स्वयमेव ।। तब तक पापकर्म दुश्चारित का मैं त्याग करू’
(अनन्तर ३ आवर्त एक शिरोनति करके योगमुद्रा से कायोत्सर्ग (६ जाप्य) करें । पश्चात् पंचांग नमस्कार करें, पुनः ३ आवर्त एक शिरो- नति करके मुक्ताशुक्ति मुद्रा से “थोस्सामि” इत्यादि चतुविंशतिस्तव पढ़ें ।)
स्तवन करू जिनवर तीर्थंकर केवलि अनंत जिन प्रभु का । मनुज लोक से पूज्य कर्मरज मल से रहित महात्मन् का ।। लोकोद्योतक धर्म तीर्थकर श्री जिनका मैं नमन करू’ । जिन चउवीस अर्हत तथा केवलिगण का गुणगान करू ।।
लघु श्रुतभक्ति
जिनवर कथित, रचित गणधर से, श्रुत अंगांग बाह्य संयुत । द्वादशभेद अनेक अनन्त, विषययुत वंदूँ मैं जिनश्रुत ।।