इस प्रकार १६० विदेह क्षेत्रों में १-१ विजयार्ध एवं गंगा-सिन्धु तथा रक्ता-रक्तोदा नाम की २-२ नदियों से ६-६ खण्ड होते हैं जिनमें मध्य का आर्य खण्ड एवं शेष पाँचों म्लेच्छ खण्ड कहलाते हैं।
पाँच मेरू सम्बन्धी ५ भरत, ५ ऐरावत और ५ महाविदेहों के १६० विदेह—
५ ± ५ ± १६० · १७० हुये। ये १७० ही कर्मभूमियाँ हैं।
एक राजू चौड़े इस मध्यलोक में असंख्यातों द्वीप, समुद्र हैं। उनके अन्तर्गत ढ़ाई द्वीप की १७० कर्मभूमियों में ही मनुष्य तपश्चरणादि के द्वारा कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये ये क्षेत्र कर्मभूमि कहलाते हैं।