‘‘बुद्धि और ज्ञान के द्वार हमेशा खुले होते हैं।।’’
जीवन वास्तव में बहुत सरल है जो हम दते हैं, वही हमे वापस मिलता है। जो कुछ हम अपने विषय में सोचते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है मैं मानती हूँ कि हर व्यक्ति, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, अपने जीवन में हर अच्छी या बुरी चीज के लिए स्वयं जिम्मेदार है। हमारे मस्तिष्क में आने वाला हर विचार हमारा भविष्य बनाता है। हम में से हर व्यक्ति अपने विचारों और अपनी भावनाओं द्वारा अपने अनुभवों को जन्म देता है, जो हम बोलते हैं, वह सब हमारा अनुभव बन जाता है। हम खुद परिस्थितियों को जन्म देते हैं और फिर अपनी कुंठा के लिए किसी दूसरे को दोषी ठहराते हुए अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं। कोई व्यक्ति, कोई स्थान और कोई चीज हमसे अधिक शक्तिशाली नहीं है, क्योंकि अपने मस्तिष्क में केवल ‘हम’ ही सोचते हैं। जब हम अपने मस्तिष्क में शांति, तालमेल और संतुलन बना लेते हैं तो यह सब हमारे जीवन में भी आ जाता है। इनमें से कौन सा कथन आपके विचार से मिलता है। —लोग मेरे पीछे पड़े हैं। —हर व्यक्ति हमेशा मेरी मद्द करता है। इनमें से प्रत्येक बिल्कुल भिन्न अनुभव को जन्म देगा। हम अपने बारे में और जीवन के बारे में जो भी सोचते हैं, वह हमारे लिए सच हो जाता है।
हम जो भी सोचना या मानना चाहते हैं, हर विचार में ब्रह्माण्ड हमारे साथ होता है।
दूसरे रूप में, हम जो भी स्वीकार करते हैं, हमारा अवचेतन मन उसे स्वीकार कर लेता है। इन दोनों का अर्थ है कि मैं अपने और जीवन के बारे में जो भी स्वीकारता हूँ, वह मेरे लिए एक सच्चाई बन जाता है। आप अपने और जीवन के बारे में जो भी सोचते हैं वह आपके लिए सच हो जाता है। हमारे पास सोचने के लिए असीमित विकल्प होते हैं। जब हम यह जान जाते हैं तो ‘लोग मेरे पीछे पड़े हैं की अपेक्षा ‘हर कोई हमेशा मेरी मदद करना चाहता है’ का विकल्प चुनना सही होगा।
शाश्वत शक्ति कभी हमारा मूल्यांकन या हमारी आलोचना नहीं करती।
वह केवल हमारे मूल्यों पर हमें स्वीकार करती है। फिर हमारे विचारों को हमारे जीवन में प्रतिबिम्बित करती है। यदि मैं यह मानना चाहती हूँ कि मेरा जीवन बहुत एकाकी है और कोई मुझसे प्रेम नहीं करता, तो मुझे दुनिया में यही मिलेगा। लेकिन यदि मैं उस विचार को छोड़ने के लिए तैयार हूँ और अपने लिए दृढ़ता से यह कहूँ कि ‘प्रेम हर जगह है और मैं प्रेम करने व प्रेम पाने योग्य हूँ’ और इस नए विचार पर कायम रहूँ तथा उसे बार—बार स्वीकार करूँ तो यह मेरे लिए सच हो जायेगा। अब मुझसे प्रेम करने वाले लोग मेरे जीवन में आएँगे, पहले से मौजूद लोग मेरे प्रति अधिक प्रेम रखेंगे और मैं दूसरों के प्रति आसानी से प्रेम की अभिव्यक्ति कर पाऊँगी। हममें से अधिकतर लोग ‘हम कौन हैं’ के बारे में मूर्खतापूर्ण विचार रखते हैं और जीवन जीने के लिए बहुत से कठार नियम बनाते हैं। जब हम बहुत छोटे होते हैं तो अपने तथा जीवन के बारे में महसूस करना हम अपने आस—पास के बड़ों की प्रतिक्रियाओं से सीखते हैं। इस प्रकार हम अपने तथा अपनी दुनिया के विषय में सोचना सीखते हैं। अब यदि आप ऐसे लोगों के साथ रहें, जो बहुत दु:खी, भयभीत, अपराध—बोध से ग्रस्त या क्रुद्धा थे तो आपने अपने बारे में और अपनी दुनिया के बारे में बहुत सी नकारात्मक बाते सीखीं। ‘मैं कभी भी सही नहीं करता’, ‘यह मेरी गलती है’, ‘यदि मुझे गुस्सा आता है तो मैं एक बुरा व्यक्ति हूँ’। इस तरह के विचार एक निराशाजनक जीवन को जन्म देते हैं। जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपनी प्रवृत्ति के अनुसार प्रांरभिक जीवन के भावनात्मक वातावरण का पुन: सजृन करते हैं। यह अच्छा है या बुरा, सही है या गलत:, यह वही होता है, जिसे हम अपने अन्दर ‘घर’ के रूप में जानते हैं। साथ ही हम अपने व्यक्तिगत संबंधों में उन संबंधों को फिर से जीवित करने का प्रयास करते हैं, जो संबंध हमारी माँ या पिता के साथ या उनके बीच था। सोचिए कि कितनी बार आपका पति या बॉस बिल्कुल आपकी माँ या आपके पिता की तरह था। हम अपने साथ वैसा ही व्यवहार करते हैं, जो हमारे माता—पिता हमारे साथ करते थे। हम उसी तरीके से स्वयं को डाँटते या सजा देते हैं। जब आप सुनते हैं। तो लगभग उन शब्दों को सुन सकते हैं। एक बच्चे के रूप में जिस तरह हमें प्यार दिया गया था या प्रोत्साहित किया गया था, हम उसी तरीके से खुद को प्यार या प्रोत्साहित करते हैं। ‘तुम कभी कुछ ठीक नहीं करते।’’ मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।’ आप कितनी बार खुद से ऐसा कहते हैं ?
फिर भी इसके लिए हम अपने माता—पिता को दोषी नहीं ठहराएँगे।
हम सभी पीड़ितों द्वारा पीड़ित हैं, और शायद वे हमें कुछ ऐसा नहीं सिखा पाते जो वे नहीं जानते थे। यदि आपकी माँ नहीं जानती थी कि आपसे प्यार वैâसे करना है या आपके पिता नहीं जानते थे कि वह आपसे प्यार कैसे करें, तो उनके लिए आपको खुद से प्यार करना सिखाना असंभव था। वे अपने बचपन में मिली शिक्षा के अनुसार सबकुछ अच्छा कर रहे थे। यदि आप अपने माता—पिता को अधिक समझना चाहते हैं तो उन्हें अपने बचपन के बारे में बताने के लिए प्रेरित कीजिए और यदि आप संवेदना के साथ सुनें तो आपको पता चलेगा कि उनकी शंकाएँ और सख्ती कहाँ से आयी है। जिन लोगों ने ‘आपके साथ वह सब किया’, वे आपकी तरह ही भयभीत और सहमे हुए थे।
मैं ऐसा मानती हूँ कि हम स्वयं अपने माता—पिता का चुनाव करते हैं।
हममें से हर कोई इस धरती पर एक सुनिश्चित समय और स्थान पर जन्म लेता है। हम यहाँ एक विशेष पाठ पढ़ने के लिए आए हैं, जो हमें आध्यात्मिक विकास के पथ पर आगे बढ़ाएगा। हम अपना लिंग, अपना रंग, अपना देश चुनते हैं और फिर हम किसी खास माता—पिता को खोजते हैं, जो उस स्वरूप को प्रतिबिंबित करेंगे, जिस पर हम इस जीवन में काम करना चाहते हैं। फिर जब हम बड़े होते हैं तो आमतौर पर अपने माता—पिता पर उँगली उठाते हैं और रिरियाते हुए शिकायत करते हैं, ‘आपने मेरे साथ ऐसा किया।’ लेकिन वास्तव में हमने उन्हें इसलिए चुना, क्योंकि वे हमारे कार्यों के लिए बिलकुल उपयुक्त थे। हमारे बचपन में ही हमारी आस्थाएँ स्थापित होती हैं और फिर उन्हीं आस्थाओं का अनुभव करते हुए जीवन में आगे बढ़ते हैं। अपने जीवन में पीछे की ओर देखिए और ध्यान दीजिए की कितनी बार आप उसी अनुभव से गुजरे हैं। मेरा मानना है कि आपने उन अनुभवों को एक के बाद एक स्वयं बनाया, क्योंकि वे आपके अपने विश्वास को प्रतिबिंबित कर रहे थे। यह कोई मायने नहीं रखता कि हमें कितने लंबे समय से कोई समस्या थी, या वह कितनी बड़ी है या वह हमारे जीवन के लिए कितनी घातक है।
वर्तमान सबसे अधिक शक्तिशाली होता है।
आज तक जीवन में आपने जिन घटनाओं का अनुभव किया है, वे सभी आपके अतीत से जुड़े विचारों और आस्थाओं से बने हैं। वे उन विचारों और शब्दों से बने थे, जिन्हें आपने कल, पिछले सप्ताह, पिछल माह, पिछले वर्ष आपकी आयु के अनुसार १०, २०, ३०, ४० या इससे अधिक वर्षों के दौरान इस्तेमाल किया था। फिर भी वह आपका अतीत है। वह बीत चुका है। इस पल में महत्वपूर्ण यह है कि आप अभी क्या सोचना, विश्वास करना व कहना चाहते हैं, क्योंकि ये विचार और शब्द आपका भविष्य निर्धारित करेंगे। वर्तमान क्षण ही आपकी ताकत है और यही आपके कल, अगले सप्ताह, अगले माह, अगले वर्ष और आगे के अनुभवों का आधार है। आप ध्यान दे सकते हैं कि इस क्षण में आप क्या सोच रहे हैं। वह नकारात्मक है या सकारात्मक ? क्या आप चाहते हैं कि यह विचार आपका भविष्य तय करें? बस ध्यान दें और सजग हो जाएँ।
हम केवल विचारों के साथ व्यवहार करते हैं और विचार बदले जा सकते हैं।
इसमें कोई फर्व नहीं पड़ता कि समस्या क्या है, हमारे अनुभव अपने विषय अंदरूनी विचारों के बाहरी परिणाम हैं। यहाँ तक कि अपने आप से घृणा करना भी केवल अपने विषय में ही विचार से घृणा करना है। आपका यह विचार है कि ‘मैं एक बुरा व्यक्ति हूँ।’ यह विचार एक भावना को उत्पन्न करता है और आप उस भावना के वश में हो जाते हैं। लेकिन यदि आपका यह विचार न हो तो यह भावना भी नहीं होगी। विचारों को बदला जा सकता है। विचार को बदलें तो यह भावना समाप्त हो जाएगी। यह केवल यह दरशाने के लिए है कि हम अपने बहुत से विश्वास कहाँ से प्राप्त करते हैं। लेकिन इस जानकारी को अपनी पीड़ा में डूबे रहने के बहाने के रूप में इस्तेमाल न करें। अतीत का हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं होता यह मायने नहीं रखता कि हम कितने लम्बे समय से नकारात्मक विचारों में डूबे रहे। शक्ति का केन्द्र बिन्दु वर्तमान क्षण में है। इसे महसूस करना कितना अद्भुत है। हम इस क्षण में मुक्त होना शुरू कर सकते हैं।
मानों या मानों, हम स्वयं अपने विचारों को चुनते हैं।
हम आदत के अनुसार किसी विचार को बार—बार सोच सकते हैं, ताकि ऐसा न लगे कि हम स्वयं विचार को चुन रहे हैं। लेकिन पहली बार विचार का चयन हमने ही किया था। हम कुछ खास विचारों को सोचने से इनकार कर सकते हैं। जरा ध्यान दीजिए कि आपने कितनी बार अपने बारे में सकारात्मक विचार लाने से इन्कार कर दिया है। तो फिर आप अपने बारे में नकारात्मक सोचने से भी इनकार कर सकते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि इस धरती पर जिस किसी को मैं जानती हूँ या जिसके साथ काम किया है, वह किसी—न किसी तरह आत्म—वंचना और अपराध—बोध से ग्रस्त हैं। हम जितनी ज्यादा आत्म—वंचना और अपराध—बोध रखते हैं, हमार जीवन उतना ही बदतर होता है। आत्म—वंचना और अपराध—बोध जितना कम होता है, हमारा जीवन—हर स्तर पर—उतना ही बेहतर होता है।
मैंने जिन लोगों के साथ काम किया है, उनके भीतर गहराई में यही विश्वास होता है—मैं उतना अच्छा नहीं हूँ!’
साथ ही हम हमेशा कहते हैं, ‘और मैं अपेक्षित कार्य नहीं करता या मैं इसके योग्य नहीं हूँ।’ क्या लगता है कि आप ऐसे ही हैं ? अकसर यही कहते, जो देते या महसूस करते हैं कि आप ‘बेहतर नहीं हैं।’ लेकिन किसके लिए ? और किसके मानदंडों के अनुसार ? यदि यह विचार आपके अन्दर अडिग है, तो आप कैसे एक प्रेममय, आनन्ददायक, खुशहाल और स्वस्थ जीवन जी सकते थे ? किसी न किसी तरह आपका प्रभावी अवचेतन विचार हमेशा उसका विरोध करता है। किसी न किसी तरह सही तालमेल नहीं हो पाता, क्योंकि कहीं न कहीं, कुछ न कुछ हमेशा गलत हो जाता।
मैंने पाया है कि नाराजगी, आलोचना, अपराध—बोध और भय किसी भी अन्य बात से अधिक समस्याएँ उत्पन्न करते हैं।
ये चार बाते हमारे शरीर और हमारे जीवन में बड़ी समस्याएँ उत्पन्न करती हैं। ये भावनाएँ दूसरों पर दोषारोपण करने और अपने अनुभवों के लिए स्वयं को जिम्मेदार न ठहराने से आती है। देखिए, यदि हम सभी अपने जीवन में हर बात के लिए जिम्मेदार हैं तो हम किसी पर दोषारोपण नहीं कर सकते। बाहर जो भी घट रहा है, वह केवल हमारे आंतरिक विचारों का एक आईना है। मैं दूसरे लोगों के बुरे व्यवहार को नरज अंदाज नहीं कर रही हूँ, लेकिन हमारे विश्वास ही लोगों को हमसे किसी प्रकार का व्यवहार करने के लिए आमंत्रित करते हैं। यदि आप खुद को यह कहता पाएँ, ‘हर कोई मेरे साथ ऐसा करता है, मेरी आलोचना करता है, कभी मेरी मदद नहीं करता, मुझे पायदान की तरह इस्तेमाल करता है, मेरे साथ दुव्र्यवहार करता है,’ तो यह आपकी प्रवृत्ति है। आपके अन्दर ऐसे विचार हैं, जो ऐसा व्यवहार प्रर्दिशत करने के लिए लोगों को आर्किषत करते हैं। जब आप उस तरह नहीं सोचते तो वे कहीं ओर जाकर, किसी ओर के साथ ऐसा करेंगे। आप उन्हें आर्किषत नहीं करेंगे। कुछ प्रवृत्तियों के नतीजे, जो शारीरिक स्तर पर अभिव्यक्त होते हैं, इस प्रकार हैं, लम्बे समय से ठहरा असंतोष शरीर को नुकसान पहुँचाता है और वैंâसर जैसी बीमारी बन जाता है। आलोचना, एक स्थायी आदत के रूप में अपनाएँ तो यह शरीर में आर्थराइटिस को प्रेरित कर सकता है। अपराध बोध हमेशा सजा की तलाश करता है। और सजा से पीड़ा होती है। (जब कोई ग्राहक मेरे पास ज्यादा पीड़ज्ञ के साथ आता है तो मैं जानती हूँ कि उसमें बहुत सारा अपराध—बोध है।) भय और उसके कारण होने वाला तनाव गंजापन, अल्सर और यहाँ तक कि पैरों में दर्द को जन्म दे सकता है। मैंने पाया कि क्षमा करने और असंतोष को बहा देने से कैंसर तक ठीक हो सकता है। शायद मेरी बात बड़ी सरल एवं अपरिपक्व लगती हो, लेकिन मैंने इसका प्रभाव देखा और अनुभव किया है।
हम अतीत के प्रति अपना दृष्टिकोण बदल सकते हैं
अतीत बीत कर समाप्त हो गया है। हम उसके बदल नहीं सकते। परन्तु हम अतीत के विषय में अपने विचारों को बदल सकते हैं। यह कितना मूर्खतापूर्ण है कि हम इसलिए वर्तमान में अपने आपको सजा देते हैं, क्योंकि अतीत में काफी पहले किसी ने हमें पीड़ा पहुँचाई थी। गहरे असंतोष की प्रवृत्तियों वाले लोगों से मैं अकसर कहती हूँ, ‘कृपया असंतोष को कम करना शुरू करें, अब वह अपेक्षाकृत आसान है। किसी सर्जन के छुरे के नीचे या मृत्यु—शय्या तक पहुँचने का इन्तजार न करें, जब आपको डर से आमना—सामना करना पड़ सकता है।’ जब हम घबराहट की स्थिति में होते हैं तो अपना दिमाग उपचार एवं सुधार पर केन्द्रित करना कठिन होता है। हमें पहले ही डर को समाप्त करने पर समय लगाना होगा। यदि हम यह विश्वास चाहते हैं कि हम असहाय—पीड़ित हैं और अब कोई उम्मीद नहीं है तो ब्रह्मांड भी इस विश्वास में हमारा साथ देगा और हम बरबाद हो जाएँगे। बेहतर है कि हम इन मूर्खतापूर्ण, पुराने, नकारात्मक विचारों व विश्वासों को छोड़ दें, जो हमारी मदद नहीं करते और विकास की ओर नहीं ले जाते। यहाँ तक की ईश्वर का प्रारूप भी ऐसा होना चाहिए, जो हमारे लिए हो, हमारे खिलाफ नहीं।
अतीत को भूलने के लिए, हमें क्षमा करने के लिए तत्पर होना होगा।
हमें अतीत को छोड़ने और अपने सहित हर किसी को क्षमा करने के लिए तैयार होने की जरूरत है। हो सकता है कि हमें क्षमा करना न आये और हो सकता है कि हम क्षमा न करना चाहते हों; लेकिन हमारा यह कहना कि हम क्षमा करने को तैयार हैं, स्वस्थ करने की प्रक्रिया को आरम्भ कर देता है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है कि हम अतीत को छोड़ दें और हर किसी को क्षमा कर दें। ‘मैं तुम्हें जिन रूप में देखना चाहता था, वैसा रूप न होने के लिए मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ और मुक्त करता हूँ।’ यह निश्चय हमें मुक्त कर देता है।
सभी रोग क्षमा न करने के कारण उत्पन्न होते हैं।
जब भी हम बीमार होते हैं, हमें अपने दिल में झाँककर यह देखना चाहिए कि हमें किसे माफ करने की जरूरत है। कोर्स इन मिरेकल्स का कहना है कि ‘सभी रोग क्षमा न करने की एक स्थिति से उभरते हैं१ और ‘जब भी हम बीमार होते हैं, हमें आस—पास यह देखना चाहिए कि हमें किसे माफ करने की जरूरत है।’ मैं उस विचार में यह जोड़ना चाहूँगी कि जिस व्यक्ति को क्षमा करना आपको सबसे कठिन लगे, वही वह व्यक्ति है जिसे क्षमा करने की जरूरत आपको सबसे अधिक है। क्षमा करने का अर्थ है—छोड़ देना, जाने देना। इसका उस व्यवहार को क्षमा करने से कोई लेना—देना नहीं है। इसका मतलब है कि बस उस पूरी घटना को अनदेखा कर देना। हमें यह जानने की जरूरत नहीं है कि कैसे क्षमा करना है। हमें बस क्षमा करने के लिए तैयार रहने की जरूरत है। कैसे करना है’ की चिन्ता—ब्रह्मांड स्वयं कर लेगा। हम अपनी पीड़ा को बहुत अच्छी तरह समझते हैं। हममें से अधिकतर के लिए यह समझना कितना कठिन है कि जिन लोगों को माफ करने की बहुत अधिक आवश्यकता थी, वे भी पीड़ा में थे। हमें यह समझने की जरूरत है। कि उनके पास उस समय जो समझ, जानकारी और ज्ञान था, उसके अनुसार वे अच्छा कर रहे थे। जब लोग मेरे पास कोई समस्या लेकर आते हैं तो मैं ध्यान नहीं देती कि वह क्या है—खराब स्वास्थ्य, धन का अभाव, असंतोषजनक संबन्ध या दमित रचनात्मकता—मैं केवल एक चीज पर ध्यान देती हूँ ओर वह है खुद से प्रेम करना। मैंने पाया कि जब हम अपने आपको ‘जैसे हैं वैसे रूप’ में प्रेम करते हैं और स्वीकार करते हैं तो जीवन में सब कुछ ठीक होता है। ऐसा मानो हर जगह कुछ छोटे चमत्कार होते हैं। हमारा स्वास्थ्य सुधर जाता है, हमारे पास अधिक धन आता है, हमारे रिश्ते अधिक संतोषजनक हो जाते हैं और हम रचनात्मक रूप से सार्थक तरीकों से खुद को अभिव्यक्त करना शुरू कर देते हैं। ऐसा लगता है कि यह सब हमारे प्रयार के बगैर हो रहा है। खुद को प्रेम और उसे स्वीकार करना, सुरक्षित बनाना, भरोसा करना, योग्य बनाना तथा स्वीकार करना, आपके मन—मस्तिष्क को व्यवस्थित करेगा, आपके जीवन में अधिक स्नेहिल रिश्तों को जन्म देगा, नए कार्य और जीने का एक नया बेहतर स्थान दिलाएगा, यहाँ तक कि आपके शरीर के वजन को भी सामान्य कर देगा। जो लोग खुद से और अपने खरीर से प्रेम करते हैं, वे न तो अपने साथ और न ही दूसरों का गलत करते हैं। वर्तमान में आत्म—अनुमोदन और आत्म—स्वीकार्यता हमारे जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तनों की मुख्य कुंजियाँ हैं। मेरे लिए खुद से प्रेम करना किसी भी चीज के लिए कभी भी खुद की आलोचना न करने से शुरू होता है। आलोचना हमें उस व्यवहार में क़द कर देती है, जिसे हम बदलने की कोशिश कर रहे हैं। स्वयं को समझते हुए अपने साथ सौम्य रहना हमें उस से निकलने में मदद करता है। याद रखिए, आप वर्षों से खुद की आलोचना करते आ रहे हैं और इससे कोई लाभ नहीं हुआ। अपना अनुमोदन करने का प्रयास कीजिए और देखिए कि क्या होता है।