में ही बसूँ।।६।।
जय वासुपूज्य जिनेंद्र, मल्लीनाथ जय नेमिप्रभो।
जय पार्श्वनाथ जिनेंद्र सन्मतिनाथ सन्मति दो प्रभो!।।
मैं भक्ति से वंदन करूँ, प्रणमन करूँ शत शत नमूं।।
निज ज्ञानमति कैवल्य हो इस हेतु ही नितप्रति नमूं।।७।।
-दोहा-
पंचबालयति तीर्थकर, पूजूं भक्ति समेत।
स्वात्म सौख्य संपति मिले, गुण अनंत समवेत।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्य—मल्लिनाथ—नेमिनाथ-पार्श्वनाथ—महावीरस्वामिपंचबालयति- तीर्थंकरेभ्य: जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-शंभु छंद-
जो पांच बालयति का विधान, श्रद्धा भक्ती से करते हैं।
वे त्रिभुवन पूजित ब्रह्मचर्य, पाकर स्वात्मा में रमते हैं।।
देवर्षिदेव लौकांतिकसुर, होकर अंतिम भव लभते हैं।
कैवल्य ज्ञानमति भास्कर हो, त्रिभुवन आलोकित करते हैं।।
।।इत्याशीर्वाद:।।