जब यहाँ मनुष्य लोक में चन्द्र बिम्ब पूर्ण दिखता है। उस दिवस का नाम पूर्णिमा है। राहु ग्रह चन्द्र विमान के नीचे गमन करता है और केतु ग्रह सूर्य विमान के नीचे गमन करता है। राहु और केतु के विमानों के ध्वजा दण्ड के ऊपर चार प्रमाणांगुल (२००० उत्सेधांगुल) प्रमाण ऊपर जाकर चन्द्रमा और सूर्य के विमान हैं। राहु और चन्द्रमा अपनी-अपनी गलियों को लांघकर क्रम से जम्बूद्वीप की आग्नेय और वायव्य दिशा से अगली-अगली गली में प्रवेश करते हैं अर्थात् पहली से दूसरी, दूसरी से तीसरी आदि गली में प्रवेश करते हैं।
पहली से दूसरी गली में प्रवेश करने पर चन्द्र मण्डल के १६ भागों में से १ भाग राहु के गमन विशेष से आच्छादित होता हुआ दिखाई देता है।
इस प्रकार राहु प्रतिदिन एक-एक मार्ग में चन्द्र बिम्ब की १५ दिन तक एक-एक कलाओं को ढकता रहता है। इस प्रकार राहु बिम्ब के द्वारा चन्द्र की १-१ कला का आवरण करने पर जिस मार्ग में चन्द्र की १ ही कला दिखती है वह अमावस्या का दिन होता है।
फिर वह राहु प्रतिपदा के दिन से प्रत्येक गली में १-१ कला को छोड़ते हुये पूर्णिमा को पन्द्रहों कलाओं को छोड़ देता है तब चन्द्र बिम्ब पूर्ण दीखने लगता है। उसे हा
पूर्णिमा कहते हैं। इस प्रकार कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष का विभाग हो जाता है।